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‘गली बॉय’ में क्या है खास? जानिए, आपका टाइम कब आएगा?

अपने सपने को पूरा करने के लिए खुद पर भरोसा होना और कठिनतम समय में हिम्मत बनाए रखना बहुत जरूरी होता है। जोया अख्तर की हालिया फिल्म ‘गली बॉय’ का सार यही है। यह कहानी मुराद शेख (रणवीर सिंह) की है, जो धरावी के चाल में तंगहाल परिवार में जन्मा है। लेकिन, उसका सपना रैपर बनने का है। पारिवारिक हालात, रूढ़ीवादी पिता, टांग खींचने वाले लोग और हर दिन जीवन की परीक्षा लेने वाला समय के बावजूद वह अपने लक्ष्य से डिगता नहीं है। उसकी बचपन की दोस्त सफीना अली (आलिया भट्ट) रेतीली ताप से भरी उसकी जिंदगी में बारिश की फुहार है, जो हर मोड़ पर उसके साथ खड़ी है। निम्नवर्गीय मुराद का स्टार रैपर बनने की यात्रा को जोया ने दिलचस्प तरीके से प्रस्तुत किया है।

इस फिल्म की कहानी के बारे में कहा जा रहा है कि यह रैपर डिवाइन व नेज़ी की जिंदगी पर आधारित है। एक रेखीय कहानी को दिलचस्प बनाने में जोया व रीमा कागती की लेखकीय टीम की मेहनत झलकती है। रीमा स्वयं एक फिल्म निर्देशक हैं। इसलिए वे क्राफ्ट की बारिकियों से वाकिफ हैं।
चुटीले संवादों की मदद से दृश्यों को आकर्षक बनाया गया है। एक के बाद एक ऐसे दृश्य आते हैं और कहानी सहलता से आगे बढ़ती जाती है। कहानी की पृष्ठभूमि के अनुरूप दृश्यों का कलर टोन है, जो समेकित रूप से फिल्म के मुख्य किरदार के मिजाज व माहौल को स्थापित करती है। जय ओझा की सिनेमैटोग्राफी की प्रशंसा होनी चाहिए, रैप के शोर के बावजूद अपना वजूद बनाए रखती है। पटकथा को सहारा देने में इसके संगीत का योगदान है। खासकर ‘अपना टाइम आएगा..’ गीत पूरी तरह मुराद के मन को परिभाषित करता है। इसके खुद रणवीर ने गाया है। पश्चिम के प्रभाव में आकर भारत में भी रैप बनते रहे हैं। लेकिन, हिंदी सिनेमा की मुख्यधारा में पहली बार रैप व रैपर को केंद्र में रखकर एक फिल्म बनी है। इस लिहाज से रैप सांग इसकी रीढ़ है। एक पात्र केंद्रित कहानी को ढाई घंटे से ज्यादा खींचना आज के समय में बुद्धिमानी नहीं है। जोया को इस पर सोचना चाहिए था। इसे दो घंटे से सवा दो के बीच समेटा जाता है, तो एक कसी हुई फिल्म सामने आती। जोया की पिछली फिल्मों ‘जिंदगी मिलेगी न दोबारा’ या ‘दिल धड़कने दो’ के ट्रीटमेंट को देखें, तो उस अनुसार, उन्होंने स्तर को बरकरार रखा है।

after Ranveer, it is Alia Bhatt who steals the show in Gully Boy

उड़ता पंजाब के बाद अगर आलिया के खाते में अभिनय की दृष्टि से कोई फिल्म है, तो वह ‘गली बॉय’ ही है। रणवीर का ऊर्जावान मिजाज इसमें खुलकर बाहर आता है। भंसाली की भव्य फिल्में करने के बाद उनके लिए इसमें कुछ नया करने का अवसर मिला है। मुराद के पिता के रूप में विजय राज ठीक हैं। एमसी शेर की भूमिका में सिद्धांत चतुर्वेदी को और मेहनत करना चाहिए था। कल्कि कोचलिन के पास स्काई को और विस्तार देने की आवश्यकता थी। कल्कि प्रभावहीन रहीं।
वैलेंटाइन डे के दिन रीलीज हुई ‘गली बॉय’ युवाओं के लिए एक टाइमपास फिल्म हो सकती है।