गिलगित—बलतिस्तान पर पाकिस्तान कभी दावा नहीं कर सकता, ये है उसकी वजह

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Dignitaries present onto stage (above), people listening to IAS Shakti Sinha (below)

पटना : गिलगित—बलतिस्तान पर पाकिस्तान कभी दावा नहीं कर सकता। यह तकनीकी मामला है। इससे कश्मीर पर उसका दावा कमजोर पड़ जाएगा। गिलगित या बलतिसतान को पाकिस्तान जैसे ही अपने प्रांत के रूप में मान्यता देगा, कश्मीर को लेकर उसकी दलीलें खतम हो जाएंगी। जम्मू कश्मीर के बारे में सबसे अधिक गलतफहमी भारत के लोगों के मन में है और उससे भी बड़ी गलतफहमी गिलगित और बलतिस्तान के बारे में है। उक्त बातें आईएएस आधिकारी शक्ति सिन्हा ने शनिवार को कहीं। वे विश्व संवाद केंद्र द्वारा आयोजित आद्य पत्रकार देवर्षि नारद स्मृति कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। विषय था— गिलगित और बलतिस्तान (पीओके) की महत्ता।

उन्होंने कहा कि कई बार इन दोनों क्षेत्रों को एक ही समझ लिया जाता है। लेकिन, सच्चाई है कि गिलगित और बलतिस्तान दोनों अलग-अलग क्षेत्र हैं। ऐतिहासिक और सामाजिक परिस्थितियां एक दूसरे से भिन्न हैं। दुख की बात है कि गिलगित और बलतिस्तान आज की तारीख में हमारे कब्जे में नहीं है। भारत के नागरिकों को इस कड़वी सच्चाई की भी जानकारी नहीं है। जम्मू कश्मीर के मुकाबले इन दोनों इलाकों की स्थितियां सामरिक दृष्टिकोण से भी काफी अलग है।

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जम्मू—कश्मीर, गिलगित, बलतिस्तान और तिब्बत के भौगोलिक और सामरिक महत्व के बारे में मानचित्र के माध्यम से शक्ति सिन्हा ने इसके श्रोताओं को बताया। उन्होंने कहा कि गिलगित और बलतिस्तान ब्रिटिश राज के समय भी एक चुनौती थी और उस समय से ही यह माना जाता था कि जम्मू कश्मीर से यह क्षेत्र अलग है। 1895 में जब ब्रिटिश सरकार को लगा कि रूस भारत की ओर या भारतीय उपमहाद्वीप की ओर बढ़ रहा है, तो गिलगित के राजा से लीज पर उस इलाके को ले लिया और अपना शासन किया। लेकिन, 5 साल बाद ही जब उन्हें लगा कि कोई खतरा नहीं है, तो फिर से गिलगिट को उनके राजा के हवाले कर दिया।

उन्होंने कहा कि पहले गिलगित और बलतिस्तान में शिया और तिब्बती समुदाय के लोग बहुलता में रहते थे। लेकिन, बाद में पाकिस्तान के पास से वहां डेमोग्राफिक परिवर्तन आया और आज की तारीख में वहां सुन्नी मुसलमान बहुसंख्यक हो गए हैं।
गिलगित बलतिस्तान वाले इलाके से चीन पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक पाइपलाइन, राजमार्ग और रेलमार्ग बनाना चाह रहा है। इसलिए भी गिलगित बलतिस्तान पर नजर रखना भारत के लिए आवश्यक हो जाता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के क्षेत्र प्रचारक रामदत्त चक्रधर ने जम्मू कश्मीर के भौगोलिक क्षेत्र की जानकारी देते हुए कहा कि आम लोगों के मन में यह बात बैठी है कि जम्मू कश्मीर एक समस्या है, जबकि सच्चाई यह है कि जम्मू—कश्मीर में समस्या है ना कि जम्मू—कश्मीर समस्या है। कार्यक्रम के संबंध में उन्होंने कहा कि वर्तमान में पत्रकारिता व पत्रकारों की स्थिति एक ज्वलंत विषय और इस पर विमर्श होना चाहिए। पत्रकारों के लिए विश्व संवाद केंद्र 15 सालों से सम्मान समारोह आयोजित कर रहा है। अब तक बिहार के 40 पत्रकारों को सम्मानित किया जा चुका है।

इससे पूर्व बिहार के तीन पत्रकारों को सम्मानित किया गया। नवादा के पत्रकार रवींद्र नाथ भैया को ‘डॉ. राजेंद्र प्रसाद पत्रकारिता शिखर सम्मान’, अखिलेश चंद्रा को केशवराम भट्ट पत्रकारिता सम्मान और छायाकार शशि शंकर को बाबूराव पटेल रचनाधर्मिता सम्मान प्रदान किया गया।

इस अवसर पर बिहार की पत्रकारिता पर केंद्रित स्मारिका ‘प्रत्यंचा’ का विमोचन किया गया। स्मारिका के अतिथि संपादक कुमार दिनेश ने मीडिया समूह के मालिक और पत्रकारों की स्थिति पर प्रकाश डाला और स्मारिका के बारे में बताया कि इसमें ​पत्रकारिता पर आयी संकट की समीक्षा और पत्रकारों के अनुभव व्यक्त करने की अवधारणा शामिल है। पत्रकारिता की सेवा शर्तें कठिन होते जा रही हैं।

दक्षिण बिहार केंद्रीय विवि, गया के प्राध्यपक डॉ. अतीश पराशर ने विषय प्रवेश कराते हुए अनुच्छेद 370 के हुए संशोधन के आलोक में गिलगित—बलतिस्तान के महत्व पर प्रकाश डाला।

पत्रकारिता के छात्रों को प्रमाण—पत्र प्रदान किया गया। स्वागत संबोधन विश्व संवाद केंद्र के सचिव व भाजपा विधायक डॉ. संजव चौरसिया ने किया। धन्यवाद ज्ञापन श्रीप्रकाश नारायण सिंह ने किया।

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