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फ्यूज होने लगा लालू का पाॅवरहाउस, जानिए कैसे !

लालू प्रसाद यादव 1995 से 2005 तक की राजनीति का एक दिग्गज खिलाड़ी। एक विराट राजनीतिक व्यक्तित्व, जिसने बिहार की सामाजिक-राजनीतिक धारा को ही बदल कर रख दिया। जिसे श्रेय है दो प्रधानमंत्रियों को बनाने का। यही कारण था कि जब कभी लालू प्रसाद ‘रौ’ में आते थे, तो खुद को पावरहाउस कहने लगते थे। कहते भी कैेसे नहीं! उनके दोनों साले साधु यादव और सुभाष यादव के अतिरिक्त पूरे परिवार की राजनीतिक औकात की धमक पूरे देश में थी और हनक पूरे बिहार में। साधु-सुभाष को तो वे उनके ही कारणों से विदा कर दिए। पर, बारी जब उनकी संतानों की आयी, तो पावरहाउस फ्यूज-सा होने लगा। लालू रिम्स में कई बीमारियों से बेड पकड़े लिए, सीबीआई का हंटर लगातार सख्त होता गया और घर में ही महत्वाकांक्षाएं ऐसी हिलोरें मारने लगीं कि पावर स्ट्रगल शुरू हो गया। संघर्ष भी ऐसा जो खुद लालू प्रसाद के बनाये राजद बिखराव के कगार पर खड़ा हो गया। पार्टी में बिखराव से पहले उनके पावरहाउस में ही विखंडन शुरू हो गया।

34 सांसदों को भेजने वाली लालू की पार्टी का 2019 के संसदीय चुनाव में खाता तक नहीं खुला

एक पुराना ऐतिहासिक दर्शन है -कंचन का लोभ, चक्रवर्ती बनने की लालसा अथवा कामिनी का आकर्षण-विकर्षण- ये संघर्ष और पतन के कारण बनते ही हैं। लालू के पावरहाउस में भी कुछ ऐसा ही हुआ। कंचन के लोभ के कारण ही वे सीबीआई की सीखचों के भीतर हैं और राबड़ी देवी, मीसा भारती, तेजस्वी तथा कुछ संबंधी तक ईडी के राडार पर। इधर, चक्रवर्ती बनने की लालसा में ही तेजस्वी और तेजप्रताप में शीत युद्व शुरू, यही कारण था कि कभी विधानसभा में पूर्ण बहुमत और लोकसभा में 34 सांसदों को भेजने वाली लालू की पार्टी का 2019 के संसदीय चुनाव में खाता तक नहीं खुला। लालू एंड फैमिली के करीबी रहे सुरेंद्र यादव जहानाबाद से जीतते-जीतते हार गए। लालू का पहला चुनावी क्षेत्र जहां 1977 में वे महज 29 साल की उम्र में जीत दर्ज किए थे, वहां से तेजप्रताप के ससुर चन्द्रिका राय भी चुनाव हार गए। उन्हें हारना ही था, क्योंकि उनके खिलाफ उनके दामाद तेजप्रताप ने अपना अलग उम्मीदवार दिया था। अपने प्रत्याशी के लिए उन्होंने चुनाव प्रचार भी किया था। अजीब भले ही लगे, पर सच यही है कि शादी के तुरंत बाद से ही चन्द्रिका राय की पुत्री ऐश्वर्या राय और तेजप्रताप में खटपट शुरू हो गई थी। दोनों की विचारधाराएं भी एक-दूसरे के विपरीत ही बतायी जाती है। नार्थ पोल और साउथ पोल। दोनों कभी एक साथ रहे ही नहीं जबकि तेजस्वी ऐश्वर्या के समर्थन में रहते हैं और परिवार का एक बड़ा धड़ा ऐश्वर्या के साथ। ऐश्वर्या को राबड़ी आवास में उन्हें किचेन में घुसने तक नहीं दिया जाता। मीसा भारती रोकती हैं और राबड़ी भी। उन्हें खाना तक नहीं दिया जाता। हालांकि इस पूरे प्रकरण में तेजस्वी प्रसाद यादव ने चुप्पी ही साधे रखी। पर, चन्द्रिका राय ने इतना जरूर कहा कि लालू प्रसाद की जमानत के बाद स्थिति सामान्य हो सकती है, जब वे मामले में दखल देगें।

तीन ध्रुव नजर आने लगे हैं

पूरी स्थिति पर नजर डालते हुए एक प्रेक्षक बताते हैं कि लालू परिवार में फिलहाल तीन ध्रुव स्पष्ट नजर आने लगे हैं। एक तेजस्वी का, दूसरा तेजप्रताप का और तीसरा मीसा भारती का। इन तीनों की महत्वकांक्षाएं एक ही बिन्दु पर टकरा रहीं हैं। पार्टी में वर्चस्व बने रहने का। नतीजा, एक ही जगह राजनीतिक घर्षण होने के कारण विखंडन भी होने लगा है। इसका असर सीधे तौर पर पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं पर पड़ने लगा है। लालू एंड पाॅलिटिक्स से गाइड होने वाली कई क्षत्रप शक्तियां अपनी स्थिति को कायम रखने के लिए विरोधी रहे भाजपा और जद-यू के नेताओं के यहां बैठने लगे हैं। कार्यकर्ताओं में भी कमोबेश यही स्थिति है। हालांकि कुछ लोग यह भी कहते हैं कि महत्वाकांक्षा की होड़ में तेजप्रताप के ससुर भी शामिल हैं। कारण- इनके पिता अर्थात दारोगा राय बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं और छपरा में इनका दबदबा भी रहा है। कभी लालू प्रसाद को मदद करने वाले इस परिवार का राजनीतिक कर्ज भी लालू परिवार पर है। इसीलिए लालू प्रसाद ने उन्हें संसदीय चुनाव में टिकट भी दिलाया। यहीं चन्द्रिका राय का विरोध करते हुए जब तेजप्रताप ने शंखनाद किया, तो लोग आश्चर्य में पड़ गए कि आखिर तेजप्रताप ने ऐसा क्यों किया?

हालांकि प्रेक्षक मानते हैं कि तेजप्रताप नहीं चाहते थे कि चन्द्रिका राय या उनके परिवार के किसी सदस्य का उनके परिवार में हस्तक्षेप हो, पर, होनी ऐसी प्रबल कि उनकी शादी ही चन्द्रिका राय की दिल्ली विवि से शिक्षित बेटी ऐश्वर्या से हो गयी। इन दोनों का विवाद तो सार्वजनिक हो गया है, पर यह रहस्य अभी भी बना ही हुआ है कि लालू परिवार में विखंडन से पार्टी में कितना चेन रिएक्शन होता है। वैसे, इसका रियेक्शन स्पष्ट दिखा जब लालू परिवार के खास शिवानन्द तिवारी ने तेजस्वी के नेतृत्व पर ही सवाल उठा दिया। हालांकि पार्टी का कोई सीनियर लीडर उनके परिवार में हो रहे विवाद में हस्तक्षेप तो नहीं किया पर इतना सच है कि सबकी नजरें उस परिवार के क्रिया कलाप पर है क्योंकि कई नेता अपना भविष्य लालू एंड फैमिली के भविष्य में ही देखते हैं।

परिवार और राजनीति दोनों की दिशा गड़बड़ाने लगी है

वैसे, यह तो निर्विवाद है कि राजद अथवा लालू एण्ड पाॅलिटिक्स का रिमोट एक ही व्यक्ति लालू प्रसाद के हाथों रहता था पर, अब रिमोट तीन हाथों में हो गया है। नतीजा, परिवार और राजनीति दोनों की दिशा गड़बड़ाने लगी है। हालांकि लालू घर की पहली बहू ऐश्वर्या ने अभी तक राजनीति में आने की कोई न तो इच्छा जतायी है और न ही उसके क्रियाकलाप से कुछ प्रतिध्वनित हुआ है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता राजनीति की एक चाबी वह अपने हाथों में रखना चाहती है। वैसे, यादवों के बीच जिस तरह के सर्वमान्य नेता लालू प्रसाद हैं, वैसे ही अपने परिवार के चहेते भी लालू प्रसाद ही हैं। उनके पारिवारिक सूत्रों कहते हैं कि बचपन से ही लालू प्रसाद ने अपने बेटे-बेटियों पर कोई इच्छा नहीं थोपी और सबकी इच्छा का ख्याल भी किया। उन्हें अपने व्यस्क हो गये सभी संतानों की केमेस्ट्री की बखूबी जानकारी भी है। यही कारण है कि मीसा भारती को उन्होंने राज्यसभा में भेजा और बाद में तेजस्वी को क्रिकेट की पिच से उठाकर राजनीति की पिच पर दौडा़ना चाहा। दूसरे शब्दों में कहें तो अपना राजनीतिक वारिस बनाया।
लालू के वारिस उनके पावरहाउस की हनक को कितने समय तक बरकरार रखेंगे ।