अगर आप अर्जुन कपूर व परिणीति चोपड़ा वाली ‘नमस्ते इंग्लैंड’ देखने का प्लान कर रहे हैं और यह सोच रहे हैं कि यह 2007 में आई अक्षय कुमार व कटरीना कैफ स्टारर ‘नमस्ते लंदन’ जैसी ही प्यारी फिल्म होगी, तो आप फिर से विचार कर लें। दोनों फिल्मों में कोई समानता नहीं है, सिवाय इसके कि दोनों का निर्देशन विपुल शाह ने किया है।
‘नमस्ते इंग्लैंड’ पंजाबी युवा परम (अर्जुन कपूर) और जसमीत (परिणीति चोपड़ा) की कहानी है। दशहरा उत्सव के दौरान दोनों में प्यार होता है और फिर शादी हो जाती है। असली ड्रामा तब शुरू होता है जब जसमीत जूलरी डिजायनर बनना चाहती है। लेकिन, जसमीत के घर वालों ने परम से उसकी शादी इसी शर्त पर की थी कि शादी के बाद वह कोई काम नहीं करेगी, क्योंकि उसके पिता के अनुसार, औरतों का काम सिर्फ मर्द का पेट पालना है। सचमुच! औरत का ‘औरत’ होना कितना कठिन है, यह हम 80 और 90 के दशक की हिंदी फिल्मों में देख चुके हैं। विपुल शाह को कोई नई चीज सोचना चाहिए।
पंजाब की सीधी सी कहानी को जबरदस्ती घसीट कर इंग्लैंड ले जाया गया है। विपुल किसी तरह से इस फिल्म को ‘नमस्ते लंदन’ से जोड़ना चाह रहे थे। अफसोस यह नहीं हो सका। तिस पर भी परम का अवैध तरीके से लंदन जाना, इस फिल्म को परिकथा जैसा अतार्किक बना देता है। पंजाबियों का इंग्लैंड से रिश्ते को हल्के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश है। उसके बाद इस अति बेफिक्र परम का देशप्रेम अचानक से उफान मारने लगता है, जो एक सीन में भारत महान पर ‘स्पीच’ के साथ पूर्ण होता है। फिर से ‘नमस्ते लंदन’ की कॉपी। पंजाब के हरे—भरे खेत, भांगड़ा व लंदन में भारत का गौरव गान तो ठीक है। लेकिन, इसको कहने के लिए एक सुलझी हुई कहानी भी तो चाहिए।
कहानी घिसी—पिटी लिखी गई और ऊपर से उसका असंतुलित निर्देशन कर गुड़गोबर किया गया। विपुल शाह तो ऐसे नहीं थे। करीब सवा घंटे तक आप यही सोचकर कंफ्यूज रहेंगे कि आखिर विपुल कहना क्या चाहते हैं?
अर्जुन कपूर से जितना ओवर एक्टिंग हो सकता था, उतना बंदे ने किया। …और परिणीति? बेचारी पटकथा की मारी। ऐसे—ऐसे संवाद व भाव देने थे कि उसने भी दृश्यों को महज निपटा देने में भलाई समझी। अभिनेताओं के मुख से निकले वाक्य व उनके भाव का तालमेल कहानी के साथ कहीं—कहीं रहा, तो कहीं गायब।
विपुल शाह इस हादसे से उबर कर एक शानदार फिल्म जरूर बनाएंगे। उसको हमलोग पूरी शिद्दत से देखने जाएंगे।