बॉर्डरों से किसान हटे, फिर आंदोलनजीवी क्यों डटे?

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नयी दिल्ली : जब से प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों कृषि कानूनों की वापसी की है, दिल्ली की सीमाओं से आंदोलनकारी किसान लगातार अपने गांवों को लौट रहे हैं। आंदोलनकारियों की संख्या भी काफी कम हो गई है। लेकिन राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव सरीखे कुछ किसान नेता अभी भी वहां डटे रहने की बात करते हुए आज सोमवर को लखनऊ में किसान महापंचायत कर सरकार पर नई मांगों के साथ आंदोलन जीवित रखना चाह रहे हैं। ऐसे में आम किसान कन्फ्यूज है कि अब उन्हें फिर क्यों आंदोलन में धकेलने की कोशिश चल रही है? खेती—बारी छोड़ खाली आंदोलन करने से क्या पेट भर पाएगा?

लखनऊ में मीडिया के सवालों पर टिकैत असहज

लखनऊ महापंचायत के दौरान जब मीडिया ने राकेश टिकैत को घेरा और उनसे शक्ति प्रदर्शन तथा किसानों के बहाने आंदोलन को लंबा खींचने की मंशा पर सवाल दागे तो वे थोड़ा असहज हो गए। टिकैत ने किसानों की रैली को शक्ति प्रदर्शन बताने वाले आरोपों को ग़लत बताया। टिकैत ने कहा कि जब किसानों की मीटिंग बुलाई तो लोग आए हैं। ये सभी लोग परेशान हैं। ये कोई शक्ति प्रदर्शन नहीं है। उन्होंने उस आरोप को भी ग़लत बताया है कि कृषि क़ानून वापस ले लेने के ऐलान के बाद अब एक-एक करके कई मांगें इसलिए सामने आ रही हैं ताकि आंदोलन को लंबा खींचा जाए।

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किसानों के टेंट का हाल, राम और राष्ट्र पर नहीं बंटेंगे

दिलचस्प बात यह है कि लखनऊ में आज एमएसपी गारंटी कानून समेत जिन 6 नई मांगों के पूरा होने तक डटे रहने की बात किसान नेताओं ने की है, उसका किसानों पर ज्यादा असर नहीं दिख रहा। गाजीपुर बार्ड, टिकरी बार्डर और हरियाणा तथा पंजाब की सीमा वाले बार्डर से ज्यादातर किसान जा चुके हैं। गांव लौट रहे किसानों ने कहा कि हम पीएम की ओर से लिए गए फैसले का सम्मान करते हैं। लेकिन उन्हें अभी हमारे लिए और काम करने की जरूरत है जो हमें विश्वास है कि वे आगे जरूर करेंगे। लेकिन अब इतना तय है कि हम अब राम और राष्ट्र के मामले में किसी भी कीमत पर या किसी के बहकावे में नहीं आयेंगे और नहीं बंटेंगे।

एमएसपी के बहाने राजनीति जारी रखने की मंशा

दरअसल, लखनऊ के कांशीराम ईको पार्क में आज किसान नेताओं ने ‘एमएसपी अधिकार महापंचायत’ के नाम से एक संयुक्त सभा का आयोजन किया। इसमें भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने के साथ-साथ किसानों के कई मसले हल किए जाने की अभी भी ज़रूरत है। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि वो इन क़ानूनों को रद्द करने के एलान के बाद अब किसानों के बाक़ी बचे मसले हल करने के लिए उनसे बात नहीं करना चाहती। वहीं भाकियू के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक ने बताया कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव और लखीमपुर खीरी की घटना के मद्देनज़र हमने घोषणा की थी कि हम लखनऊ में किसान महापंचायत करेंगे। लेकिन किसानों को अब तक न्याय नहीं मिला। इसके साथ ही केंद्र के सामने अपनी 6 नई मांगों के साथ आंदोलन को जारी रखने का ऐलान भी किया।

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