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7 साल बाद भी इस जिलें में नहीं कोई ‘जन औषधि केंद्र’, मरीजों को खरीदनी पड़ रही महंगी दवाई

नवादा : गरीब ,बेवश व लाचार मरीजों को महंगी दवाइयां नहीं खरीदनी पड़े इसलिए प्रधानमंत्री ने साल 2015 में हर जिले में जन औषधि केंद्र खोलने की घोषणा की थी, ताकि जेनेरिक दवाएं कम दामों में मिल सके। इसको लेकर बिहार के भी तमाम जिलों में जन औषधि केंद्र खोलें गए, लेकिन इसके इतर इस योजना के 7 साल बीत जाने के बाद भी नवादा मे यह योजना धरातल पर नहीं उतर पाई है।

दरअसल, नवादा में आज से करीब 2 साल पहले 9 जन औषधि केंद्र आवंटित कर उसे चालू भी किया गया, लेकिन यह चालू सिर्फ और सिर्फ कागजों पर दिख। इसके बाद जब इस फर्जीवाड़ा का खुलासा हुआ तो आवंटन रद्द हो गया और इसके उपरांत अब तक कोई नया जन औषधि केंद्र का आवंटन नहीं हुआ। जिसके कारण जिलें के मरीजों को महंगी दवाइयां खरीदनी पड़ रही है।

बता दें कि, जन औषधि केंद्रों से 365 प्रकार की दवाइयां बेहद सस्ते दामों पर बेचने की बात कही गई थी। जिसमें सामान्य से लेकर अति गंभीर बीमारी की दवाएं भी शामिल थी। लेकिन नवादा जिले के लिए यह योजना फिलहाल एक सपना ही रह गया और यहां के मरीज मजबूरी में महंगी दवाई खरीदनी पड़ रही है।

क्या है योजना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मरीजों को सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने के लिए जुलाई 2015 में जन औषधि केंद्र खोलने की घोषणा की थी। इस योजना के तहत सस्ते दर पर उच्च गुणवत्ता वाली जेनरिक दवाईयों को उपलब्ध कराना था। जेनरिक दवाईयां ब्रांडेड या फार्मा की दवाईयों के मुकाबले सस्ती होती हैं, जबकि प्रभावशाली उनके बराबर ही होती है। प्रधानमंत्री जन औषधि अभियान मूलत: जनता को जागरूक करने के लिए शुरू किया गया हैं, ताकि जनता समझ सके कि ब्रांडेड मेडिसिन की तुलना में जेनेरिक मेडिसिन कम मूल्य पर उपलब्ध हैं साथ ही इसकी क्वालिटी में किसी तरह की कमी नहीं हैं। इस योजना के तहत आम नागरिकों को बाजार से तीन चार गुना कम दाम में दवा उपलब्ध कराना था।

अस्पतालों में सीमित रेंज की दवाइयां ही उपलब्ध, कफ सिरप तक नहीं

सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दवाई की व्यवस्था है लेकिन इसका दायरा बहुत छोटा है। प्रखंड स्तरीय अस्पतालों में सामान्य सर्दी ,बुखार, इंफेक्शन के लिए चलने वाली औसत दर्जे के एंटीबायोटिक, दर्दनिवारक, एलर्जी, आदि की दवा, कुछ इंजेक्शन और स्लाइन उपलब्ध है। जबकि सदर अस्पताल में कुछ और रोगों के लिए चलने वाली दवाएं। यहां तक कि सरकारी अस्पतालों में कई सालों से कफ सिरप तक नहीं है। लंबी बीमारियों के लिए दवा उपलब्ध नहीं है।​​​​​​​
ऐसे में अगर जिले में भी जन औषधि केंद्र होता तो हर साल मरीजों का करोड़ों रुपया बचता।​​​​​​​

कहां अटका मामला

दरअसल, जन औषधि केंद्र खोले जाने की घोषणा के बाद कई सालों तक इसकी प्रक्रिया ही चलती रही और जन औषधि केंद्र नहीं खुले। 2 साल पहले कागजी प्रक्रिया पूरी हुई और जिले के 9 स्थानों पर जन औषधि केंद्रों का आवंटन हो गया। सिर्फ आवंटन ही नहीं हुआ कागजों पर इसे कई महीनों तक चालू दिखा दिया गया जबकि धरातल पर ये जन औषधि केंद्र खुले ही नहीं। दरअसल इसमें बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा हुआ था और एक ही नाम से 9 जगह जन औषधि केंद्र आवंटित कर दिया गया। बताया जाता है कि इस मामले का खुलासा होने के बाद इसे रद्द कर दिया गया।