प्रकाश पर्व दीपावली की उमंग के तरंग में समूचा बिहार डूब चुका है। यह एकमात्र ऐसा त्योहार है जो अमावस्या के दिन मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति में दीपावली मनाए जाने के कई कारण हैं। इनमें प्रमुखता भगवान राम के 14 वर्ष बाद वनवास से पुनः अयोध्या लौटना ही है। इसके अलावा नरकासुर के अत्याचारी शासन के अंत, माँ लक्ष्मी के प्राकट्य इत्यादि रूप में भी हम इस त्योहार को मनाते हैं। शास्त्रों में लक्ष्मी को धन की आराध्या देवी माना गया है। माँ लक्ष्मी चल एवं अचल, दृश्य एवं अदृश्य सभी संबंधित सिद्धियों एवं निधियों की अधिष्ठात्रि साक्षात नारायणी हैं। भगवान गणेश रिद्धि—सिद्धि-वृद्धि, शुभ-लाभ के स्वामी तथा सभी अमंगल एवं विघ्नों के नाशक हैं। ये सत्बुद्धि प्रदान करने वाले हैं। अतः गणेश—लक्ष्मी का साथ-साथ पूजन करने से मंगल कल्याण व आनन्दपूर्ण जीवन निर्मित होता है।
दीपावली में दीपक की लौ हमेशा उपर की ओर उठती है जो उन्नति का प्रतीक है। दीपक में जलने वाली बाती सफेद रंग की होती है जो पवित्रता, सदाचार और शांति का प्रतीक है। प्रत्येक कार्तिक अमावस्या की रात्रि में लता दीपक विजय वर्ष का मनोरम रूप धरण करता है क्योंकि अमावस्या में ही सघन अंधकार को दूर भगाने की प्रकाश की सबसे अधिक उपादेयता होती है।
पूजन विधि एवं शुभ मुहूर्त
महालक्ष्मी पूजन विशेषकर महानिशिथ काल में करना शुभ माना गया है। स्थिर लग्न व प्रदोष काल का बड़ा महत्व माना गया है। अतः मान्य परंपरा के अनुसार महालक्ष्मी पूजन विधि सम्पन्न करने से श्री एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है। महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए महानिशा में पूजा उपासना कर भक्त समस्त वैभव प्राप्त करते हैं। दीपावली के दिन सायं गोधूली मुहूर्त से ही भगवान गणेश, माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती, माँ काली एवं कूबेर राज का पूजन किया जाता है। इस सभी देवी-देवताओं के कृपा से ही धन—धान्य, सुख-समृद्धि वर्ष भर बनी रहती है।
पूजा का शुभ मुहूर्त
दिवा 1.39 से 3.04 बजे तक
संध्या 5.32 से 7.29 बजे तक
रात्रि 12.01 से 2.15 बजे तक