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चुनाव की चुनौतियां व चुनावी मुद्दे

कोरोना ने मनुष्य जीवन को चुनौती दी है। ऐसे कठिन माहौल में चुनाव कराना भी चुनौती से कम नहीं है। लेकिन, मुख्य चुनाव आयुक्त की घोषणा के बाद अब यह तय हो गया है कि कोरोना संकट के बावजूद बिहार विधान सभा का चुनाव तय समय पर होगा। राजद, लोजपा सहित अन्य कई विपक्षी पार्टियों के चुनाव टालने की मांग को एक तरह से खारिज करते हुए चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि तमाम एहतियात बरतते हुए चुनाव समय पर कराए जाएंगे। वैसे, कमोबेश सभी राजनीतिक पार्टियां अंदरखाने में चुनाव की तैयारियां मई के बाद से ही शुरू कर चुकी हैं। प्रचार के तरीके, मतदाताओं की गोलबंदी और साधने के उपक्रमों को लेकर भले शुरुआत में थोड़ी जिच रही, मगर बदले हालात में सबने यह आकलन कर लिया था कि ‘डिजिटल’ और ‘वर्चुअल’ प्लेटफाॅर्म ही इस बार चुनाव में कारगर रहने वाला है।

महागठबंधन की मानें तो चुनाव के लिए अनुकूल नहीं है यह समय

दीगर है कि बिहार में अभी विधानसभा चुनाव शुरू होने में लगभग ढाई महीने की देरी हैं, लेकिन, निरंतर बढ़ते कोरोना संक्रमण के कारण इसके नियत समय पर होने को लेकर संशय के जो बादल मंडरा रहे थे, उसे एक इंटरव्यू में मुख्य चुनाव आयुक्त ने साफ कर दिया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुआई में सत्तारूढ़ एनडीए के प्रमुख घटक दलों, जनता दल यू और भारतीय जनता पार्टी ने तो चुनाव की तैयारियां जोर-शोर से शुरू भी कर दी हैं, लेकिन राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व में गठित महागठबंधन थोड़ा असमंजस की स्थिति में रहा। महागठबंधन के कतिपय नेताओं का मानना है कि अभी जनता के बीच जाने का अनुकूल समय नहीं है।

विपक्ष के नेताओं का तर्क है कि ऐसे समय में, जब काविड-19 संक्रमण ने विकराल रूप धारण कर लिया है और राज्य में मृतकों की संख्या रोज बढ़ती जा रही है, चुनाव करवाना प्रजातंत्र के साथ खिलवाड़ करने जैसा होगा। प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को निशाने बनाते हुए यहां तक आरोप लगा दिया कि वे अपनी कुर्सी बरकरार रखने के लिए लाशों के ढेर पर चुनाव करवाना चाहते हैं। विपक्ष की राय में राष्ट्रपति शासन लगा कर चुनाव को अगले छह महीने के लिए टाल देना ही उचित रहेगा।

लोग पोलिंग बूथ की बजाय नहीं जाएं श्मशान

नेता प्रतिपक्ष का आरोप है कि मुख्यमंत्री कोरोना की भयावहता की परवाह न करते हुए महज अपने पद के नवीनीकरण की जुगत में लगे हैं। वे अपने ब्लाॅग में लिखते हैं, उन्हें बिहारवासियों के स्वास्थ्य की बिलकुल चिंता नहीं है, अगर चिंता है तो मुख्यमंत्री की कुर्सी की। हम लाशों की ढेर पर चुनाव नहीं चाहते। हम नहीं चाहते कि तीन महीने बाद लोग पोलिंग बूथ की बजाय श्मशान जाएं।

संभावित हार को देखते हुए चुनाव टालने के बहाने

वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता व बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी तेजस्वी की तुलना ऐसे कमजोर विद्यार्थी से करते हैं जो परीक्षा टालने के सदैव बहाने खोजता रहता है। वे कहते हैं, ‘विधानसभा चुनाव समय पर हों या टल जाएं, एनडीए चुनाव आयोग के निर्णय का पालन करेगा। हम हर स्थिति के लिए तैयार हैं, लेकिन जैसे कमजोर विद्यार्थी परीक्षा टालने के मुद्दे खोजते हैं, वैसे ही राजद अपनी संभावित हार को देखते हुए चुनाव टालने के बहाने खोज रहा है।

सुशील मोदी के अनुसार, चुनाव में करीब तीन महीने का समय है, इसलिए इस मुद्दे पर ज्यादा सोचने के बजाय कोरोना संक्रमण से निपटने पर ध्यान देना चाहिए। एनडीए नेताओं का कहना है कि इस संबंध में चुनाव आयोग का जो भी फैसला होगा, वह सबको मान्य होना होना चाहिए। लेकिन, एनडीए का घटक दल, केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी विपक्ष के साथ है। मुख्य चुनाव आयुक्त जिस दिन बिहार में समय से चुनाव कराने की घोषणा करते हैं, उसी दिन लोजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष व केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान का बयान चुनाव टालने के संबंध में आता है। पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान ने तो बजाप्ते चुनाव आयोग को पत्र लिख कर कहा है कि कोरोना संक्रमण के कारण न सिर्फ लोगों को खतरा होगा बल्कि मतदान प्रतिशत भी काफी कम होगा।

चुनाव आयोग के लिए भी फैसला लेना आसान नहीं

नेताओं के रुख को देखते हुए आमतौर पर यह माना जा रहा था कि चुनाव आयोग के लिए भी फैसला लेना आसान नहीं होगा। वैसे, इसके पहले पिछले महीने भी चुनाव आयोग ने नियत समय पर चुनाव होने की बात कही थी, लेकिन तब विपक्ष का कहना था कि परिस्थितियां अभी चुनाव लायक नहीं हैं। विपक्ष डिजिटल माध्यम से भी चुनाव कराने का विरोध कर रहा था। फिलहाल, आयोग ने राज्य के प्रमुख राजनैतिक दलों से चुनाव प्रचार के तरीकों को लेकर उनके सुझाव पहले 31 जुलाई, फिर 11 अगस्त, 2020 तक मांगे थे, ताकि इस संबंध में कोई फैसला किया जा सके। वैस, जुलाई के अंत में ही, राजद समेत नौ विपक्षी दलों ने आयोग को एक ज्ञापन सौंपकर कोरोना संक्रमण की स्थिति को ध्यान में रखकर ही चुनाव संबंधी कोई निर्णय लेने का आग्रह किया था। राजद ने तो 30 जुलाई को एक और पत्र लिख कर चुनाव आयोग से बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की थी।

सुनिश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि यह स्थिति कब तक बरकरार रहेगी

इसमें दो मत नहीं कि बिहार में जुलाई में कोरोना संक्रमण की संख्या में अचानक उछाल आया जिससे स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई-सी लगती थी। 16 जुलाई से पूरे बिहार में 15 दिन के लिए फिर लॉकडाउन लगाया गया, लेकिन स्थिति संभलने का नाम नहीं ले रही है। अभी भी कई जिलों में स्थिति नियंत्रण में नहीं है। एक तरह से पूरे राज्य में कोरोना संक्रमण की स्थिति अभी भयावह बनी हुई है। मगर, यह भी सुनिश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि यह स्थिति कब तक बरकरार रहेगी।

पटना स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) सहित तमाम कोविड स्पेशल अस्पताल मरीजों से भरे पड़े हैं। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए ही नीतीश सरकार ने पटना के कई निजी अस्पतालों में कोरोना का इलाज करने की पहल की है। लेकिन, विशेषज्ञों के अनुसार यह कहना मुश्किल है कि स्थिति आगामी चुनाव तक नियंत्रण में आ जाएगी।

चारा घोटाला में सजायाफ्ता व रांची के अस्पताल में इलाजरत, लालू प्रसाद ने भी नीतीश और जद-यू नेताओं की वर्चुअल रैलियों पर ट्विटर के जरिए निशाना साधा है। राजद प्रमुख ने ट्वीट किया, ‘बिहार में कोरोना के कारण स्थिति दयनीय, अराजक और विस्फोटक है। स्वास्थ्य व्यवस्था दम तोड़ चुकी है। कोरोना नियंत्रण के लिए सरकार को बाज बनना था लेकिन जद-यू नेता लोगों का शिकार करने के लिए ‘गिद्ध’ बनकर रैली कर रहे हैं। मुख्यमंत्री चार महीने में चार बार भी आवास से बाहर नहीं निकले।

बिहार में नवंबर के अंतिम सप्ताह में नई सरकार का गठन हो जाना निर्धारित है। राजनैतिक विशेषज्ञों के अनुसार, चुनाव टलने की स्थिति में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है और उस अवधि में सत्ता की बागडोर परोक्ष रूप से भाजपा के हाथों होगी। एनडीए नेता राजद नेताओं के चुनाव टालने के तर्क को हास्यास्पद करार देते हैं। जद-यू के प्रधान राष्ट्रीय महासचिव के.सी. त्यागी कहते हैं कि जब अमेरिका में इस परिस्थिति में चुनाव हो सकते हैं तो बिहार में क्यों नहीं? वे इसे विपक्ष का डर और घबराहट से उपजा कुतर्क करार देते हैं।

डिजिटल माध्यम से चुनाव होने पर बहुत सारे लोग वोट देने के अधिकार से वंचित हो जाएंगे

जवाब में तेजस्वी पूछते हैं कि क्या माननीय मुख्यमंत्री बिहार में अमेरिका से अधिक लोगों को मरवाना चाहते हैं? वे यह भी कहते हैं कि अमेरिका में चुनाव परंपरागत रूप से बैलेट पेपर से होते हैं, न कि ईवीएम से। वैसे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी अब अपने देश में चुनाव स्थगित करने की वकालत करने लगे हैं। राजद नेताओं का यह भी कहना है कि बिहार में मात्र 34 प्रतिशत आबादी के पास स्मार्टफोन हैं, इसलिए डिजिटल माध्यम से चुनाव होने पर बहुत सारे लोग वोट देने के अधिकार से वंचित हो जाएंगे।

मतपेटी से लालू का जिन्न निकलने का वह दौर क्या चुनाव की पारदर्शिता का परिणाम था?’

राजद की परंपरागत ढंग से चुनाव करने की मांग को चुनाव आयोग भी खारिज कर चुका है। इस बाबत भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी कहते हैं कि बिहार में चुनावों में धनबल और बाहुबल का सबसे ज्यादा इस्तेमाल कांग्रेस और राजद ने ही किया। जिनके राज में बिहार बूथलूट और चुनावी हिंसा के लिए बदनाम था, वे आज अपने दाग धोना चाहते हैं। ज्ञापन देने वाले बताएं कि बैलेट पेपर के पुराने तरीके से चुनाव करने की मांग क्यों की जा रही है? मतपेटी से लालू का जिन्न निकलने का वह दौर क्या चुनाव की पारदर्शिता का परिणाम था?

दरअसल, लालू प्रसाद के उत्थान-पतन के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव होगा जब वे जेल में रहेंगे। अगर वे जमानत पर बाहर आते हैं और प्रचार में वापसी करते हैं, तो चुनाव का प्रमुख मुद्दा आसानी से लालू के 15 साल बनाम नीतीश के 15 साल हो जाएगा। वैसे, भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी पहले ही कह चुके हैं, लालू प्रसाद अगर जेल से बाहर आ जाते हैं, तो उनका काम और आसान हो जाएगा।

कोरोना के दौर में सुरक्षित चुनाव को लेकर चुनाव आयोग कर रहा काम

भाजपा प्रवक्ता निखिल आनंद का मानना है कि बिहार चुनाव पर निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ चुनाव आयोग को है। चुनाव आयोग स्वच्छ, स्वतंत्र और सुरक्षित चुनाव कराने को प्रतिबद्ध है। वे कहते हैं, ‘लोकतंत्र के लिहाज से समय पर चुनाव कराना चुनाव आयोग की चिंता व जिम्मेवारी है। कोरोना के दौर में सुरक्षित चुनाव को लेकर चुनाव आयोग काम कर रहा है।’

वैसे, एक तथ्य यह भी है कि कोरोना का बढ़ता संकट चुनाव के पूर्व नीतीश सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती के रूप उभरा है। इसी दौर में राज्य के 16 जिलों में आई बाढ़ भी चुनौती बनी हुई है। अगर कोरोना पर जल्दी काबू न किया गया, तो लोगों के बढ़ते गुस्से का खामियाजा सत्तारूढ़ गठबंधन को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उठाना पड़ सकता है। फिलहाल राजनीतिक दलों के बीच भी असमंजस की स्थिति बरकरार है। चुनाव आयोग भले तय समय पर चुनाव कराने की घोषणा कर चुका है, मगर उसे भी तमाम तरह के एहतियात बरतने की चुनौती का सामना करना होगा।

कोरोना संकट के बीच चुनावी मुद्दे

फिलहाल बिहार की राजनीति कोरोना के इर्द-गिर्द ही घूम रही है। एनडीए जहां कोरोना के दौरान बेहतर व्यवस्था, क्वारैंटाइन सेंटर्स, गरीबों को छठ तक अनाज, जनधन खाते में पैसा, मुफ्त गैस सिलेंडर आदि देने की बात प्रमुखता से रख रही है वहीं, राजद और अन्य पार्टियां समय पर सही कदम न उठाने और कोरोना बढ़ने के लिए सरकार की लापरवाही को मुद्दा बना रही हैं। इन सब मुद्दों के बीच वोटों के धुव्रीकरण में अहम भूमिका निभाने वाला सांप्रदायिकता व आरक्षण का कार्ड फिलहाल यहां हाशिए पर है।

वैसे, निर्विवाद तौर पर विधानसभा चुनाव में सबसे अहम भूमिका जातिगत समीकरणों की रहती हैं। पार्टियां अपने कोर वोट बैंक और जातियों को अपनी ओर करने का भरपूर प्रयास करती है। फ्लोटिंग वोटर्स और युवाओं को अपनी ओर करने के लिए राजनीतिक पार्टियां बेरोजगारी, शिक्षा, पलायन आदि मुद्दे उठाती रही हैं, इस बार भी ऐसे मुद्दों को उभारने का जरूर प्रयास करेगी। विपक्ष कानून-व्यवस्था के मुद्दे को जोर-शोर से उठा सकती है। नीतीश कुमार की सेक्यूलर छवि अभी तक बरकरार है। विकास उनका मुद्दा बना रहेगा। गांवों में घर-घर अनाज और किसानों के खातों में पैसा पहुंचने का फायदा भाजपा उठाने की कोशिश करेगी। कोरोना संकट के दौरान केन्द्र सरकार से मिली मदद, प्रवासियों को ट्रेनों से घर पहुंचाने, क्वरैंटाइन सेंटर में रहने वालों को एक-एक हजार रुपये देने, अन्य राज्यों में फंसे बिहारियों के खाते में राशि देने आदि मुद्दों को भी सत्ताधारी गठबंधन उठायेगी। कोरोना काल में प्रवासी श्रमिकों की स्कील मैपिंग, मनरेगा व अन्य योजनाओं के तहत रोजगार उपलब्ध कराने व प्रधानमंत्री रोजगार अभियान की उपलब्धियों को भी उठाने की कोशिश की जाएगी।

विकासवाद बनाम लालूवाद

राजद अपने माय (मुसलमान और यादव) समीकरण को साधने व अन्य पिछड़ी जातियों को अपने पाले में करने का जतन करेगा। तेजस्वी के नेतृत्व में राजद का टारगेट युवा वोटर भी होंगे। राजद एक बार फिर ‘आरक्षण खतरे में है’ का नारा उछाल पिछड़े, दलित वोटों को अपनी ओर लामबंद करने की कोशिश कर सकता है। भाजपा सवर्ण वोट के अतिरिक्त अन्य जातियों में अपनी पैठ बनाने की कोशिश करेगी। जदयू अति पिछड़े और महादलित वोटों पर नजर रखे हुए है। करीब 04 फीसदी कुर्मी वोट जदयू के पाले में है। वहीं शराब बंदी, बाल विवाह निषेद्य, दहेज प्रथा के खिलाफ अभियान और महिला आरक्षण के कारण जदयू सभी वर्गों की महिला वोटर्स पर भी अपनी पकड़ मजबूत करना चाहेगा। महिला स्वयं सहायता समूह (जीविका) के माध्यम से भी बिहार सरकार महिलाओं को अपनी ओर खींच रही है। जदयू-भाजपा की कोशिश हर हाल में इस चुनाव का मुद्दा ‘विकासवाद बनाम लालूवाद’ बनाने का होगा।

चुनावी मुद्दों पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ड. संजय जायसवाल पहले ही कह चुके हैं कि बीते 15 वर्षों में बिजली, सड़क, पानी और कानून-व्यवस्था के लिए हमने जो काम किए हैं, उसके साथ विकासवाद का मुद्दा ही प्रमुख होगा। साथ ही केंद्र सरकार का 20 लाख करोड़ का पैकेज कैसे छोटे दुकानदार, रेहड़ी वालों, किसानों और गरीब के लिए फायदेमंद है, इसे भी प्रचार का हिस्सा बनाया जायेगा। जदयू के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) आरसीपी सिंह कहते हैं कि हमें हमारे काम पर ही पूरा भरोसा है, उसी के दम पर मतदाताओं के बीच जाएंगे। युवा, महिलाओं, अल्पसंख्यक, महादलित के हित में राज्य सरकार ने इतने सारे कार्य किए हैं कि हमें अन्य किसी मुद्दे की जरूरत ही नहीं है।