पटना : राजनीतिक अस्थिरता में विकास संभव नहीं हो सकता। 1961 से लेकर 90 तक के बिहार की राजनीति को देखें तो कोई भी मुख्यमंत्री ठीक से अपना कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाया। विकास के लिए दूसरी शर्त है केंद्र और राज्य में समन्वय हो। और बिहार की राजनीतिक घटनाओं का दस्तावेज ई करण भी जरूरी है, ताकि आने वाली पीढ़ी को इसकी जानकारी मिले। इस दिशा में वरिष्ठ पत्रकार कुमार दिनेश की लिखित पुस्तक ‘डबल इंजन सरकार’ अत्यंत ही प्रशंसनीय है। उक्त बातें बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कुमार दिनेश लिखित पुस्तक का रविवार को विमोचन करते हुए कहीं।
उपमुख्यमंत्री ने कहा कि श्री बाबू के बाद 2005 में बिहार की विकास यात्रा फिर से शुरू हुई। बिहार में एनडीए की अलग-अलग सरकारों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हमारी स्पर्धा खुद से ही है जैसे एनडीए -2 की तुलना लोग एनडीए वन से करते हैं. इसी तरह वर्तमान कि एनडीए थ्री सरकार की तुलना एनडीए वन और एनडीए-2 से करते हैं। उपमुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार के युवा जब महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के राज्यों से घूम कर आते हैं, तो वह कहते हैं कि बिहार में वैसा विकास नहीं हुआ। यह विकास मापने का उचित पैमाना नहीं है, अगर 30 साल पहले कि बिहार और अब के बिहार के आधार पर विकास को देखेंगे तो बिहार में विकास नजर आएगा। सुशील कुमार मोदी ने बिहार से एक अलग राज्य झारखंड बनने के विषय में कहा कि संयुक्त बिहार से कटकर झारखंड राज्य का निर्माण होना बिहार के लिए वरदान साबित हुआ, क्योंकि संयुक्त बिहार में जितनी भी योजनाएं आती थी वह सब दक्षिण बिहार (अब झारखंड) में चली गईं।
इस अवसर पर पुस्तक के लेखक कुमार दिनेश ने कहा कि उनकी यह पुस्तक ‘डबल इंजन सरकार’ पिछले दशक से लेकर इस वर्ष तक के बदलते राजनीतिक समीकरण के परिप्रेक्ष्य में शासकीय और सरकारी क्रियाकलापों और कार्य प्रणालियों के बारे में है। पुस्तक में राजनीतिक घटना से जुड़े कई आंकड़े और तथ्य को प्रामाणिकता के साथ दिया गया है या आने वाली पीढ़ी को बिहार के राजनीतिक इतिहास के एक महत्वपूर्ण कालखंड के बारे में बताने में सहायक होगी ऐसा उनका विश्वास है।
दैनिक जागरण के समाचार संपादक भारतीय बसंत कुमार ने वरिष्ठ पत्रकार बलबीर दत्त की उक्ति की चर्चा करते हुए कुमार दिनेश को राजनीत की कैनवास पर अच्छे चित्रकार की तरह बताया। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक के पृष्ठों पर चाणक्य के सूक्त दिए हुए हैं और दिलचस्प यह है कि चाणक्य के उन शब्दों का सीधा संबंध बिहार के वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों से है। भारतीय बसंत कुमार ने कुमार दिनेश की पुस्तक को अभिधा, लक्षणा, व्यंजना के आधार पर संतुलित पाया।
विमोचन कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर ने कुमार दिनेश को निष्पक्ष पत्रकार बताते हुए कहा कि लेखक ने अपनी पुस्तक में किसी भी नेता या किसी भी विशेष राजनीतिक दल को बख्शा नहीं है और उन्होंने बिहार की पिछले 30 वर्षों के राजनीतिक घटनाक्रमों को क्रमबद्ध रूप से दस्तावेजी कारण किया है। उन्होंने कहा कि पत्रकार के तौर पर कुमार दिनेश की योग्यता पर कोई सवाल नहीं उठा सकता । लेकिन, भाषाई स्तर पर भी उनमें जरा सी लापरवाही नहीं है। भाषा में साहित्यिक समावेश होने से पुस्तक दिलचस्प और आकर्षक बन पड़ी है।
पुस्तक के बारे में बताते हुए वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी ने कहा कि इस पुस्तक में पिछले 15 वर्षों में बदली सरकारें और बदले राजनीतिक समीकरणों का विश्लेषणात्मक प्रस्तुतीकरण है, जो युवा पत्रकारों और शोधार्थियों के लिए एक रेफरेंस ग्रंथ का काम करेगी। उन्होंने पुस्तक से कुछ अंशों को पढ़कर उपस्थित दर्शकों को सुनाया और पुस्तक में वर्णित प्रमुख अध्याय विषय वस्तु और टिप्पणियों को भी साझा किया।
वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी ने कुमार दिनेश को एक सजग पत्रकार करार देते हुए कहा कि पत्रकार जब सीधा और सपाट हो जाए तो उसमें वह धार नहीं बचती। पुलिस नेता और पत्रकार यह तीनों कभी सपाट नहीं हो सकते और यही प्रदेश और देश के सार्वजनिक जीवन की सच्चाई है।
समारोह में उपस्थित प्रकाशक प्रभात प्रकाशन के निदेशक पीयूष कुमार ने कहा कि उन्हें खुशी है कि ऐसे महत्वपूर्ण विषय पर उन्होंने पुस्तक प्रकाशित करने का अवसर मिला। उन्होंने बताया कि बिहार के 200 से अधिक लेखकों की पुस्तकों को प्रभात प्रकाशन अब तक प्रकाशित कर चुका है। कुमार दिनेश की पहली पुस्तक सुरंग के पार को भी प्रभात प्रकाशन ने ही छापा था।
इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार देवेन्द्र मिश्र, नवीन रस्तोगी, विश्व संवाद केंद्र के सम्पादक संजीव कुमार, समाजसेवी संजीव यादव समेत महाविद्यालय के विद्यार्थी बुद्धजीवी और पुस्तक प्रेमी उपस्थित थे। मंच संचालन ध्रुव कुमार ने किया।