पटना : अटल जी के बगैर दीपावली कैसे मनती। इसीलिए अटल जी ने देशवासियों की पुकार सुनी और निधन के ढाई माह बाद एक बार फिर वे हम सबके बीच उपस्थित हो दीपावली के जश्न में शामिल हो गए। लेकिन इस बार एक नए ही अंदाज और शख्सियत में। दरअसल अटल जी ने दीपावली पर कई सुंदर कविताएं लिखी हैं। उनकी लिखी इन कविताओं को लोग दीपावली के मौके पर जमकर शेयर कर रहे हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का इसी साल 16 अगस्त को 93 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। अटल जी अपनी दूरगामी सोच, पोखरण टेस्ट, कारगिल में मिली जीत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का कद बढ़ाने के लिये हमेशा याद किए जायेंगे। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी एक कोमल किंतु दृढ़ हृदय वाले कवि भी थे। उन्हें भारतीय त्योहारों से भी बहुत प्रेम था। इसकी गवाही त्योहारों पर लिखी उनकी कविताएं देती हैं।
न होकर भी हमारे बीच मौजूद हैं अटल जी
आज अटल जी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन लोग उनकी कविताओं को नहीं भूले हैं। यही कारण है कि दीपावली के नजदीक आते ही लोगों ने वॉट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर उनकी कविताओं को शेयर करना शुरू कर दिया है। बहुत से लोगों ने तो उनकी कविताओं का स्टेट्स भी लगा लिया और उनकी कविताओं को दनादन पोस्ट करना शुरू कर दिया है। लोग इन कविताओं को दिवाली के बधाई संदेशों के तौर पर भी अपने सगे-संबंधियों, दोस्तों और रिश्तेदारों को फॉरवर्ड कर रहे हैं।
अटल जी ने दीपावली पर कई कविताएं लिखीं। चंद पंक्तियां इस प्रकार हैं:—
जब प्रेम के दीपक जलते हों
सपने जब सच में बदलते हों
मन में हो मधुरता भावों की
जब लहकें फसलें चावों की
उत्साह की आभा होती है
उस रोज़ दिवाली होती है
जब प्रेम से मीत बुलाते हों
दुश्मन भी गले लगाते हों
जब कहीं किसी से वैर न हो
सब अपने हों कोई ग़ैर न हो
अपनत्व की आभा होती है
उस रोज़ दिवाली होती है
जब तन-मन-जीवन सज जाए
सद्भाव के बाजे बज जाएं
महकाए खुशबू खुशियों की
मुस्काए चंदनिया सुधियों की
तृप्ति की आभा होती है
उस रोज़ दिवाली होती है
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ
आओ फिर से दिया जलाएँ
-अटल बिहारी वाजपेयी