पटना : दीपावली के मौके पर गणेश-लक्ष्मी की पूजा के साथ-साथ बेटियां घरौंदा और रंगोली बनाकर उसकी पूजा करती हैं। अब जमाना हाईटेक हो गया है। नई पीढ़ी परंपराओं से दूर होती जा रही है। उसे यह भी नहीं पता कि माता—पिता घर में जो रीति निभाते हैं उसका मूल मतलब क्या है? दीपावली में भी धनतेरस के दिन से ही कुबेर पूजा, आभूषण—बर्तन खरीद, लक्ष्मी—गणेश पूजा, घरौंदा भरना, रंगोली बनाना आदि परंपराएं निभानी शुरू हो जाती हैं। आइए हम जानें कि दीपावली के दिन बेटियां द्वारा घरौंदा बनाने का क्या है शास्त्रीय संदेश?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, श्रीराम जब चौदह वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या लौटे तो उनके आने की खुशी में अयोध्यावासियों ने अपने-अपने घरों में दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था। लोगों ने यह माना कि अयोध्या नगरी उनके आगमन से एक बार फिर बस गई है। इसी परम्परा के कारण घरौंदा बनाकर उसे सजाने का प्रचलन बढ़ा।
घरौंदा पूजा पर चढ़ा आधुनिकता का रंग
घरौंदा पूजा में अब आधुनिकता का रंग चढ़ गया है। आधुनिक युग में लोग इस पुरानी परंपरा से कटते जा रहे हैं। अब घरों में मिट्टी का घरौंदे की जगह थर्मोकोल, कूट, चदरा और टीन निर्मित बाजार में बिक रहे घरौंदा खरीद कर पूजा की रस्म अदायगी करते हैं। पहले महिलाएं, युवतियां मिट्टी से घरौंदा तैयार करती थी। फिर उसको रंगों से सजाती थी। मिट्टी के दीये जलाकर रंग-बिरंगे मिठाई, सात प्रकार का भुंजा आदि मिट्टी के बर्तन में भरकर विधि-विधान के साथ महिलाएं घरौंदा पूजन करती थी। इसके बाद आतिशबाजी की जाती थी। लेकिन यह परंपरा शहर में तो पूरी तरह समाप्त होती नजर आ रही है। ग्रामीण अंचलों में थोड़ी बहुत इसकी रस्म अदायगी भले ही की जा रही है। घरौंदा में सजाने के लिये कुल्हिया-चुकिया का प्रयोग किया जाता है और उसमें अविवाहित लड़कियां लाबा, फरही ..मिष्ठान भरती हैं। इसके पीछे मुख्य वजह रहती है कि भविष्य में जब वह शादी के बाद ससुराल जायें तो वहां भी भंडार अनाज से भरा रहे। कुल्हियां चुकिया में भरे अन्न का प्रयोग वह स्वयं नहीं करती बल्कि इसे अपने भाई को खिलाती हैं क्योंकि घर की रक्षा और उसका भार वहन करने का दायित्व पुरुष के कंधे पर रहता है।
रंगोली लगा देती है घर को चार चांद
घरौंदा से खेलना लड़िकियों को काफी भाता है। इस कारण वह इसे इस तरह से सजाती हैं जैसे वह उनका अपना घर हो। घरौंदा की सजावट के लिए तरह-तरह के रंग-बिरंगे कागज, फूल, साथ ही वह इसके अगल बगल दीये का प्रयोग करती हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि इससे उसके घर में अंधेरा नहीं हो और सारा घर रोशनी कायम रहे। आधुनिक दौर में घरौंदा एक मंजिला से लेकर दो मंजिला तक बनाये जाने की परंपरा है। दीपावली के दौरान ही घर में रंगोली बनाये जाने की भी परंपरा है। दीपावली के दिन घर की साज-सज्जा पर विशेष ध्यान दिया जाता है और रंगोली घर को चार चांद लगा देती है। घर चाहे कितना भी अधिक सुंदर हो यदि रंगोली घर के मुख्य द्वार पर नहीं सजायी गयी तो घर की सुंदरता अधूरी सी लगती है। सामान्य के तौर पर रंगोली का निर्माण चावल, गेंहू, मैदा, पेंट और अबीर से बनाया जाता है लेकिन सर्वश्रेष्ठ रंगोली फूलों से बनायी जाती है। इसके लिये गेंदा और गुलाब के साथ हरसिंगार के पूलों का इस्तेमाल किया जाता है जो देखने में सुंदर तो लगता ही है साथ ही सात्विकता को भी उजागर करता है ।