पटना : वह पेशेंट नहीं। खतरनाक सोना लूटेरा रवि है। रवि गुप्ता। अत्यंत शातिर। चकमा देने में माहिर। वह किसी फिल्म के किरदार से कम नहीं। इतना शातिर है वह कि लूटकांड को अंजाम देने के पहले करता है-रिसर्च। रेकी भी कह सकते हैं। पर, उसकी रेकी करने की शैली कोई शार्ट रिसर्च से कम नहीं।
डाका के पहले रिसर्च करता था रवि
पंचवटी रत्नावली में लूट को अंजाम देने के बाद पुलिस द्वारा दबोचे गये मास्टरमाइंड पेशेंट अर्थात रवि गुप्ता ने जब पुलिस को बताया कि वह एक कांड के पहले तीन से छह महीने तक न केवल टार्गेट या दुकान के मालिक बल्कि उस टार्गेट में कार्यरत कर्मियों की जानकारी तो जुटाता ही है, दुकान की कैपेसिटी, एरिया का भूगोल व समाजशास्त्र की भी जानकारी रख लेता है। तथ्यों को जुटाने में अगर कन्फयूजन हुआ तो वह क्रॉस चेक करने से भी नहीं चूकता। प्रायः अपने साथ वह यंग लड़कों को रखता है।
गैंग्स आफ वासेपुर से है उसका संबंध
उसने पुलिस को उगला है कि धनबाद के गैंग्स आफ वासेपुर से भी उसका संबंध है। उसने बाजाप्ता पंचवटी लूटकांड में भी वहां के अपराधियों की मदद ली थी।
आपरेशनल कैनवास लम्बा-चैड़ा है पेशेंट का
वह दिन के दोपहर में ही डाका डालना अधिक उपयुक्त समझता है क्योंकि उस समय ग्राहकों की भीड़ दुकान में कम रहती है और लंच के बाद कार्यरत कर्मी अलसाये से- होते हैं। बकौल-रवि उसने पहले वहां के सबसे नजदीक के थाने की दूरी मापी, तब भागने के रास्ते देखे और फिर दूसरे और तीसरे थाने की दूरी। ऐसा इसलिए कि किसी भी तरह की सूचना पुलिस को मिलने के बाद वह आसानी से भाग सके। वह खुद की और अपने सहकर्मियों की पुख्ता सुरक्षा की व्यवस्था देख लेता है।
हालांकि, इतनी तेजी के बाद भी वह अपने खतरनाक इरादे को अपनी ही शैली में बयान करता था। मसलन-दुकान में घुसते ही शांति से पिस्तौल तान कर कर्मियों से पूछता था कि इंश्योरेंस कराए हो न? खुद का परिचय देते हुए कहता था-मोस्टवांटेड हूं, मैं। खबरदार। शूट कर दूंगा।
पेशेंट उर्फ रवि द्वारा डाली गयी डकैतियों का कैनवास बहुत-लम्बा चैड़ा है। मसलन, असम, झारखंड तथा यूपी। उसकी गिरफ्तारी के बाद पुलिस इसे अपनी उपलिब्ध मानते हुए उसे रिमांड पर लेकर अन्य तथ्यों की पड़ताल करने वाली है।