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दधिचि परंपरा के नायक सुनील

विदेश जाकर जिस इंसान ने जबरदस्त सफलता हासिल की, अकूत दौलत और शोहरत कमाई, यदि अचानक ही उसका सबकुछ छिन जाए तो फिर जिंदगी में अंधेरे के सिवाए कुछ नहीं बचता। कुछ ऐसा ही हुआ एनआरआई सुनील आनंद के साथ। उनका इकलौता जवान बेटा संजय आनंद एक सड़क हादसे में दुनिया से चला गया। उनकी जिंदगी बेरंग-बेरस हो बिल्कुल ठहर सी गयी। जवान बेटे के गम ने थोड़े समय के लिए सुनील आनंद के जीवन को बेमानी जरूर कर दिया। लेकिन ऐसी विकट घड़ी में बेटे ने ही उन्हें सहारा भी दिया। बेटे की पूर्व में कही बातें उनके सामने घूमने लगीं और उसी पल उन्हें जीने का मकसद भी मिल गया। अब वे भारत, खासकर बिहार के लोगों के बीच दधिचि परंपरा के नायक के रूप में एक नए अवतार में उभरे हैं।

बिहार में 23.5 लाख लोग विकलांग

संजय आनंद काफी धार्मिक अभिरुचि का तरुण था। उसे गुरु के घर, खासकर पटना साहिब स्थित गुरु गोविंद सिंह की जन्मस्थली से बेहद लगाव था। वह अक्सर वहां सेवा के लिए जाने की इच्छा व्यक्त किया करता था। इसी को ध्यान में रखते हुए उन्हांेने कर्म, सेवा और भक्ति को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। इसके तहत भारत के विभिन्न भागों में उन्होंने कई अस्पताल खोले। अपने इकलौते बेटे की इच्छा को हकीकत में बदलने के लिए इसी कड़ी में उन्होंने 2001 में पटना में एक विकलांग अस्पताल सह रिसर्च सेन्टर की स्थापना की। विकलांगता का दंश झेल रहे बिहार को इससे पूर्णतः मुक्त करने का उन्होंने संकल्प लिया है। आज बिहार के साढ़े तेईस लाख लोग विकलांगता से ग्रस्त हैं, जबकि भारत में इनकी संख्या करीब ढाई करोड़ है।

बिहार के सीएम नीतीश कुमार एवं नन्द किशोर यादव के साथ संजय आनंद

भारत के पंजाब प्रांत से अमेरिका गए सुनील आनंद ने अपने पुरुषार्थ से न्यूयार्क शहर में पैसे के साथ ही खूब प्रतिष्ठा अर्जित की। आज वे अमेरिका के सम्मानित नागरिक भी हंै। अध्यात्म में दृढ़ आस्था रखने वाले सुनील आनंद ने जब अपने युवा पुत्र को खो दिया, तब उनकी आस्था अनास्था में बदलने लगी। तभी उन्हें अंतःप्ररण हुई कि बेटे संजय के अंगों को दान कर दें। युवा और पूर्णतः स्वस्थ संजय के अंग यहां तक कि उसके चर्म और हड्डियां भी दूसरों के काम आ गईं। उसके विभिन्न अंग दो सौ लोगों के शरीर में प्रत्यारोपित हैं।

न्यूयार्क से पटना तक सेवा प्रकल्प

सुनील आनंद कहते हैं कि ध्यान और सत्संग के साथ ही सेवा और समर्पण भी आवश्यक है। जब आध्यात्मिक संस्कार कमजोर पड़ने लगते हैं तब सेवा और समर्पण ही हमें संभालते हैं और फिर से उठ खड़ा होने की ऊर्जा प्रदान करते हैं। लाचार लोगों की सेवा के लिए भारत में कई अस्पतालों की स्थापना कराने वाले सुनील आनंद का सपना है कि गुरुगोविंद सिंहजी महाराज की जन्मभूमि बिहार विकलांग मुक्त बने। चालीस वर्ष पूर्व भारत छोड़कर अमेरिका जाने वाले सुनील आनंद अब बेटे की इच्छा पूर्ण करने के एकमात्र ध्येय में लगे हैं। इसके लिए उन्होंने संजय आनन्द फाउण्डेशन का निर्माण किया जो पीड़ित मानवता की सेवा के लिए विगत कई वर्षों से कार्यरत हैं। संजय आनंद के पिता सुनील आनंद इस केंद्र के प्रमुख स्तंभ बन गए हैं।

पटना-गया राजकीय उच्च मार्ग पर, पहाड़ी से आगे और बैरिया से थोड़ा पहले, भारत विकास विकलांग पुनर्वास केन्द्र एवं संजय आनंद विकलांग अस्पताल सह रिसर्च सेन्टर है। भारत विकास परिषद के विकलांग न्यास व संजय आनन्द फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रूप से संचालित इस परिसर में विकलांगता अभिशाप या लाचारी जैसे शब्दों का उच्चारण मना है। विकलांगता मुक्त बिहार के अनुष्ठान को पूर्ण करने में अहर्निश लगे इस मंदिर में आने वालों को अपने अंदर छिपी दिव्य चेतना का अहसास हो जाता है। यहां आने वालों से निवेदन किया जाता है कि राह चलते जहां दिव्यांग देखें, उन्हें हमारे केन्द्र पर भेजकर पुण्य के भागी बनेें।

बिहार, झारखंड व नेपाल के लोगों को लाभ

विमल जैन (ऊपर) देशबंधु गुप्ता (नीचे)

न्यास के महासचिव और मुख्य स्तंभ बिमल जैन बताते हैं कि 17 दिसम्बर, 1999 को शुरू हुई सेवा की यह यात्रा बिहार और झारखंड के अलावा नेपाल और अन्य राज्यों लोगों के लिए राहत का केन्द्र बन गया है। इस केन्द्र में दूर-दूर से आने वाले निर्धन दिव्यांगों को कैलीपर, कृत्रिम पैर, वैशाखी, आर्थोशूज, श्रवण यंत्र, ह्नील चेयर, वाकर, तिपहिया साइकिल देने के साथ-साथ पोलियो एवं विकृत शरीर वालों की करेक्टिव शल्य चिकित्सा निःशुल्क की जाती है। भारत विकास परिषद् के पूर्व अध्यक्ष व विकलांग न्यास के अध्यक्ष अधिवक्ता देशबन्धु गुप्ता व भारतवंशी अमेरिकी  सुनील आनन्द ने इस केंद्र को अत्याधुनिक बनाने का सपना देखा था, जो अब साकार हो चला है।

सुनील आनंद, संजय आनन्द फाउंडेशन, न्यूयार्क के अध्यक्ष हैं। सेवा के इस यज्ञ में संजय आनंद चैरिटेबुल फांउडेशन का अमूल्य योगदान हमारे संकल्प को संबल प्रदान करता है। हमारा यह केन्द्र किसी खैराती अस्पताल की तरह संचालित नहीं है वरन् एक अत्याधुनिक अस्पताल के रूप में कार्यरत है। इस केंद्र के चिकित्सकों द्वारा अब तक 70 हजार से अधिक दिव्यांगों की जंाच की गई है। वहीं 30 हजार से अधिक दिव्यांगों को कृत्रिम पैर, कैलीपर्स, आर्थोशूज, श्रवण यंत्र, तिपहिया साइकिल जैसे उपकरण उपलब्ध कराए गए हैं। करीब सात हजार शल्य चिकित्सा व सहायता शिविरों के आयोजन अब तक किए गए हंै। इस केंद्र मे अब प्रति माह चिकित्सा शिविर का आयोजन होता है।

अस्पताल का संचालन कुछ व्यक्ति विशेष के माध्यम से न होकर समाजसेवी परिवारों के एक बड़े समूह द्वारा करने की व्यवस्था की गई है। इन्हें हम दिव्यांग मित्र परिवार कहते हैं। ऐसे परिवारों की सदस्यता का प्रावधान बनाया गया है जो 3 वर्ष से लेकर आजीवन योगदान का संकल्प लेेते हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पथ निर्माण मंत्री  नंदकिशोर यादव, केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चैबे, व पूर्व मंत्री श्याम रजक भी दिव्यांग मित्र परिवार की आजीवन सदस्यता ग्रहण कर चुके हैं।