पटना : महागठबंधन के सीनियर नेताओं के बोल से इसके भविष्य पर प्रश्नचिन्ह खड़े होने लगे हैं। ये बोल चुनाव परिणाम आने के बाद से ही बिगड़ने लगे। जहां राजद में दो धड़े दिखने लगे हैं। एक तेजस्वी प्रसाद यादव के पक्ष में तो दूसरा तेजप्रताप यादव के पक्ष में। वहीं महागठबंधन में भी भारी अतर्विरोध उभर कर सामने आने लगा है। अभी कल ही महागठबंधन की बैठक में कांग्रेस का कोई जिम्मेवार पदाधिकारी शामिल नहींं हुआ। जहां प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मदनमोहन झा दरभंगा रवाना हो गये तो चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह दिल्ली। वैसे, परिणाम के ही दिन पार्टी के वरिष्ठ नेता सदानन्द सिंह ने घोषणा कर दी थी कि 2020 का विधानसभा चुनाव पार्टी अकेले ही लड़ेगी।
महागठबंधन में टूट के बादल लगे मंडराने
इधर, पूर्व मुख्यमंत्री व हम के अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने आज यह कह कर खलबली मचा दी कि तेजस्वी प्रसाद यादव राजद के नेता हैं, महागठबंधन के सर्वमान्य नेता नहीं। उनके इस बोल से नेताओं ने अलग-अलग तरीके से कानाफुसी भी शुरू कर दी है। महागठबंधन के नेताओं ने यह भी कहना शुरू कर दिया है कि क्या महागठबंधन विधानसभा चुनाव तक टिका रह जाएगा?
बहरहाल, इस संबंध में उपेन्द्र कुशवाहा का बयान यह रेखांकित करने वाला है कि हमारे नेता अर्थात महागठबंधन के नेता तेजस्वी प्रसाद ही हैं। उन्होंने समीक्षा बैठक में हार की नैतिक जिम्मेवारी भी ली है। यह भी कहा है कि जब जीत का जश्न हम मनाते रहे हैं तो हार की जिम्मेवारी भी लेनी ही पड़़ेगी।
नेताओं ने पार्टी की अप्रत्याशित हार के बाद लालू परिवार पर यह आरोप भी मढ़ना शुरू कर दिया कि तेजस्वी व तेजप्रताप के अलग-अलग सुर व आलाप से कार्यकर्ता भ्रमित हुए। यही नहीं, उन्होंने जहानाबाद में स्पष्टतः राजद के सुरेन्द्र यादव की हार के लिए तेजप्रताप यादव को ही जिम्मेवार ठहराया कि अगर वे अपना प्रत्याशी वहां नहीं खड़ा करते तो सुरेन्द्र यादव की जीत पक्की थी। इस संबंध में सुरेन्द्र यादव ने बताया कि उन्हें हार की चिंता कम, लालू प्रसाद यादव के स्वास्थ्य की चिंता अधिक है।