पटना: लोजपा प्रमुख चिराग पासवान 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा-जदयू गठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ रहे हैं। इसको लेकर उन्हें तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इस बीच जब बिहार में चुनाव का पारा चढ़ ही रहा था कि चिराग के सिर से पिता रामविलास पासवान का साया उठ गया, जिस कारण उनकी चुनौतियां और बढ़ गई है। इसको लेकर अब यह चर्चा तेज है कि रामविलास पासवान के जाने के बाद चिराग के राजनीतिक भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
चुनाव में सहानुभूति वोट
तात्कालिक प्रभाव को लेकर कहा जा रहा है कि भारत की राजनीति की यह रीति रही है कि जब कोई नेता जनप्रतिनिधि रहते हुए परलोक सिधार जाता है तो उसके जगह पर जो कोई भी उसके परिवार या उसके करीबी होते हैं, उन्हें चुनाव में सहानुभूति वोट का लाभ मिलता है। वहीं, अगर मामला थोड़ा-बहुत बिगड़ने लगता है तो पार्टी की तरफ से भावनात्मक कार्ड खेलकर वोट बटोर लिए जाते हैं।
चुनाव में पार्टी के पास दो चेहरे
वैसे भी देश की राजनीति में सहानुभूति वोट की पंरपरा होने के कारण इस चुनाव में लोजपा को किसी और चेहरे की जरूरत नहीं है। जैसा कि इस चुनाव में लोजपा के लिए नरेंद्र मोदी व रामविलास पासवान के चेहरे पर चुनाव लड़ रही थी, लेकिन रामविलास के देहावसान के बाद अब पार्टी के लिए नरेंद्र मोदी के साथ-साथ रामविलास भी बड़े चेहरे हो गए हैं। क्योंकि, पार्टी को सहानुभूति वोट मिलने की प्रबल संभावना है।
बढ़ेगी चिराग की लौ
अब बात बिहार चुनाव की करें तो इस बात के प्रबल संभावना है कि चिराग को इस चुनाव में पिता की राजनीतिक कमाई का पूरा फायदा हो सकता है। क्योंकि, दलित तबके की राजनीति करने वाले रामविलास पासवान बिहार की राजनीति में पांच दशक तक अपना रूतबा कायम रखने के बाद पार्टी की जिम्मेदारी अपने पुत्र चिराग को दे दी थी। इस वजह से दलितों के पास रामविलास जैसा कोई चेहरा अगर है तो सिर्फ चिराग ही है। वहीं, दूसरी तरफ बागी भाजपाइयों का भी पूरा सहयोग चिराग को मिलने की उम्मीद है। इस वजह से यह तय माना जा रहा है कि इस चुनाव में लोजपा ने जो फैसला लिया है उससे चिराग की लौ बढ़ने वाली है।
कार्यकर्ताओं को समझने के लिए तपना होगा
वहीँ, चिराग के नेतृत्व में पार्टी पहली बार चुनावी मैदान में है, ऐसे में अगर सहानुभूति के नाम पर वोट मिल भी जाते हैं तो आगे की राह और मुश्किल होने वाली है। क्योंकि, रामविलास पासवान जमीन से जुड़े नेता थे। वे चुनाव प्रचार के लिए साइकिल से भी निकल जाते थे, सभी कार्यकर्ताओं के नाम याद रखते थे। समय मिलने के बाद अपने क्षेत्र में जाकर कार्यकर्ताओं से भेंट करने का कोई भी मौक़ा नहीं छोड़ते थे।
लेकिन, चिराग या फिर चिराग के भाई प्रिंस में वो बात नहीं है। रामविलास पासवान के बाद की जो पीढ़ी है वो जनता से अभी काफी दूर है। ऐसे में अगर चिराग या उनके भाई जमीन वातानुकूलित कमरे से बाहर निकलकर जमीन पर नहीं जाते हैं तो आगे की राह उनकी बहुत मुश्किल हो सकती है। वैसे भी रामविलास पासवान आंदोलन के ऊपज हैं, इस वजह से वे हर तरह की परिस्थितियों से वाकिफ थे। चुनाव में समय रहते भांप जाते थे कि हवा का रूख क्या है? लेकिन, चिराग को इन सभी चीजों को समझने के लिए अभी बहुत तपना होगा।
परिवार का सहयोग
पिता के बदौलत तो वे 2024 तक शिखर पर रह सकते हैं। लेकिन, पिता की तरह हमेशा पर शिखर पर रहने के लिए चिराग को साइकिल से चलना होगा, कुरता-पायजामा मोड़कर झुग्गी-झोपड़ी में सिर झुकाना होगा। तभी वे पिता की तरह हमेशा शिखर पर रह सकते हैं। इसके आलावा व्यक्ति को शिखर पर पहुँचने के लिए परिवार का सहयोग काफी मायने रखता है। जिस तरह रामविलास पासवान के साथ उनके भाई पशुपति पारस और रामचंद्र पासवान खड़े रहे उसी तरह चिराग को शिखर तक पहुंचाने में उनके भाइयों को अपने पिता की तरह साथ देना होगा।