चर्चा विधानमंडल की : कहां हैं तेजस्वी?

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पटना : नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव आखिर हैं कहां! अर्से बाद ऐसा हुआ है जब विधानमंडल की कार्यवाही बिना नेता प्रतिपक्ष की मौजूदगी केे ही शुरू हुई। यह शायद विधानसभा के रिकाॅर्ड में आएगा। एक घटना के रूप में।

तेजस्वी की खोज होती रही

विधानमंडल से लेकर बाहर तक सबकी नजरें नेता प्रतिपक्ष को खोज रहीं थीं। कार्यवाही समाप्ति के बाद भी सदन से लेकर गलियारे तक चर्चा होती रही। गलियारे में कुछ जिज्ञासुओं ने पूछा तेजस्वी थे विधानसभा में? नहीं। सब चुप।

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कई ओपिनियन्स

उनकी पूर्व मुख्यमंत्री मां राबड़ी देवी कहती हैं-काम में लगे हैं। कौन काम है भाई! क्या कोई नौकरी करने लगे। वे तो नेता प्रतिपक्ष हैं। उनका काम तो विधानमंडल में आवाज उठाना है। अभी तो कई इश्यू भी हंै। चमकी बुखार। इस बुखार ने तो सरकार की सांसें फूला दी। गूंगा भी बना दिया था। किसी को कोई आवाज नहीं थी। नेता प्रतिपक्ष से उम्मीद की जा रही थी कि वे आवाज उठाएंगे। पर, वे तो सदन से ही लापता। खैर मनाइए कांग्रेस का कि उसने चमकी बुखार पर सरकार को चश्मा दिखा दिया। मतलब घेर लिया।

World कप देखने गये थे

बहरहाल, एक ओपिनियन यह भी आया था कि वे वल्र्ड कप देखने गये हैं। रघुवंश बाबू ने कहा था। बाद में कहा कि-विदेश गये हैं। जब मुजफ्फरपुर नहीं गये तो कहा जाने लगा कि वे विधानसभा के नेता हैं। रधुवंश बाबू और रामचन्द्र पूर्वे, दोनों ने यही बात कही थी। पर, विधानसभा से भी गायब। व्यंग्य में यह भी कह दिया कि वे विधानसभा की परिक्रमा करेंगे। पर, यहां भी नहीं। तो, वे हैं कहां।

बीमार हैं क्या तेजस्वी

एक ओपिनियन यह भी आया कि तेजस्वी बीमार हैं। अगर वे बीमार हैं तो उन्हें तथ्य को सार्वजनिक करना चाहिए। वे नेता हैं। पब्लिक प्रोपर्टी। अगर बीमार ही हैं तो बताने में हर्ज क्या। क्या कोई बीमार नहीं पड़ता। चमकी बुखार ही देखिए।

कांग्रेस ने विपक्ष की रखी लाज

मानसून सत्र में चमकी बुखार पर सरकार को घेरते हुए कांग्रेस ने हल्ला बोल दिया। विधायक शकील अहमद खान ने खासा हंगामेदार प्रदर्शन करते हुए यह संकेत दे दिया कि कोई उसके साथ आए न आए -उसकी राह अलग है।
इस आशय का संकेत अभी से ही मिलने लगा कि कांग्रेस का विधानसभा चुनाव में आलाप अलग रह सकता है। पिछले ही लोकसभा चुनाव में पार्टी ने मंथन के दौरान ये कही थी कि अगर चुनाव अकेले लड़ेंगे तो माईलेज मिल सकता है। चुनाव में चारो खाने चित होने के बाद राजद के होश ठिकाने आ गये हैं। पार्टी में जिला से लेकर राज्य स्तर पर बदलाव के संकेत मिलने लगे हैं। संभव है कि पार्टी में टूट भी हो।

ढीली पड़ने लगी महागठबंधन की गांठ

महागठबंधन की गांठ ढीली दिखने लगी है। अभी हाल ही में उपेन्द्र कुशवाहा के बेटे की दिल्ली में शादी थी। उस शादी में महागठबंधन के कोई निर्णायक नेता नहीं दिखा। यही नहीं, जीतनराम मांझी भी अलग पतवार उठाकर समन्दर यानी राजनीतिक मैदान में कूद गये हैं। अभी हाल ही के अपने धरना-प्रदर्शन में भी उन्होंने खुद ही पतवार उठाए रखा। पहले तो यहां तक कह डाला कि वे महागठबंधन के नेता नहीं बल्कि राजद के नेता हैं। मतलब उन्होंने अपना नेता मानने से इंकार कर दिया।

कांग्रेस लीड लेने के चक्कर में

इधर, कांग्रेस आक्रामक रूखा अपनाते हुए बराबर लीड ले रही है। चमकी बुखार में भी कांग्रेस ने मुजपफरपुर में खासा प्रदर्शन किया और नीतिगत लड़ाई में लीड ले रहा। प्रेक्षकों का कहना है कि विध्धनसभा के मानसून सत्र के बाद कांग्रेस में कुछ फेरबदल हो सकता है। इस संबंध में पूछने पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा ने कहा कि संभव है कि कुछ बदलाव हो। सूत्रों ने बताया कि कांगे्रस मानसून सत्र में जबर्दस्त हमला सरकार पर बोलेगा। शिक्षा और स्वास्थ्य उसके मुख्य इश्यू होंगे। कांग्रेस ने मन बना लिया है कि वह किसी के सुर में समवेत गान नहीं कर खुद राग अलापेगा।

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