‘चमकी’ क्यों बनी अबूझ पहेली?

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पटना : हर साल सैकड़ों की संख्या में बच्चों की जान जा रही है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि  अब तक इसका कोई भी समाधान नहीं ढूढ़ा जा सका है। वर्ष 1994 से एईएस (एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम) या चमकी नाम बीमारी ने मासुमों को अपना शिकार बनाना शुरू किया जो आज भी जारी है। लगभल 25 वर्षों से यह बीमारी बिहार को रुला रहा है। यह बीमारी एक अबूझ पहेली बनी हुई है।  क्या कारण है कि इसका समाधान हमारे पास नहीं है। आखिर इसका जिम्मेवार कौन है? इसका जवाब भी किसी के पास नहीं है।

जाने कितने रिसर्च हुए

2015 में एक टीम गठित कर अमेरिका और जापान भेजी गई। लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। वर्ष 2014 में जब बच्चों की मौत हुई थी तब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की कमान डॉ हर्षवर्धन के हाथों में ही थी। तब उन्होंने इसके समाधान के लिए आश्वासन दिया था और इसके लिए रिसर्च सेंटर व पीआईसीयू खोलने की बात कही थी। लेकिन, पांच साल बाद भी स्थिति में कोई खास सुधार नहीं दिख रही है। बच्चे आज भी चमकी बीमारी का शिकार हो रहे है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि सरकार आखिर क्या कर रही है?

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लीची और मौसम में फंसा पेंच

उत्तर बिहार के जिलों के मासूमों को एईएस के कहर से बचाने के लिए देश-विदेश की जांच एजेंसियों ने पिछले कई वर्ष यहां काम किया। पिछली बार एक जाँच एजेंसी ने अपने शोध में पाया कि जब बच्चें खली पेट ज्यादा मात्र में लीची खा लेते है तब ऐसी समस्या देखने को मिलती है। क्योकि लीची में एमसीपीजी नामक एक पदार्थ पाई जाती है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इससे बच्चों के ब्लड सुगर लेवल गिर जाता है और चमकी बुखार जैसी समस्या उत्पन्न हो जाती है। वही कुछ लोगो का मानना है की यहाँ की जलयु इस बीमारी का मुख्य कारण है।

एजेंसियों ने किया किनारा

देश-विदेश की जांच एजेंसियों ने पिछले कई वर्ष यहां काम किया उनमे एनसीडीसी(नेशनल कौंसिल ऑफ डिजीज कंट्रोल) दिल्ली और एनआइवी (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी) पुणे, की टीम मई में ही यहां आ जाती थी। एनसीडीसी की टीम अधिक दिलचस्पी लेती थी। मगर, इस वर्ष ये एजेंसी अब तक नहीं आई। जबकि, सौ से अधिक बच्चों की मौत हो गई है और  सौ से अधिक पीडि़त हैं। कई वर्षों की जांच के बाद भी नतीजा संतोष जनक नहीं है।

एईएस मीडिया के लिए बीमारी नहीं सनसनी है

जो बीमारी 25 सालों से मासूमों के मौत का कारण बनी हुई है। वहीं मीडिया ने इसे एक सनसनी के रूप में लिया है। मीडिया लोगों में इस बीमारी को लेकर मात्र दहशत फैलाने का काम कर रही है। यह भी भादों के मेढ़क के समान है। यह मौसम के हिसाब से ही निकलते है। बीच में यह न तो सरकार को इस विषय की ओर ध्यान दिलाते है और न हीं लोगों में इस बीमारी के प्रति जारूकता लाने का काम करते है।

संभलिए वरना रेत की तरह मुठी से फिसल जाएगी सत्ता

मासूमों को एईएस के कहर से बचाने के लिए देश-विदेश की जांच एजेंसियों ने पिछले कई वर्ष यहां काम किया। मगर, कोई निदान नहीं निकला। यहां तक की 2015 में एक टीम गठित कर अमेरिका और जापान गई। लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं हुआ। आधारभूत संरचना, हॉस्पिटलों की साफ-सफाई, डाक्टारो की कमी, दवाइयों की कमी ऐसे न जाने कितनी खामिया है। जो मासूमों को काल के गाल में समाने पर बेबस किए हुए है। अगर ऐसे में नहीं चेते तो फिर आने वाले दिनों में जनता अपना निर्णय सुनाएगी। इसलिए समय रहते ही सम्भाल जाएं नहीं तो सत्ता रेत की तरह मुठी से फिसल जाएगी।

वंदना कुमारी

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