मनाया गया गोस्वामी तुलसीदास जी की 525वीं जयंती महामहोत्सव,कई रचनाएं हमारे जीवन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण ,
पटना : रामचरित मानस के रचयिता और महर्षि बाल्मिकि के अवतार कहे जाने वाले तुसलीदास जी 525वी जयंती महा महोत्सव का आयोजन रामलीला मंच किला मैदान पर भव्य तरीके से किया गया।
इस कार्यक्रम की शुभारम्भ आयोजन समिति के अध्यक्ष कृष्णानंद शास्त्री जी पौराणिक, श्री राम जानकी मंदिर के महंत राजाराम बाबा जी, संघ के रामाशीष जी, कार्यक्रम के संयोजक परशुराम चतुर्वेदी जी बड़ी मठिया के महाराज जी द्वारा गोस्वामी जी के तैल चित्र पर पुष्प अर्पित कर तथा 11 विद्वान पंडितों द्वारा हवन पूजन कर किया गया।
गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन हम सभी के लिए आदर्श
वही, इसी कड़ी में क्षेत्रीय संगठन मंत्री प्रज्ञा प्रवाह के रामाशीष जी अपने संबोधन मे कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन हम सभी के लिए आदर्श स्वरूप है, गोस्वामी जी के कई रचनाएं हमारे जीवन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण है हमें उनके द्वारा लिखित ग्रंथों का अध्ययन अनवरत करते रहना चाहिए और उनके तरह बताएं रास्तों पर चलना चाहिए।
महंत राजाराम बाबा ने उनके बाल कल्य पर प्रकाश डालते हुए कहा की भगवान शंकरजी की प्रेरणा से रामशैल पर रहनेवाले अनन्तानन्द जी के प्रिय शिष्य श्रीनरहर्यानन्द जी (नरहरि बाबा) ने इस रामबोला के नाम से बहुचर्चित हो चुके इस बालक को ढूँढ निकाला और विधिवत उसका नाम तुलसीराम रखा। तदुपरान्त वे उसे अयोध्या (उत्तर प्रदेश) ले गये और वहाँ संवत् 1561 माघ शुक्ला पंचमी (शुक्रवार) को उसका यज्ञोपवीत-संस्कार सम्पन्न कराया।
संस्कार के समय भी बिना सिखाये ही बालक रामबोला ने गायत्री-मन्त्र का स्पष्ठ उच्चारण किया, जिसे देखकर सब लोग चकित हो गये। इसके बाद नरहरि बाबा ने वैष्णवों के पाँच संस्कार करके बालक को राम-मन्त्र की दीक्षा दी और अयोध्या में ही रहकर उसे विद्याध्ययन कराया। बालक रामबोला की बुद्धि बड़ी प्रखर थी। वह एक ही बार में गुरु-मुख से जो सुन लेता, उसे वह कंठस्थ हो जाता। वहाँ से कुछ काल के बाद गुरु-शिष्य दोनों शूकरक्षेत्र (सोरों) पहुँचे।
रत्नावली के साथ हुआ विवाह
वहाँ नरहरि बाबा ने बालक को राम-कथा सुनायी किन्तु वह उसे भली-भाँति समझ न आयी।ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी, गुरुवार, संवत् 1583 को 29 वर्ष की आयु में राजापुर से थोडी ही दूर यमुना के उस पार स्थित एक गाँव की अति सुन्दरी भारद्वाज गोत्र की कन्या रत्नावली के साथ उनका विवाह हुआ। चूँकि गौना नहीं हुआ था अत: कुछ समय के लिये वे काशी चले गये और वहाँ शेषसनातन जी के पास रहकर वेद-वेदांग के अध्ययन में जुट गये। वहाँ रहते हुए अचानक एक दिन उन्हें अपनी पत्नी की याद आयी और वे व्याकुल होने लगे।
जब नहीं रहा गया तो गुरूजी से आज्ञा लेकर वे अपनी जन्मभूमि राजापुर लौट आये। पत्नी रत्नावली चूँकि मायके में ही थी क्योंकि तब तक उनका गौना नहीं हुआ था अत: तुलसीराम ने भयंकर अँधेरी रात में उफनती यमुना नदी तैरकर पार की और सीधे अपनी पत्नी के शयन-कक्ष में जा पहुँचे। रत्नावली इतनी रात गये अपने पति को अकेले आया देख कर आश्चर्यचकित हो गयी। उसने लोक-लाज के भय से जब उन्हें चुपचाप वापस जाने को कहा तो वे उससे उसी समय घर चलने का आग्रह करने लगे। उनकी इस अप्रत्याशित जिद से खीझकर रत्नावली ने स्वरचित एक दोहे के माध्यम से जो शिक्षा उन्हें दी उसने ही तुलसीराम को तुलसीदास बना दिया।
रत्नावली ने जो दोहा कहा था वह इस प्रकार है:
अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति !
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?
उन्होंने लोगों से कहा कि धर्म आधारित राजनीति जन कल्याणकारी होता है राजनीति आधारित धर्म विनाश की ओर ले जाता है। अध्यक्षीय भाषण में कृष्णा में शास्त्री जी पूरा एक ने कहा कि रामराज की स्थापना के लिए पति पत्नी का संबंध दशरथ और कौशल्या जी जैसा होना चाहिए तब हर घर में राम जन्म लेंगे और तभी रामराज्य का परिकल्पना को हो सकता है गोस्वामी जी ने कहा है कि राजा घुसूरी किस तरफ होना चाहिए जब सूर्य पृथ्वी का शोषण करता है तो किसी को पता नहीं चलता है मगर जब वर्षा के रूप में देते है तो सभी को पता चलता है और उससे सभी जीव जंतु लाभान्वित होते हैं।
समाज का स्वरूप बिल्कुल बदल चुका
इसके अलावा कार्यक्रम के संयोजक अतिथियों के स्वागत भाषण में कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के माध्यम से भगवान के स्वरूप का जो चित्रण किया है उसे हमें सभी को अपनाना चाहिए। समाज का स्वरूप बिल्कुल बदल चुका है छोटे छोटे बातों पर भाइयों में तकरार हो रही है जबकि रामकाल में एक दूसरे के प्रति त्याग समर्पण रहता था। आए हुए अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन पुनीत सिंह के द्वारा किया गया।
कार्यक्रम में आयोजन समिति के अरुण मिश्रा, भगवान दुबे,शिवदयाल पांडे, लक्ष्मण शर्मा, मृत्युंजय ओझा, संजय ओझा, दीपक सिंह, प्रकाश पांडे ,अभिनंदन सिंह ,निर्भय चौबे अमर गोंड, सौरभ चौबे, भरत प्रधान, श्रीमन तिवारी, ज्वाला सैनी, बाल बच्चन पाठक, रामबाबू सिंह, पारसनाथ मिश्रा, निष्कर्ष चौबे, गुड्डू चौधरी, चितरंजन तिवारी, बबुआ तिवारी, सुमन श्रीवास्तव, अनु मिश्रा, अनुराग श्रीवास्तव, अनिमेष उपाध्याय, सुरेश वर्मा आदि प्रमुख रूप से शामिल रहे।