भाजपा इस्तीफा देने कहेगी नहीं और नीतीश मानेंगे नहीं, क्या करेंगे राज्यसभा उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह?
पटना : जगदीप धनखड़ ने आज उपराष्ट्रपति पद की शपथ ले ली है। इसके साथ ही अब वे राज्यसभा के सभापति के तौर पर वेंकैया नायडू की जगह लेंगे। वहीं, भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद अब राज्यसभा उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह असमंजस में हैं। हरिवंश नारायण सिंह की छवि बेदाग और सौम्य स्वभाव की रही है और सभापति रहते हुए उन्होंने सदन के संचालन में अपनी विशेष छाप छोड़ी है। इस वजह से भारतीय जनता पार्टी उन्हें हटाने नहीं जा रही है और नीतीश कुमार उन्हें किसी भी हाल में उपसभापति बने रहने नहीं देंगे।
अचानक से गठबंधन टूटने के बाद हरिवंश नारायण सिंह के सामने काफी असमंजस वाली स्थिति है। अगर उन्हें भविष्य में राजनीति में बने रहना होगा, तो वे नीतीश की बात को मां सकते हैं। अगर वे आगे राजनीति में नहीं रहना चाहेंगे, तो वे नीतीश कुमार की बात को नजरअंदाज कर उपसभापति की कुर्सी पर विराजमान रहेंगे। अगर हरिवंश नारायण सिंह आगे भी राजनीति करना चाहेंगे, तो वे नीतीश की बातों को मानते हुए उप सभापति पद से इस्तीफा दे देंगे। उन्हें राजनीति में लाने वाले नीतीश कुमार ही हैं, इससे पहले वे एक प्रमुख दैनिक अखबार के संपादक हुआ करते थे।
बहरहाल, आज जो स्थिति हरिवंश नारायण सिंह के सामने खड़ी हुई है, वैसी ही स्थिति वर्ष 2008 में लोकसभा अध्यक्ष रहते सोमनाथ चटर्जी के सामने आई थी। उस समय अमेरिका के साथ परमाणु संधि के मुद्दे पर वामदलों ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। लेकिन वे पार्टी की न सुनते हुए स्पीकर पद पर बने रहे। इस वजह पार्टी ने अनुशासन का पालन न करने के आरोप के साथ उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया था। पार्टी से निकाले जाने के बाद सोमनाथ चटर्जी ने कहा था कि लोकसभा अध्यक्ष के पद पर बैठा व्यक्ति किसी दल का नहीं होता।