पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के एनडीए में आते ही लोजपा प्रमुख चिराग पासवान बगावती हो गये हैं। आलम यह है कि चिराग अब नीतीश कुमार के खिलाफ आग उगलने लगे हैं और नया नारा दिया है कि नया बिहार बनाने के लिए युवकों को चिराग पासवान के साथ चलना चाहिए। उसमें कुछ नये नारे भी गढ़े गये हैं कि लोजपा बात करे न जात की न धर्म की, बल्कि जमात की।
चिराग के इस नारे से बिहार के 58 प्रतिशत युवा मतदाताओं पर क्या असर पड़ेगा- अभी कहा नहीं जा सकता। पर, चुनाव के वक्त इसका असर जरूर दिखेगा। चिराग पहले ही कह चुके हैं कि उन्हें खोने के लिए कुछ नहीं है। उनके पास दो विधायक हैं। इस बार एक गुप्त बैठक कर 153 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की पीठ थपथपा चुके हैं। वैसे भी बिहार में सरकार में उनकी भागीदारी नहीं है।
मांझी भी लोजपा के खिलाफ खड़े करेंगे प्रत्याशी
इधर, उनके मुकाबले बूढ़ा दलित शेर जीतन राम मांझी भी यह सामने आते हुए गर्जना शुरू कर दी है कि अगर चिराग नीतीश कुमार के खिलाफ जांगे तो लोजपा की सभी सीटों पर मांझी अपना उम्मीदवार खड़ा कर देंगे।
मगध के दलित मांझी की इस गर्जना को राजनीतिक विश्लेषक दूसरे तरीके से लेते हुए कह रहे हैं कि मांझी दूर की कौड़ी खेल रहे हैं। बेटा को तो पहले ही राजद ने सेट कर दिया और अब खुद को पार लगाने के लिए वे एनडीए में शामिल हो गए।
बाप-बेटा पार्टी ठप्पा से निकलना चाहते चिराग
उधर, चिराग के खिलाफ गर्जना कर यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि बिहार में अकेला दलित नेता राम विलास पासवान और उनके बेटे ही सिर्फ नहीं हैं। पर, यहां सूक्ष्मता से समझने वाली बात यह है कि पासवान ने पहले अपने परिजनों को सेट किया। इसीलिए आलोचना भी शुरू हुई कि बाप-बेटे की पार्टी है। पर, परिवार से बाहर निकल कर पासवान ने फारवर्डों की ही पाॅलिटिक्स की। उदाहरण के लिए सूरजभान सिंह, राजन तिवारी, रमा सिंह तथा अन्य लोग भी इससे जुड़े रहे।
इधर, पिता से आगे निकलते हुए चिराग ने जिन 153 संभावित प्रत्याशियों की पीठ थपथपायी है, उनमें दलित अथवा पिछड़ा बहुत कम हैं। अगर पिछड़ा हैं तो-वैश्य। वे भी बड़े व्यापारी, कुछ तो हीरा के व्यापारी।