बिहार में ‘मालदार प्रोजेक्ट’ के लिए जलपुरुष की जलयात्रा!

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पटना : बिहार की राजधानी पटना जलजमाव के कारण दस दिनों तक डूबी रही। इसका प्रमुख कारण प्राचीन पटना यानी पाटलिपुत्र में यहां की भौगोलिक संरचना एवं प्रकृति के अनुरूप विकसित किए गए जलसंचयन के उपक्रमों को नष्ट किया जाना है। पटना में जल प्रबंधन और संचयन के नाम पर धंधा चलाने वाले विशेषज्ञों का जुटान होता रहा है। लेकिन, इन विशेषज्ञों को जलजमाव के कारण पटना के लोगों की परेशानी नहीं दिखती। हां, अब वे बिहार की नदियों की बदहाली दूर करने का काम करना चाहते हैं। स्पष्ट है कि वह काम प्रेजेक्ट के रूप में होगा जो सरकार या विदेशों से मिलने वाली राशि से चलेगी। ऐसे में इस काम के लिए बिहार के बाहर के स्वयंसेवी संगठन देश-विदेश के नामी समाज सेवियों के नेतृत्व में यहां सक्रिय हो गए हैं।

नदियों की भूमि बिहार में मरुभूमि तकनीक का क्या काम?

जलजमाव से त्रस्त पटना के लोग अभी संभल भी नहीं पाए हैं कि जल संरक्षण को लेकर गांधी की प्रयोग भूमि चंपारण से गौतम बुद्ध की ज्ञान स्थली गया तक की यात्रा शुरू हो गयी है। इस बार बिहार को जलदार बनाने का ठेका हरियाणा के एक संगठन ने ले लिया है। इस यात्रा की अगुआई राजस्थान को जलसंकट से मुक्ति दिलाने वाले राजेन्द्र सिंह कर रहे हैं। इन्हें कुछ लोग जलपुरूष भी बताते हैं। राजेंद्र सिंह का प्रयोग राजस्थान के रेगिस्तान में सफल रहा था। अब वे नदियों के प्रदेश बिहार में भी अपने उसी मॉडल को लागू कराने की कोशिश कर रहे हैं।

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राजस्थान में कैसे पैदा कर दी गंगा की सहायक नदियां?

बकौल राजेंद्र सिंह गंगा को सबने नर्क में तब्दील कर दिया है। अब वे गंगा के पुण्य प्रवाह को फिर से गरिमा प्रदान करने के काम में लग गए हैं। बातचीत में उन्होंने कहा कि भारत का प्रधानमंत्री झूठ ही बोलता है। उसने गंगा को निर्मल और प्रवाहमान बनाने की बात कही थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। भारत का मीडिया भांड बनकर ऐसे प्रधानमंत्री का गुणगान कर रहा है। बातचीत के क्रम में राजेन्द्र सिंह ने कहा कि गंगा की नौ सहायक नदियां मर चुकी थी। उन्होंने प्रचंड पुरूषार्थ कर गंगा की उन नौ सहायक नदियों को पुनर्जीवित किया। उन नदियों का नाम पूछने पर बताया कि वह सभी नदियां राजस्थान की हैं।

क्या है मरुस्थली नदियों को गंगा में लाने की पहेली?

राजस्थान से होकर गंगा प्रवाहित नहीं होती, फिर आपने उन्हें गंगा में कैसे मिला दिया। इस प्रश्न का उत्तर उन्होंने जो दिया वह किसी पहेली से कम नहीं। बकौल राजेंद्र सिंह उन्होंने जिन नदियों को जीवित किया, वह कई नदियों से मिलती हुई यमुना के साथ आकर मिलती हैं। राजेंद्र सिंह गांधी की प्रयोग स्थली से चलकर गया जा रहे हैं। लेकिन उन्हें उस नदी का नाम नहीं मालूम, जिसके लिए वे गया जा रहे हैं। बिहार में भ्रम के घने कोहरे का निर्माण कर बाढ़ व सूखा के नाम पर प्रोजेक्ट की खेती की पूरी तैयारी शुरू हो गयी है।
क्रमशः

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