बिहार के इस गाँव में 300 से अधिक ड्राईवर, एक परिवार में 11 चालक

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नवादा : जिले के सदर प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत मोतीविगहा अकेला गांव है जहां 300 ट्रक चालक हैं। इनमें से कई अब अपने वाहन के मालिक भी बन गए हैं, तो कुछ अब भी दूसरे का वाहन चलाकर जीविकोपार्जन कर रहे हैं। यह सिलसिला जारी है।

इसके पूर्व ठेला-रिक्शा चलाकर गुजारा करते थे, फिलहाला गांव  में 40 ट्रक, 50 मिनी ट्रक और 110 ऑटो समेत 200 अपने छोटे बड़े वाहन हैं।

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चालकों के गांव बनने की शुरुआत पांच दशक पहले आरंभ हुई थी। जिले के सदर प्रखंड की गोनावां पंचायत के गोनावांडीह के मथुरा सिंह ट्रक ड्राइवर थे। तभी गोनावां के मोतीविगहा निवासी कपिल यादव उनके साथ घूमने के बहाने निकले थे। कई माह तक ट्रक धोने का काम किया। फिर गाड़ी चलाना सीखा। कपिल की माली हालत सुधरी तो गांव में ड्राइवर बनने का सिलसिला शुरू हो गया। अब सफाईकर्मी बनने का दौर खत्म हो गया है।

पेशे में चुनौतियां हैं पर गर्व भी

ग्रामीण बताते हैं कि सड़क हादसे और अपराध की घटनाओं के कारण ड्राइवर बनने के प्रति लोगों में दिलचस्पी कम हुई है। पिछले तीन दशक में गांव के तीन चालकों की सफर के दौरान हत्या कर दी गई, जबकि चार की दुर्घटना में मौत हो गई है। इन घटनाओं से लोग थोड़ा सहम गए हैं। ग्रामीण गुलाब यादव बताते हैं कि ड्राइवरों के मान सम्मान में थोड़ी कमी आई है।

गांव में नौसिखुओं की होड़

गांव में नौसिखुए चालकों की होड़ है। पैसे कम मिलते हैं। इसलिए दूर दराज के बजाय लोग स्थानीय स्तर पर कम पैसे में लोग काम करने पर मजबूर हैं। गुलाब कहते हैं कि चुनौतियां जरूर हैं लेकिन इस पेशे पर आज भी गर्व है क्योंकि इस पेशे ने गांव वालों को नया जीवन दिया है।

तीन पीढ़ियों का पेशा, परिवार में 11 ड्राइवर

गांव में तीन पीढ़ियों से यह परंपरा चली आ रही है। यमुना यादव रिक्शा चलाते थे। इनके चार बेटे, चारों कपिल, विजय, लालो और हीरा यादव ड्राइवर बन गए। कपिल के तीन बेटे भी इसी पेशे में हैं। दो ट्रक भी हैं। यही नहीं, विजय यादव के तीन में से दो और लालो के दो बेटों ने भी ड्राइवरी की। इस तरह एक परिवार के 11 लोग इस पेशे में रहे हैं। हालांकि, हीरा के दो बेटे हैं, दोनों चालक है। वाहनों की बढती मांग व पढने में लागत पूंजी के अधिक लगने के बावजूद नौकरी की गारंटी नहीं होने के कारण लोग चालक बनना अधिक पसंद कर रहे हैं।

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