बीते 6 अगस्त को बिहार सरकार एक महत्वपूर्ण निर्णय लेती है। निर्णय के रूप में बिहार सरकार मैट्रिक और इंटर के वैसे छात्र जो एक या दो विषयों में फेल हैं उन छात्रों को ग्रेस नंबर देकर पास करने का निर्णय लेती है।
इसको लेकर जदयू की सहयोगी पार्टी भाजपा सरकार की उपलब्धि मानकर प्रचार-प्रसार करना शुरू कर देती है। प्रचार के दौरान बिहार भाजपा कहती है कि कोरोना के कारण विद्यार्थियों के पठन-पाठन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इस बात का ध्यान रखते हुए एनडीए सरकार ने मैट्रिक और इंटरमीडिएट के कंपार्टमेंटल परीक्षार्थियों को उत्तीर्ण करेगी।
विभिषिका में ना हो अवसर की कमी, विद्यार्थियों को मिले भविष्य की जमीं।।
लेकिन, क्या सरकार के द्वारा ऐसा किया जाना उचित है। इस मसले पर जब विद्यार्थियों से बात की गई तो उनका कहना है कि मुझे एक विषय में उत्तीर्ण अंक से 2 अंक कम आये थे। जिसके कारण मैं फेल हो गया था। लेकिन, अब सरकार के निर्णय से परीक्षा में पास हो गए हैं और हमलोगों का एक साल जो बर्बाद होता वो बच गया।
लेकिन, इस मसले पर जब शिक्षकों से बात की गई तो उनका कहना है कि सरकार के इस निर्णय में अच्छाई भी है और खामी भी, अच्छाई को लेकर कहते हैं कि वैसे विद्यार्थी जो एक विषय में 1 से 5 अंक कम आने के कारण फेल हो गए हैं, उनको पास करने का निर्णय सही है। लेकिन, जो विद्यार्थी ज्यादा अंकों से अनुत्तीर्ण हुए हैं, उन्हें जबरदस्ती पास करना उचित नहीं है। ऐसे में अगर आगे चलकर हम ये कहते हैं कि प्रदेश में गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा दी जा रही है तो वो बेईमानी होगी।
पटना विश्वविद्यालय के एक अन्य सेवानिवृत्त प्रोफेसर कहते हैं कि सरकार की यह निर्णय ग्रामीणों क्षेत्र के बच्चों के लिए ठीक है, जो 2 , 4 कम अंक आने के कारण अनुत्तीर्ण हो गए। लेकिन, 2 विषयों में फेल हुए वैसे विद्यार्थियों को पास किया जाता है जिन्हें न के बराबर अंक प्राप्त हुए हैं तो यह ठीक नहीं है और ऐसा ट्रेंड नहीं बनना चाहिए।
जद-यू के पाप अपने माथे लेना भी क्या गठबंधन धर्म है?
जद-यू के पाप अपने माथे लेना भी क्या गठबंधन धर्म है? तथा इस मसले को लेकर भाजपा द्वारा प्रचार-प्रसार करने को लेकर राजनीतिक मामले के जानकारों से सवाल करने पर उनका कहना है कि बिहार में एनडीए शासन के 15 सालों में बड़े भाई नीतीश कुमार ने भाजपा के जनाधार का इस्तेमाल तो खूब किया, लेकिन उसके राजनीतिक एजेंडे में कोई खास सहयोग नहीं किया। बिहार में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा न देकर राजनीतिक महत्वाकांक्षी शिक्षा को बढ़ावा दिया गया।
वे कहते हैं कि नीतीश सरकार ने इस चुनावी साल में एक लोक-लुभावन फैसला किया। वर्ष 2020 की मैट्रिक और इंटरमीडिएट की बोर्ड परीक्षाओं में दो-दो विषयों में फेल होने वाले छात्रों को पास कर दिया गया। कोरोना के बहाने यह ‘कृपा’ की गई, जिससे कुल 3 लाख 40 हजार 633 छात्र फेल होने से बच गए।
राजनीति कड़वे सच छिपाने की बाजीगरी है, इसलिए राज्य सरकार कह रही है कि इतने युवाओं के एक साल बच गए। दरअसल, छात्र-हितैषी बनने के चक्कर में इन अयोग्य लोगों को पास कर उनका जीवन बर्बाद करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। ऐसे में मैट्रिक-इंटर पास युवा किस अच्छे कॉलेज में दाखिला ले सकेंगे? किस नौकरी के काबिल बनेंगे? इस सवाल का भी जवाब सरकार के पास होना चाहिए।
वे कहते हैं कि शिक्षा विभाग भाजपा के पास नहीं है। लेकिन, उसके इस पाप को भी भाजपा ने बाकायदा पोस्टर जारी कर अपने माथे ले लिया। यह गठबंधन -धर्म नहीं, किसी दल का बड़े दल के सामने साष्टांग प्रणाम है। इनसे अच्छे और स्वाभिमानी तो लोजपा प्रमुख चिराग पासवान दिख रहे हैं, जो गठबंधन में रहते हुए कुछ कड़े सवाल तो पूछ लेते हैं।
वे आगे कहते हैं कि डेढ़ दशक में कभी भी भाजपा का शिक्षा मंत्री नहीं हुआ है। भाजपा ने लालू प्रसाद को सत्ता से बाहर रखने की दलील के साथ कई अपमान बर्दाश्त किये, वैसे ही, जैसे कांग्रेस और वामदल भाजपा को हराने के नाम पर लाालू प्रसाद के खिलाफ जाने का साहस कभी नहीं कर पाते।
जीवन हो या राजनीति, परिस्थितिवश बहुत-कुछ सहना पड़ता है। लेकिन, झुकना आदत नहीं बननी चाहिए। दुर्भाग्य यह है कि बिहार की भाजपा, नीतीश कुमार के आगे झुकने को अपनी आदत बनाती जान पड़ रही है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, एमएलसी सच्चिदानंद राय व एमएलसी संजय पासवान चुप करा दिये गए हैं।
शायद यही कारण है कि बीते 30 वर्षों में कांग्रेस के वोट-बैंक का बड़ा हिस्सा भाजपा में शिफ्ट होने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी बिहार में स्वतंत्र रूप से सत्ता की प्राप्ति से दूर है। लेकिन, इस बार बच्चों को पास करने के बाद यह देखना होगा कि आगामी चुनाव में बीजेपी उत्तीर्ण होती या एनडीए।