बिहार चुनाव: नसीहत भरा जनादेश, जंगलराज का भयादोहन आगे नहीं चलने वाला
बिहार विधानसभा चुनाव में जिस प्रकार के नतीजे आए वह अपने आप में कई नसीहतों को समेटे हुए हैं। आम तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में एक बात कही जाती है कि जीतने वाले संभावित प्रत्याशी को अगर वोट नहीं दिया जाता है, तो वह वोट बर्बाद हो जाता है। लेकिन, 2020 के विधानसभा चुनाव के जनादेश को देखकर लगता है कि एक भी वोट बर्बाद नहीं होता है बल्कि हर वोट का एक तरीके का महत्व होता है।
इस चुनाव में जीत भले ही एनडीए की हुई है और अब महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव को विपक्ष में बैठना पड़ेगा। लेकिन, आंकड़े कुछ सूक्ष्म बातें करती हैं। जैसे एनडीए को जनता ने सरकार बनाने का जनादेश तो दिया, लेकिन 125 सीटें देकर यानी बहुमत से मात्र 3 अधिक। यह सरकार बनाने का जनादेश हल्का कर दिया गया है। ’बाल-बाल बचने’ वाले अंदाज में जनता ने एनडीए को नसीहत दी है कि शासन करने की अनुमति तो हम दे रहे हैं लेकिन शर्तें लागू रहेंगी। कमजोर बहुमत का अर्थ निकलता है कि जनता ने एनडीए को बहुत ज्यादा पसंद नहीं किया, बस एक और मौका दिया है। इसमें यह भी छिपा है कि जनता की अपेक्षा है कि सब कुछ वैसा ही नहीं चलेगा जैसे विगत 15 वर्षों से एनडीए की सरकार करते आ रही है।
अभी जनादेश का दूसरा पक्ष देखिए। कहने को भले ही महागठबंधन विपक्ष में बैठेगा। लेकिन, यह भी याद रखना चाहिए कि जनता ने महागठबंधन को 110 सीटें देकर विधानसभा में बैठने का जनादेश दिया है। जब वोटों की गिनती हो रही थी, तो शाम के समय एक वक्त ऐसा भी आया जब एनडीए और महागठबंधन के बीच मात्र 3 सीटों का अंतर रह गया था। इसका स्पष्ट अर्थ निकलता है कि जनता ने महागठबंधन को नकारा नहीं है। मतदाताओं के एक बड़े वर्ग ने महागठबंधन पर भी भरोसा किया। राजद को सबसे बड़ी पार्टी बनाकर जनता ये एनडीए को यह भी जता दिया कि जंगलराज का भयादोहन अब आगे नहीं चलने वाला।
विधानसभा में 125 विधायकों के साथ नीतीश कुमार मुख्यमंत्री जरूर रहेंगे। लेकिन, शासन करते वक्त उनके मन में अब वह निश्चिंतता नहीं रहेगी, जो पहले की मजबूत बहुमत वाली सरकारों के मुखिया के रूप में रहा करती थी। एनडीए में सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को भी पहली बात यह याद रखना चाहिए कि जब उसने पिछली बार जदयू के साथ तालमेल करके 2010 में चुनाव लड़ा था, तो 102 सीटों में से 91 में उसे जीत मिली थी। उसके मुकाबले इस बार उसे 110 में से 74 सीटें ही प्राप्त हुई हैं। दूसरी बात कि इस बार भाजपा जदयू से बड़ी पार्टी है। इन दोनों बातों का अर्थ हुआ कि भाजपा के लिए भी जनता ने दीवार पर इबारत चस्पा कर दी है कि हर बार की तरह इस बार भी किसी नाकामी का ठीकरा सिर्फ नीतीश कुमार के सिर पर फोड़कर भाजपा बच नहीं सकती।