भारत में लिंगभेद की स्थिति पश्चिम के देशों जैसी नहीं है : अश्विनी चौबे
पटना : केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा कि भारत में लिंगभेद की स्थिति पश्चिम के देशों जैसी नहीं है। भारत में लिंगभेद की समस्या विदेशी आक्रांताओं के कारण पैदा हुई। उस समस्या का निराकरण भारतीय संस्कृति व ज्ञान परंपरा से संभव है। अश्विनी चौबे पटना के विमेंस कॉलेज में सेंटर फॉर जेंडर स्टडीज के तत्वावधान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। जेंडर इश्यू अंडरस्टैंडिंग द को-कॉंस्टीटयूशन ऑफ जेंडर एंड पॉलिटिक्स विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में भारत के अलावा श्रीलंका और मालदीव के अध्यापक व शोधकर्ता शामिल थे उन्होंने कहा कि भारत एक ऐसा देश है, जहां अपनी जन्मभूमि को माता कहा जाता है हम भारत माता कहते हैं। माता भूमि पुत्रों हम पृथ्वीव्याह का भाव लेकर हमने अपनी संस्कृति और सभ्यता का विकास किया है।
यही कारण है कि हम यह कहते हैं कि जहां नारी की पूजा नहीं होती वहां स्वर्ग हो ही नहीं सकता। यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता उन्होंने कहा की भारत के लोग टुकड़े – टुकड़े में बांटकर नहीं देखते। मनुष्य जाति में स्त्री और पुरुष का समान दायित्व है , प्रकृति ने स्त्री को विशेष कार्य के लिए गढ़ा है। वहीँ पुरुष को भी विशेष शारीरिक संरचना दी है। इसे नकारना या प्रकृति के व्यवस्था में हस्तक्षेप करना वास्तव में विनाश को आमंत्रित करना है। हम प्रकृति को नकार नहीं सकते वही संस्कृति व समाज द्वारा निर्मित गैर बराबरी असमानता को स्वीकार नहीं कर सकते।
चौबे ने कहा कि हम प्राचीन काल से ही महिला शक्ति को ज्यादा महत्व देते रहे हैं। अंग्रेजों और वामपंथी इतिहासकारों ने गलत इतिहास लिख कर भारत की छवि को खराब करने की कोशिश की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद लैंगिक समानता और महिलाओं को ज्यादा अधिकार देने के संदर्भ में अनेक क्रांतिकारी कदम उठाए गए हैं ताकि समाज में महिलाओं यह भागीदारी पुरुषों के बराबर या ज्यादा हो।
आधुनिक काल में अंग्रेजो से लोहा लेनेवाली रानी लक्ष्मीबाई हो या सावित्री फुले, सरोजिनी नायडू, कल्पना चावला,पीटी उषा सहित विभिन्न काल खंडों में सभी क्षेत्रों में आश्चर्यजनक काम करने वाली महिलाओं की भारतवर्ष में कमी नहीं रही है। आज भी समाज के सभी क्षेत्रों में देश का नाम रोशन करने वाली महिलाएं जोर शोर से काम कर रही हैं।
महिलाओं से संबंधित लैंगिक असमानता जैसी जो भी कुरीतियां भारतीय समाज में आई वह विदेशी शासनकाल में विकसित हुई। पर्दा प्रथा, घूंघट प्रथा, बुर्का प्रथा,बाल विवाह, बहु विवाह, महिलाओं में अशिक्षा जैसी कुरीतियां विदेशी शासनकाल में आने के साथ ही समाज पूरी तरह पुरुष सत्तात्मक हो गया। आधुनिक काल में इसमें काफी सुधार हुआ है लेकिन अभी भी सुधार की जरूरत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रधानमंत्री बनने के बाद महिलाओं को समान अधिकार देने के संदर्भ में बहुत सारे काम किए गए हैं। जिसमें उज्जवला योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, जन धन योजना, सब्सिडी धारकों को सीधे अकाउंट में पैसा मिलना आदि जैसे दर्जनों योजनाएं हैं। जिसके माध्यम से आज महिला उत्थान में क्रांतिकारी परिणाम देखने को मिल रहे हैं।
भारत ने जो मार्ग बनाया है वह संपूर्ण विश्व के लिए अनुकरणीय है। विरोध व संघर्ष के माध्यम से समाज बनाने की बात करने वाले वास्तव में समाज को विध्वंस व विनाश के रास्ते पर ले जाना चाहते हैं। इस अवसर पर सेंटर फॉर जेंडर स्टडीज के छात्रों व शोधार्थियों को प्रमाण पत्र व प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर अश्विनी चौबे ने तीन पुस्तकों का लोकार्पण भी किया। जिसमें एक मिथिला की मध्यकालीन इतिहास से संबंधित पुस्तक है ।