महाराष्ट्र में चुनाव परिणाम आने के 13 दिन बाद भी कोई पार्टी सरकार गठन के लिए आवश्यक 145 सीटें नहीं जुटा पाई है। क्योंकि भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना 50 : 50 के फॉर्मूले को लेकर सरकार का गठन नहीं होने दे रही है। शिवसेना का कहना है कि उसे सत्ता में बरारबर की हिस्सेदारी चाहिए। सरल शब्दों में कहा जाए तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर ढाई साल भाजपा का कब्जा होगा और ढाई साल शिवसेना का तथा मंत्रालयों का बंटवारा भी बराबरी का होगा।
लेकिन, भाजपा के तरफ से यह स्पष्ट कहा गया है कि मुख्यमंत्री 5 साल के लिए भाजपा का ही होगा। जिसके बाद शिवसेना के तरफ से यह कहा जाने लगा कि हमारे पास 170 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। ऐसी स्थिति में यह कयास लगाया जा रहा था कि शिवसेना को एनसीपी व कांग्रेस का समर्थन मिलेगा। लेकिन, एनसीपी प्रमुख शरद पवार इस मसले पर चुप्पी साधे हुए थे। 6 नवंबर को एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा कि जनता ने भाजपा व शिवसेना को सरकार गठन करने के लिए जनादेश दिया हैऔर जनता ने हमें विपक्ष में बैठने का जनादेश दिया है इसलिए हमलोग विपक्ष में बैठेंगे।
राष्ट्रपति शासन से जुड़े सवाल का जवाब देते हुए शरद पवार ने कहा कि महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन नहीं लगे इसके लिए एक ही विकल्प है कि भाजपा और शिवसेना जनादेश का सम्मान करे और एक स्थायी सरकार का गठन करे। शिवसेना और भाजपा गठबंधन के बारे में पवार ने कहा कि दोनों पार्टियां 25 साल से एक दूसरे की सहयोगी है इसलिए आज नहीं तो कल ये लोग साथ आएंगे हीं।
घटनाक्रम के बाद भाजपा को थोड़ी रहत मिल सकती है। अब शिवसेना भी कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने का प्रयास नहीं करेगी। क्योंकि शिवसेना हिंदुत्व की राजनीति को प्राथमिकता देती है ऐसी स्थिति में अगर सत्ता के लालच में शिवसेना कांग्रेस का समर्थन ले लेती है तो आने वाले समय में भाजपा एकमात्र पार्टी रह जायेगी जिसके एजेंडे में हिंदुत्व का मुद्दा बचा रहेगा। वर्तमान परिदृश्य में यह कहा जा सकता है कि जिस प्रदेश में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी हो वहां कोई और पार्टी की सरकार हो यह संभव ही नहीं है। अगर शिवसेना अन्य पार्टियों के समर्थन से प्रदेश में सरकार का गठन करे तो कुछ समय में ही सरकार गिरने की संभावना प्रबल है। और अगले चुनाव में इसका सीधा फायदा भाजपा को मिल सकती है।
भाजपा 1995 के फॉर्मूले पर सरकार बनाना चाहती है
1995 में यह तय हुआ था कि जिस पार्टी के ज्यादा विधायक होंगे उस पार्टी का व्यक्ति मुख्यमंत्री होगा और जिसके कम विधायक होंगे उस पार्टी का व्यक्ति उपमुख्यमंत्री होगा और मंत्रालय भी उसी अनुसार मिलेगा। इस फॉर्मूले के कारण 1995 में शिवसेना को ज्यादा सीटें आयी थी और शिवसेना के मनोहर जोशी मुख्यमंत्री बने थे। बाद में शिवसेना के नारायण राणे मुख्यमंत्री बने थे। कम सीटें लाने वाली भाजपा के गोपीनाथ मुंडे उपमुख्यमंत्री बने थे।
मालूम हो कि इस बार चुनाव परिणाम आने के बाद महारष्ट्र के विधानसभा में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, हालांकि भाजपा को 2014 के मुकाबले काम सीटें आयी है। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 105, शिवसेना को 56, एनसीपी को 54, कांग्रेस को 44 तथा अन्य को 29 सीटें मिली है। जबकि बहुमत के लिए चाहिए 145 सीटें। लेकिन, भाजपा व शिवसेना का गठबंधन को 161 सीटें मिली जो कि बहुत से ज्यादा है। लेकिन कुर्सी को लेकर पेंच अभी तक फंसा हुआ है