ज्ञान का स्रोत लिए आया गुरु पूर्णिमा
आषाढ़ मास की पूर्णिमा से ग्रीष्म ऋतु का समापन माना जाता है। इसको गुरु पूर्णिमा कहते हैं। एक स्थान पर स्थिर होकर यानी ज्ञान साधना का शुभारम्भ। इसीलिए इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु के सानिध्य में साधकों को योग साधना से ज्ञान, भक्ति और शक्ति की प्राप्ति होती है। उससे समाज का कल्याण होता रहा है।
इसी दिन चारों वेदों एवं पुराणों को लिपिबद्ध करने वाले महर्षि वेदव्यास का जन्म हुवा था। एक दलित माता की कोख से जन्म लेने वाले वेदव्यास भारत की ज्ञान परम्परा के प्रतीक हैं। वे महाभारत के रचयिता थे। इसीलिए उन्हें कृष्ण द्वैपायन व्यास भी कहा जाता है। वे चारों वेदों के आधिकारिक प्रवक्ता थे। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था। वे कबीरदास के शिष्य थे।
शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है-उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है। गुरु मतलब ज्ञान का स्रोत है—”अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजन शलाकया,चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवै नमः”।