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बदल गया है 1 किलो का वजन? जानें माप के नए तरीके के बारे में

नयी दिल्ली : भारत समेत दुनिया भर में किलोग्राम मापने का तरीका बदल गया है। अभी तक इसे प्लैटिनम-इरिडियम के अलॉय से बने जिस सिलिंडर से मापा जाता था, उसे रिटायर कर दिया गया है। साल 1889 से इसी को माप माना जाता था। हालांकि अब वैज्ञानिक माप के जरिए किलोग्राम तय होगा। इस बारे में पैरिस में हुई दुनिया भर के वैज्ञानिकों की मीटिंग में एकमत से फैसला किया गया है।मापन का नया पैमाना अगले वर्ष यानी 2019 के 20 मई से अमल में आ जाएगा।
पहले दुनिया भर के किलोग्राम का वजन तय करने के लिए सिलिंडर के आकार के एक ‘बाट’ का इस्तेमाल किया जाता था। यानी उसका वजन जितना होता था, उतना ही किलोग्राम का स्टैंडर्ड वजन होता। यह सिलिंडर प्लैटिनियम और इरिडियम से बना था जिसे इंटरनैशनल प्रोटोकोल किलोग्राम के नाम से जाना जाता है।

वैज्ञानिक चाहते थे कि किलोग्राम के बाट की पैमाइश के लिए किसी चीज का इस्तेमाल न हो जैसा कि अभी तक होता था। इसकी जगह वे भौतिकी में इस्तेमाल होने वाले प्लैंक के स्थिरांक को पैमाना बनाना चाहते था। जिस तरह दूरी की पैमाइश के लिए मीटर को स्टैंडर्ड इकाई निर्धारित किया गया, उसी तरह किलोग्राम निर्धारित करने के बारे में भी सोचा जा रहा है। फिलहाल मीटर प्रकाश द्वारा एक सेकंड के 300वें मिलियन में तय की गई दूरी के बराबर है। अब बहुमत के बदलाव के पक्ष में वोट करने से किलोग्राम को निर्धारित करने के लिए प्लैंक के स्थिरांक का इस्तेमाल किया जाएगा।

भौतिकी में मापन के लिए कई तरह के नियतांक या स्थिरांक का इस्तेमाल होता है। स्थिरांक किसी चीज की उस मात्रा को कहा जाता है जिसके बारे में माना जाता है कि उसमें बदलाव नहीं होता है। जैसे अवोगाद्रो का स्थिरांक 6.02214129(27)×1023 है, यानी यह बताता है कि 1 मोल पदार्थ में अणुओं या परमाणुओं की संख्या 6.02214129(27)×1023 होगी। ठीक इसी तरह प्लैंक का नियतांक है जो मैक्स प्लांक नाम के जर्मन वैज्ञानिक ने दिया। यह बताता है कि किसी खास कण के अंदर ऊर्जा का वजन कितना होगा। प्लैंक का नियतंक 6.626176 x 10-34 joule-seconds के बराबर होता है।

भारत में आमलोगों के लिए यह जानना जरूरी है कि इसका आप पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। आप मार्केट में पहले की तरह ही खरीदारी करेंगे। सिर्फ किलोग्राम के बाट के वजन का तरीका बदल जाएगा।