दरअसल, इसी पाॅलिटिकल हैंग ओवर की प्रतीक्षा थी, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद तथा उनके उपमुख्यमंत्री रहे पुत्र तेजस्वी यादव को। हैंग ओवर महाराष्ट्र का तथा झारखड में आसन्न चुनाव में आजसू से भाजपा के मनमुटाव का। हिन्दी हार्टलैंड की जनता की नब्ज पर हाथ रखे लालू प्रसाद यादव ने जिस समय अपने पुत्र तेजस्वी से चक्र चलवाया है, उससे यह कहना कठिन होगा कि यह समय उपयुक्त था अथवा नहीं।
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वैंसे, यह साफ है कि इतने बड़े फैसले के लिए तेजप्रताप से रामचन्द्र पूर्वे के साथ अच्छा संबंध रहना अथवा नहीं रहना मायने नहीं रखता। जगदानन्द सिंह के अध्यक्ष पद पर काबिज होने की आधिकारिक घोषणा के बाद आज भले ही विघानसभा में तेजप्रताप ने विक्ट्री के सिम्बल दिखाते हुए खुशी व्यक्त की। पर यह फैसला बहुत बड़ा है। ऐसा पाॅलिटिकल फैसला पार्टी में दबाव डाल कर तेजप्रताप नहीं करवा सकते। प्रेक्षकों का मानना है कि हिन्दी हार्टलैंड में बदल रहे राजनीतिक चक्र के कारण ऐसा फैसला लालू प्रसाद यादव का ही हो सकता है।
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रामचन्द्र पूर्वे और तेजप्रताप में कोई खटपट नहीं
सूत्रों ने बताया कि अध्यक्ष पद को लेकर पार्टी में पहले से ही जिच चली आ रही थी। लेकिन, लालू प्रसाद कों तलाश थी उपयुक्त समय और उपयुक्त व्यक्ति की। जगदानन्द सिंह की केमिस्ट्री को वे दशकों से जानते रहे हैं। लालू मंत्रिमंडल में वे कई प्रमुख विभागों के मंत्री रहे हैं और सलाहकार भी।
बहरहाल, आज रामचन्द्र पूर्वे ने पत्रकारों से साफ भी कर दिया कि तेजप्रताप और उनमें कोई मनमुटाव नहीं है। वे उन्हें चाचा कहते हैं और पूर्वे उनको भतीजा से संबोधित करते हैं। चाचा-भतीजा का मामला चलता रहता है। डन्होंने यह भी कहा कि उन्हें जगदानन्द सिंह से कोई मनमुटाव नहीं। उनसे बेहतर संबंध हैं।
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वैसे, तेजस्वी प्रसाद यादव ने आज विधानसभा में पूरे आक्रमकता के साथ कहा कि भाजपा खुद उनको मुख्यमंत्री बनाना चाहती थी और अपनी पार्टी से किसी को उपमुख्यमंत्री। इस चैंकाने वाले विस्फोट को लोग कई कोणों से नाप-तौल रहे हैं। इसकी सच्चाई की तह में भी लोग जाना चाहते हैं। लोगों का मानना है कि कहीं यह जानबूझ कर दिया गया अनर्गल प्रलाप तो नहीं। कारण-भाजपा इतनी कच्ची गोटी नहीं खेलती कि किसी नौसिखिए को एक बड़े प्रदेश की लगाम दे दे जो उनके पिता के घोटाले की परत खोल कर अपनी नींव मजबूत कर रही हो।
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वैसे, इतना तय हो गया है कि एक अर्से बाद राजद ने एक नई पारी की शुरूआत की है। यह मांग बहुत पुरानी थी कि लालू प्रसाद अपने परिवार मोह से निकल कर अपनी पार्टी की राजनीति को नई दिशा दें। कारण भी है-लालू प्रसाद घोटाले की सजा काटते रिम्स में हैं और राबड़ी देवी की भी उम्र हो चली है। वैसे, इस चाल से उंची जातियों को अपनी पार्टी की ओर खिंचना भी है कि बिहार विधानसभा चुनाव में महज 11 महीने की देर है। मतलब चुनाव की घंटी बजने ही वाली है।