अमेरिका सहित 160 देशों ने सराहा आईआईटियन रितेश का शोध

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नवादा : जिले के पकरीबरावां प्रखंड के रेवार गाँव के रहने बाले दिल्ली आईआईटी से बीटेक करने के बाद अपने जीवन में देश को पूरी दुनिया में अलग मुकाम दिलाने की मंशा रखकर रिसर्च करने में लगे आईआईटियन रितेश के रिसर्च पेपर को विश्व के टॉप अंतररास्ट्रीय जर्नल 1963 में अमेरिकन सोसाइटी के द्वारा बनाया गए इंटरनेशनल इंस्टिट्यूशन ऑफ इलेक्ट्रिकल इलेक्ट्रॉनिकस एंड इनकोपेरेटेड इंजिनीयर नामक एक विश्व स्तरीय ऑर्गनाइजेशन में जगह मिला है।

जिसमें उनके इस रिसर्च पेपर को अमेरिकन, यूके, चाइना इंडोनेसिया, साउथ कोरिया, मेक्सिको, ब्रिटेन, स्वीडन, अर्जेटाइन रिपब्लिक, बंगलादेश, युगांडा, नामीबिया, ब्रूनेई, गाम्बिया, लिथुआनिया आदि जैसे 160 से ज्यादा देश के लोग शामिल हैं। उनके इस रिसर्च पेपर को रिव्यू किया और खूब सराहना की हैl आईआईटियन रितेश के इस रिसर्च में किसी तत्व के सबसे छोटे भाग जिसे एटम कहते हैं उनके अंदर दो भाग होते हैं प्रोटान और न्यूट्रान। इलेक्ट्रान इसके चारों ओर चक्कर लगाता है। एटम के प्रयोग के दौरान लेजर लाइट को ठंडा करने की तकनीक विकसित करने से जुड़ा है जिसे विज्ञान में कूलिंग एंड टैपिंग एटम्स थ्योरी के नाम से जाना जाता है।

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इस अहम शोध को दुनिया को बदलने की दिशा में एक बहुत बड़ी पहल माना जा रहा है l साथ हीं इस शोध के साथ एक अन्य पहलू भी जुड़ा है जिसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है की क्लैथरेट हाइड्रेट मॉलीक्यूल जो मिथेन की तरह होता है उसका इस्तेमाल ईंधन के रूप में हो सकता है। ये तत्त्व आमतौर पर बहुत अधिक या बहुत कम तापमान में बनता है।

जैसे समुद्र में 100 मीटर नीचे या ग्लेशियर जैसे क्षेत्रों में। उन्होंने लैब में 263 डिग्री सेल्सियस का तापमान पैदा किया जो सामान्यत: समुद्र की गहराई में ही संभव हो पाता है। इस तकनीक से कॉर्बनडाईऑक्साइड पर भी नियंत्रण कर ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के साथ कार्बनडाईऑक्साइड को समुद्र की तलहटी में दबाया जा सकता है।

भविष्य पर नियंत्रण पाने और दुनिया को बदलने की चाहत रखने बाले हर एक रिसर्चर, इनोवेटर, साइंटिस्ट की रिसर्च पेपर को इस ऑर्गनाइजेशन में जगह मिलना, इसके टीम मेंबर के द्वारा रिव्यू करना और उसका पब्लिश हो पाना एक सपना होता है।

लेकिन कहते हैं ना की सिर्फ सपनों से कुछ नही होता सफलता प्रयाशों से हाशिल होती है और इसके लिए जिसने अपनों को बश में कर लिए जीत को देवता भी हार में बदल नही सकते। जिसे शत प्रतिशत चरितार्थ करते हुए अपने जज्बात और उताबलापन से नहीं बल्कि अपनी मेहनत और दिमाग से सफलता हासिल कर नवादा के होनहार आईआईटियन रितेश ने सच कर दिखाया है और समाज को ये संदेश दिया है की अगर आप सफल होना चाहते हैं तो अपना ध्यान समस्या खोजने में नहीं बल्की समाधान खोजने  में लगाईए। उनकी सफलता एक बिज्ञान है अगर परिस्थितियां हैं तो परिणाम भी मिलेगा और इसके लिए दलीलें नही बल्की बुलंद हौसलें और कड़ी मेहनत की अबश्यकता है l

नवादा के आईआईटियन की इस अहम शोध को इस प्रतिष्ठत अंतर्राट्रीय जर्नल में जगह मिलना जिला,राज्य और देश के लिए गौरव का छन है l आईआईटी जैसे संस्था से बीटेक के बाद दुनिया को बदलने को लेकर रिसर्च के छेत्र में काम करने का निर्णय लेने बाले नवादा के आईआईटियन रितेश का हमेंशा से मानना रहा है की ज्ञान के भंडार को बढ़ाने के लिये योजनाबद्ध ढंग से किये गए सृजनात्मक कार्य को ही रिसर्च यानी अनुसंधान एवं डेवलपमेंट यानी विकास कहा जाता है। इसमें मानव जाति, संस्कृति और समाज का ज्ञान शामिल है और इन उपलब्ध ज्ञान के स्रोतों से नए अनुप्रयोगों को विकसित करना ही अनुसंधान और विकास का मूल उद्देश्य है जिसे पूरा करने के लिए हम रिसर्चर काम करते  हैंं l आईआईटियन रितेश ने इस कामयाबी पे खुशी जाहिर करते हुए कहा की साइंस कोई हौव्वा नहीं, वह एक विचार है। दिमाग में विचार आते हैं तो नये-नये प्रयोग भी सामने आते हैं। हमारे देश भारत में कुदरत का जो खजाना है, वह बहुमूल्य है। इसको विज्ञान में प्रयोग करके कई समस्याओं से निपटारा पाया जा सकता है। आईआईटियन रितेश का अनुमान है की आने बाले समय में सबसे

बड़ा संकट दुनिया में ऊर्जा का आने वाला है जिसके लिए भी मैं काम कर रहा हूँ।  शोध से जुड़ी अपनी इस कामयाबी से खुश रितेश ने कहा की अमरीकी संस्था क्लैरिवेट एनॉलिटिक्स ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें दुनियाभर से चार हजार प्रभावशाली वैज्ञानिकों को उनकी रिसर्च के लिए जगह मिली है जिसमें भारत के दस वैज्ञानिक शामिल हैं।

रिपोर्ट में 60 देशों के वैज्ञानिकों को शामिल किया गया था जिसमें 80 फीसदी वैज्ञानिक दस देशों से थे। सबसे अधिक 186 वैज्ञानिक हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से थे लेकिन अब इस डेटा को बदलना है और मैं इस जिद्द के साथ काम करता हूँ की इस लिस्ट में पहला नाम हमारे देश का हो।  किसी भी उच्च शिक्षण संस्थान के लिए सांस्कृतिक विविधता बहुत महत्वपूर्ण होती है। हमारा प्रयास ऐसा हो जिसमें ऐसे छात्र तैयार हों जो वैश्विक दृष्टिकोण विकसित करें और अपने चुने हुए क्षेत्र में वैश्विक खिलाड़ी बनें। हमारे शैक्षणिक संस्थान ऐसा हो जहां विपरीत माइंड सेट के लोग एक-दूसरे से बात करते हैं तो रचनात्मकता शुरू होती है। आईआईटियन रितेश ने कहा की मुझे हमेंशा से इस बात से प्रेरणा मिली है की भारतीय वैज्ञानिकों का जीवन और कार्य प्रौद्योगिकी विकास तथा राष्ट्र निर्माण के साथ गहरी मौलिक अंतःदृष्टि के एकीकरण का शानदार उदाहरण रहा है।

रितेश का हमेंशा से मानना रहा है की आईआईटी से पढ़ने के बाद बड़े पैकेज की सैलरी पाना ही जीवन का मकसद नही होनी चाहिए। ये तो सभी को मिल ही जाती है पर सिर्फ बड़ी सैलरी मेरे इरादों की उड़ान से बड़ी नही है। अपने खाली समय में गरीबों को 4 सालों से मुफ्त शिक्षा देने के साथ-साथ भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह के साथ मिलकर कैंसर पीड़ित बच्चों को आर्थिक मदद करने की पहल भी करते रहते हैं।

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