वाराणसी/पटना : वह 29 नवंबर 2005 की काली शाम थी जब यूपी के गाजीपुर जिलांतर्गत बसनियां चट्टी इलाके में भाजपा के कद्दावर विधायक कृष्णानंद राय एक क्रिकेट मैच का उद्धघाटन कर लौट रहे थे। अचानक उनके काफिले पर एके—47 से दनादन गोलियां बरसने लगी। बिना रुके लगातार। करीब 500 राउंड की ताबड़तोड़ फायरिंग में विधायक समेत उनके सात लोग इस हमले में ढेर हो गए।
इस हत्याकांड को अंजाम देने का आरोप बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी, मुन्ना बजरंगी व मुख्तार के भाई तथा गाजीपुर के सांसद अफजाल अंसारी पर लगा। फिलहाल इस हत्याकांड के आरोपियों में बसपा के सांसद अफजाल अंसारी 2019 के आम चुनाव में भाजपा के पूर्व मंत्री मनोज सिन्हा को हराकर सांसद चुने गए हैं। दूसरे आरोपी मुन्ना बजरंगी जो मुख्तार अंसारी का शार्प शूटर था, उसकी पिछले वर्ष जेल में हत्या हो चुकी है। अब बात मुख्य आरोपी मुख्तार अंसारी की तो वे फिलहाल मऊ से बसपा के विधायक हैं। जिस समय विधायक कृष्णानंद की हत्या हुई थी उस समय मुख्तार अंसारी जेल में बंद था।
लौटते हैं मुख्य कहानी पर। 2002 के विधानसभा चुनाव में कृष्णानंद राय ने मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी को विधानसभा चुनाव में हरा दिया था। कृष्णानंद को चुनाव जीतने में पूर्वांचल के बाहुबली और मुख्तार अंसारी के दुश्मन ब्रजेश सिंह का साथ मिला था। ब्रजेश सिंह पूर्वांचल का बाहुबली था और उसका काफी वर्चस्व था। लेकिन राजनीति में रसूख नहीं होने के कारण वह कमजोर होता चला गया क्योंकि मुख्तार को राजनेताओं का सरंक्षण प्राप्त था। ब्रजेश सिंह ने भी राजनीतिक प्रोटेक्शन के लिए कृष्णानंद राय से हाथ मिलाया। एक बार उसने मुख्तार पर हमला भी किया जिसमें दोनों तरफ से जबरदस्त लड़ाई हुई। इस हमले मे मुख्तार गैंग के 3 लोग मारे गए और ब्रजेश सिंह घायल हुआ। इसके बाद ब्रजेश सिंह दुश्मन का दुश्मन दोस्त को ढाल बनाया और कृष्णानंद राय के पास चला गया। चर्चा तो इस बात की भी होती है कि कृष्णानंद ने ब्रजेश व उसके गैंग को चुनाव में मदद के बदले अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल करके सरकारी ठेका दिलवाया। इस कारण मुख्तार के ठेके और गुंडा टैक्स जैसे और भी कामों में बहुत नुकसान हुआ। और तभी अंसारी गैंग ने कृष्णानंद को खत्म करने की योजना बनाई।
मुख्तार अंसारी के बारे में बसपा सुप्रीमो मायावती ने यह कहा था कि वह गरीबों का मसीहा और रॉबिनहुड हैं। अंसारी पर कुल 125 से अधिक मुकदमे दर्ज हैं, जिसमें हत्या, अपहरण व दंगे भड़काने जैसे 39 गंभीर मामले हैं। मुख्तार पर मऊ में साम्प्रदायिक दंगे भड़काने का आरोप लगा जिसके बाद मायावती ने उसे बसपा से निकल दिया। लेकिन राजनीतिक रसूख के कारण फिर से उसे बसपा में शामिल कर लिया। विश्व हिन्दु परिषद् के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष नंदकिशोर रूंगटा का अपहरण और हत्या के मामले में टाडा कानून के तहत मुख्तार अंसारी को 10 साल कैद की सजा सुनाई गई थी। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में 1 साल बाद उसे बरी कर दिया गया। 3 जुलाई 2019 को 14 साल से लंबित विधायक हत्याकांड में सीबीआई की विशेष अदालत ने अंसारी और सभी आरोपियों को बरी कर दिया। यानी घंटों सरेआम 500 राउंड एके 47 से गोलियां बरसाकर तब के विधायक समेत 7 लोगों की हत्या कर देने के मामले में नतीजा सिफर। वाह रे हमारी कानून और उसकी व्यवस्था!
(राहुल कुमार)