हरिवंश-नीतीश मुलाकात के बाद ‘पालाबदल’ की अटकलें तेज
पटना: जमीन के बदले नौकरी घोटाले में डिप्टी सीएम तेजस्वी के चार्जशीटेड होने के बाद बिहार में जबर्दस्त सियासी हलचल है। अचानक राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश की पटना में मुख्यमंत्री से डेढ़ घंटे की मुलाकात के बाद यह सियासी पारा और ऊपर चढ़ गया। आलम यह है कि राजद, भाजपा और खुद जदयू के नेता भी इस पसोपेश में पड़ गए हैं कि कहीं फिर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश की अंतरात्मा न अचानक जाग उठे और मौजूदा महागठबंधन सरकार धड़ाम से गिर जाए।
पसोपेश में सियासी दल, पलटी मारेंगे नीतीश!
दरअसल इस सियासी आलकन के पीछे राजनीतिक टीकाकार यह बताते हैं कि नीतीश पूर्व में भी ऐसा कर चुके हैं। भ्रष्टाचार और दागी होने के मुद्दे पर अभी इसी महागठबंधन सरकार के बनते समय उन्होंने राजद कोटे के मंत्री कार्तिकेय सिंह और मंत्री सुधाकर सिंह को हटवाया था। इससे पहले 2017 में खुद तेजस्वी यादव पर आरोप लगने के बाद उन्होंने तब की महागठबंधन सरकार गिरा दी थी और भाजपा से हाथ मिला लिया था। चूंकि कुछ ऐसा ही स्क्रिप्ट बिहार की सियासत में फिर तैयार हो गया है, इसलिए नीतीश एक बार फिर कुछ चौंकाने वाला कदम उठा लें तो इसमें आश्चर्य नहीं।
पीएम मोदी और नीतीश दोनों के करीबी हैं हरिवंश
वरिष्ठ पत्रकार राकेश प्रवीर के अनुसार हरिवंश का ऐसीे सियासी हलचल के बीच नीतीश से यूं ही मिलना-जुलना नहीं हुआ है। हरिवंश जदयू के सांसद हैं और वे राज्यसभा के उपसभापति भी हैं। हरिवंश को जहां नीतीश कुमार ने ही राज्यसभा भेजा हैं, वहीं वे प्रधानमंत्री मोदी के भी करीबी हैं। ऐसे में हरिवंश भाजपा और नीतीश के बीच टूटी कड़ी को जोड़ सकते हैं। लेकिन यह सब उतना भी आसान नहीं क्योंकि भाजपा अब नीतीश को किसी भी सूरत में बिहार में तो नहीं स्वीकारेगी और अगर वे भाजपा के साथ जाते हैं तो उन्हें केंद्र की सियासत में जाना होगा। यानी बिहार में अब भाजपा जदयू को बड़े भाई की भूमिका देने के मूड में कतई नहीं है।
भाजपा की शर्त्त, केंद्र की सियासत में जायें नीतीश
नीतीश कुमार के लिए इस समय सियासी हालात इधर कुआं-उधर खाई वाले हो चले हैं। अगर वे चार्जशीटेड तेजस्वी के साथ खड़े होते हैं तो उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने पुराने सुशासन वाले स्टैंड से समझौता करना होगा। इसके अलावा बिहार का सीएम पद भी राजद के साथ रहकर ज्यादा दिन तक उनके पास नहीं रहने वाला। क्योंकि 2025 के विधानसभा चुनाव बाद राजद उन्हें किसी भी हाल में बतौर मुख्यमंत्री स्वीकार नहीं करेगा। ऐसे में नीतीश के पास यही विकल्प है कि वह फिर इसी मुद्दे पर पलटी मार दें। लेकिन इस बार भाजपा भी कमर कसे हुए है कि वह अब अपने साथ नीतीश को बिहार में नहीं बल्कि केंद्र की सियासत में ही मंजूर करेगी। अब देखना है कि अपने राजनीतिक फैसलों से अक्सर चौंकाने वाले नीतीश आने वाले दिनों में क्या स्टेप उठाते हैं।