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आधुनिकता के दौर में भी ट्रेंड कर रहा मधुबनी पेंटिंग से सुसज्जित कपड़े

  • पेंटिंग कर महिलाएं हो रही आत्मनिर्भर

मधुबनी : आधुनिकता के दौर में भी मधुबनी पेंटिग से सुसज्जित कड़े काफ़ी ट्रेंड में है, बाज़ार में तरह-तरह के रंग व डिज़ाइन के कपड़े मौजूद है पर मधुबनी पेंटिंग से सुसज्जित कपडे और साड़ियों की मांग में कोई कमी नहीं आ रही है। हाल ही में मधुबनी पेंटिंग से सुसज्जित मास्क भी बाज़ार में आए है जिनकी काफ़ी मांग है सामान्य जन से लेकर बॉलीवुड के कलाकारों के बीच भी यह काफ़ी चर्चा का विषय रहा।

विदेशियो को ख़ूब भा रहा पेंटिंग

मिथिलांचल, खासकार मधुबनी की मिथिला पेंटिंग वाले परिधान महिलाएं काफी पसंद कर रही हैं। सिल्क व कॉटन साड़ियाें, ब्लाउज, दुपट्‌टों व कुर्तियों आदि पर मिथिला पेंटिंग का चलन लोकप्रिय होता जा रहा है। इनकी मांग इतनी बढ़ चुकी है, कि कलाकारों के पास ऑर्डर की लंबी फेहरिस्त है। देश ही नहीं, विदेशों में भी इसके कद्रदान हैं। कलाकारों की मेहनत ने इस पारंपरिक कला को आज पूरी दुनिया में मशहूर कर दिया है। महानगरों में लगने वाले हाट व प्रदर्शनी में ये परिधान विदेशियों को खूब लुभाते हैं। खास बात यह है कि महिलाओं की यह पसंद महिलाओं का आत्‍मनिर्भर बना रही है।

मूल रूप से दीवारों पर होने वाली चित्रकारी आज कपड़ों पर धूम मचा रही है। कलाकारों को इससे आर्थिक संबल भी मिला है, उनका हौसला भी बढ़ा है। हालांकि, मिथिला पेंटिंग के बाजार में बिचौलियों के हावी होने से कलाकारों में थोड़ी मायूसी भी है, उन्हें उनकी कला का वाजिब दाम नहीं मिल रहा है। बावजूद, आज के फैशन की दुनिया में मिथिला पेंटिंग वाले परिधानों का कोई मुकाबला नहीं। इतना ही नहीं, मिथिला की यह पारंपरिक कला आज ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के साथ ही नारी सशक्तीकरण में भी अहम भूमिका निभा रही है।

महिलाओं की पहली पसंद है पेंटिंग वाली साड़ियां

मिथिला पेंटिंग वाली साड़ियों का चलन जोर पकड़ता जा रहा है। ये साड़ियां महिलाओं की पहली पसंद बनती जा रही हैं। सिल्क व कॉटन साड़ियों पर मिथिलांचल क्षेत्र में काफी काम हो रहा है। फुल वर्क, आंचल व किनारा के साथ ही पाटला वर्क लोकप्रिय है। फुल वर्क में पूरी साड़ी मिथिला पेंटिंग से सजी होती है। ग्राहक यदि अपनी साड़ी दें, तो कलाकार इसे साढ़े चार से पांच हजार रुपये में तैयार कर दे रहे हैं। केवल आंचल व किनारा में मिथिला पेंटिंग का काम डेढ़ से दो हजार तक का होता है। पाटला वर्क, यानी घुटने तक का काम तीन से साढ़े तीन हजार तक में हो जा रहा है। इसमें रंगों के अलावा कलाकारों की मेहनत होती है। कलाकार साड़ियों के आर्डर लेना पसंद करते हैं, क्योंकि इसमें उनकी आमदनी अच्छी हो जाती है। कई कलाकार आज ये काम कर अपना परिवार चला रहे हैं।

फैशन के मामले में युवा वर्ग हमेशा से चूजी रहा है। इन दिनों युवतियों में पारंपरिक परिधानों का चलन बढ़ रहा है। ऐसे में मिथिला पेंटिंग वाली कुर्ती व दुपट्‌टा उन्हें भा रहे हैं। ये परिधान जिंस के साथ भी पहने जा रहे हैं। मिथिला पेंटिंग वाला दुपट्‌टा तीन से पांच सौ रुपये तक में मिल जाता है। फुल वर्क वाला दुपट्‌टा भी आठ सौ से एक हजार तक में उपलब्ध हो जाता है। कुर्ती की बात करें तो यह पांच सौ से एक हजार के रेंज में मिल जाता है।

विदेशी बाज़ार तक बनी पहुंच

मिथिला पेंटिंग वाले कपड़ों की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। स्थानीय बाजार में तो ये अपनी जगह बना ही चुके, विदेश से भी खूब आर्डर आ रहे हैं। मिथिला पेंटिंग के कलाकार बताते हैं कि लगातार आ रहे ऑर्डर ने हिम्मत बढ़ा दी है। कहते हैं, पहले लगता था कि मिथिला पेंटिंग से पेट नहीं चलने वाला, लेकिन आज परिवार का भरण-पोषण इससे ही कर रहा हूं. कई कलाकारों ने बताया कि विदेशों से आने वाले ऑर्डर में बिचौलियों की भूमिका अब भी अधिक है, इसके बावजू काम इतना बढ़ गया है कि फुर्सत नहीं मिलती, एक ऑर्डर पूरा होते ही दूसरा आ जाता है।

आत्मनिर्भर बन रही महलाएं

मिथिला पेंटिंग वाली ड्रेस महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में मदद कर रही है। इस क्षेत्र में कई अवार्ड प्राप्त कर चुकीं मधुबनी के गजहारा की रहने वाली अंजू देवी के साथ आज करीब तीन दर्जन कलाकार काम कर रहे हैं। इनमें अधिकांश आर्थिक रूप से कमजोर महिलाएं व युवतियां हैं। ये न केवल प्रशिक्षण पा रहीं, बल्कि पेंटिंग कर आत्मनिर्भर भी बन रहीं हैं।

सुमित राउत

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