आज भी धनतेरस, लेकिन सिर्फ 27 मिनट ही पूजा मुहूर्त, क्यों किया जाता है दीपदान?
पटना : धनतेरस का पर्व आज भी मनाया जा रहा है। दरअसल तिथियों के दो दिन होने से कोई 12 नवंबर को तो कोई 13 नवंबर को धनतरेस मना रहा है। धनतरेस पर कुबेर, महालक्ष्मी, धनवंतरी और यमराज की पूजा की जाती है। पंचांग के अनुसार के 13 नवंबर को भी धनतेरस पर्व मनाया जाएगा। इस दिन धनवंतरी से आरोग्यता का आशीर्वाद भी मांगा जाता है। इसके अलावा धनतेरस पर यमराज का दीप भी रात्रि में दक्षिण दिशा में जलाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि धनतेरस में स्थिर लग्न में मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से घर में मां लक्ष्मी का स्थायी वास होता है। आज स्थिर लग्न के चौघड़िया मुहूर्त में पूजा और खरीददारी बहुत शुभ होती है। इस साल 13 नवंबर की शाम 7 बजकर 50 मिनट से चतुर्दशी लगने के कारण धनतेरस के दिन नरक चतुर्दशी भी मनाई जाएगी।
दीपदान का शुभ मुहूर्त
धनतेरस के दिन दीपदान की भी परंपरा है। इस साल शाम 5:32 से 5:59 मिनट के बीच अमृत मुहूर्त में पूजा और दीपदान करना फलदायी साबित होगा। इस मुहूर्त में पूजा करना किसी भी व्यक्ति के धन को तेरह गुना तक बढ़ाने वाला सिद्ध होता है।
खरीदारी का शुभ मुहूर्त
इस वर्ष 13 नवंबर को धनतेरस पर खरीदारी के लिए कुल तीन मुहूर्त का निर्माण हो रहा है। पहला मुहूर्त सुबह 7 से 10 बजे तक है। दूसरा मुहूर्त दोपहर 1 से 2.30 बजे तक रहेगा। तीसरा मुहूर्त शाम 5:27 से लेकर 5:59 तक मान्य रहेगा।
दीपदान क्यों? धनतेरस से जुड़ी पौराणिक कथा
धनतेरस के दिन दक्षिण दिशा में दीपक जलाना शुभ होता है। कहते हैं कि एक दिन दूत ने यमराज से बातों ही बातों में प्रश्न किया कि क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है? इस प्रश्न के उत्तर में यमराज में कहा कि व्यक्ति धनतेरस की शाम यम के नाम का दीपक दक्षिण दिशा में रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इसी मान्यता के अनुसार, धनतेरस के दिन लोग दक्षिण दिशा की ओर दीपक जलाते हैं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र मंथन से धन्वंतरि प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वंतरि कलश लेकर प्रकट हुए थे। कहते हैं कि तभी से धनतेरस मनाया जाने लगा। धनतेरस के दिन बर्तन खरीदने की भी परंपरा है। माना जाता है कि इससे सौभाग्य, वैभव और स्वास्थ्य लाभ होता है। धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर की विधि-विधान से पूजा की जाती है।