मुजफ्फरपुर : चमकी बुखार का कारण क्या है, यह किसी को नहीं मालूम। डाक्टर, मंत्री, नेता, मीडिया, जिसको जो सूझ रहा वह उसी हिसाब से इस रहस्यमयी बीमारी को डायग्नोस कर दे रहा है। हाल में इन ज्ञानी लोगों के निष्कर्ष की मार सबसे अधिक मुजफ्फरपुर की आर्थिक रीढ़ ‘लीची’ पर रही। सभी ने अपने—अपने तर्कों से लीची को निशाने पर लिया। लेकिन इस चक्कर में बदनाम हुई लीची ने मुजफ्फरपुर के लोगों—किसानों के लिए भारी मुसीबत खड़ी कर दी है। जो लीची हाल तक पटना और बिहार के अन्य शहरों में 40—60 रुपए किलो बिक रही थी, वह अब 20 रुपए में 2 से 4 किलो यानी 5—10 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकने लगी है। यहां तक कि देश के अन्य राज्यों में भेजी जाने वाली लीची की मात्रा और मूल्य में भारी गिरावट आई है। यह एक तरह से चमकी पीड़ित मुजफ्फरपुर पर दोहरी मार की तरह है जो यहां के लोगों के पेट पर पड़ने वाली जबर्दस्त ‘लात’ के रूप में सामने आई है।
चमकी के चक्कर में अब किसानों के पेट पर भी लात
बिहार के मुजफ्फरपुर, वैशाली, समस्तीपुर और चम्पारण समेत 12 जिलों में एक के बाद एक बच्चों की मौत हो रही है। आंकड़ा 144 पहुंच गया है। लेकिन बीमारी क्या है यह अभी तक किसी को पता नहीं। कोई इसे एईएस तो कोई चमकी बुखार बता रहा। लेकिन अभी तक इस पर कोई एक राय नहीं बनी है। लेकिन सभी मुजफ्फरपुर की शाही लीची को इसके लिए टारगेट कर रहे हैं। सरकार भी लोगों को इस खाने से बचने की सलाह दे रही है। लेकिन इसमें सबसे गंदा रोल मीडिया का रहा।
मेहिषी में सबसे अधिक लीची, निशाना मुजफ्फरपुर क्यों?
विशेषज्ञों और जानकारों ने तर्क दिया कि यदि लीची वजह होती तो यह बीमारी लीची उत्पादन करने वाले इलाकों में भेदभाव क्यों करती। बिहार में सबसे ज्यादा लीची का उत्पादन चंपारण के मेहिषी में होता है। लेकिन बीमारी ने मुजफ्फरपुर को अपना एपीसेंटर बनाया। ऐसा क्यो? यदि लीची चमकी बुखार की मुख्य वजह है तो फिर इसे मेहिषी को निशाना बनाना चाहिए था, जहां अब तक एक भी केस चमकी बुखार का सामने नहीं आया है। विशेषज्ञों के अनुसार मीडिया को मसाला चाहिए अपनी रेटिंग बढ़ाने को, जबकि शासन के लिए यह अपनी नाकामी छिपाने का एक अच्छा बहाना है। साफ है कि न तो लीची खाने से बीमारी होती है, न इसका कोई ठोस वैज्ञानिक तर्क सामने आया है। जिन बच्चों की मौत हुई है उनमें शुगर और सोडियम की कमी पाई गई है। ऐसे में लीची से शुगर या सोडियम कम होना किसी रिसर्च का अंतिम निष्कर्ष तो नहीं साबित हुआ है।
विशेषज्ञों की राय, लीची खाने से नहीं हुई बीमारी
मुजफ्फरपुर में केजरीवाल अस्पताल के के प्रसिद्ध शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. चैतन्य कुमार कहते हैं कि पीड़ित बच्चों की केस हिस्ट्री में किसी ने भी लीची खाने की बात नहीं बताई है। इससे यह कहना कि लीची से यह बीमारी होती है यह पूरी तरह गलत है।
मुजफ्फरपुर से 7 किमी दूर मुशहरी स्थित लीची अनुसंधान केंद्र के डायरेक्टर कहते हैं कि यह लीची को बदनाम करने की साजिश है। वैज्ञानिक शोधों में यह साबित हो चुका है कि लीची गुणवत्तायुक्त और शरीर को भरपूर पोषण देती है। इसमें कई प्रकार के विटामिन्स होते हैं और ग्लूकोज भरपूर मात्रा में होती है। जबकि इस बीमारी में ग्लूकोज की ही कमी होती है। लीची का इस बीमारी से कोई संबंध नहीं है।
शक को आधार बनाकर मीडिया ने फैलाया भ्रम
एक और तर्क यह दिया जा रहा कि महज शक के आधार पर लीची को बदनाम किया जा रहा। चमकी बुखार से छह माह और एक साल का बच्चा भी बीमार हुआ है। इतनी छोटी उम्र का बच्चा तो लीची नहीं खाता। फिर वह बीमार कैसे पड़ा। लीची पर पहली अंगुली 2014 में तब उठी जब चमकी बुखार की जांच के लिए एक टीम नेशनल वेक्टर बॉर्न डिजीज कंट्रोल की ओर से डॉक्टर जैकब जॉन के नेतृत्व में आई। तब इस टीम ने महज शंका जाहिर की कि लीची की गुठली में एक तरह का तत्व है जो घातक हो सकता है। हालांकि इसकी न कोई पुष्टि हुई न कोई रिसर्च हुआ। यहीं से हर वर्ष मीडिया इस एक आशंका को आधार बनाकर अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए लीची को टार्गेट करने लगा। अब ऐसे में मुजफ्फरपुर के किसानों के पेट पर लात पड़े तो पड़े।