पटना/मुजफ्फरपुर : एईएस, दिमागी या चमकी बुखार। बिहार के बच्चों की साल दर साल बस यही नियति है। पिछले 20 वर्षों से हर साल यह सब दोहराया जाता रहा है। चौंकाने वाली बात यह है कि इन 20 वर्षों में मोटामोटी 15 वर्षों तक सुशासन यानी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री रहे हैं। साफ इमेज, कुशल राजनीतिज्ञ और सख्त शासन का दावा रखने वाले नीतीश कुमार की सारी संवेदना चमकी या दिमागी बुखार से पीड़ित गरीब बच्चों के सामने पानी भरने लगती है। तभी तो इस वर्ष भी वे 125 से अधिक बच्चों की मौत हो जाने और दिमागी बुखार शुरू होने के 17 दिनों बाद पहली बार आज मुजफ्फरपुर पहुंचे।
अगले साल इलेक्शन, कैसे मांगेंगे वोट
मुज़फ़्फ़रपुर स्थित एसकेएमसीएच में बच्चों की मौत का सिलसिला 17 दिन पहले शुरू हुआ था, जो अब तक जारी है। पूरे बिहार में अब तक 126 बच्चों की मौत हो चुकी है। जाहिर है कि मुख्यमंत्री के इतने असंवेदनशील रवैये के खिलाफ जनआक्रोश पनपना ही था। हुआ भी यही। सीएम को ‘गो बैक’, ‘हत्यारी सरकार’ के नारे और काले झंडे से दो—चार होना पड़ा।
चमकी बुखार पर आम जनता के सवाल
अब यहां प्रश्न उठता है कि पिछले 20 वर्षों से यह बीमारी हर साल अपना तांडव मचाती है, लेकिन सरकार इसके ठोस निदान के बारे में वास्तविक पहल क्यों नहीं करती? ठोस रिसर्च पर काम क्यों नहीं किया गया? खासकर, मुख्यमंत्री ने इतने अहम मसले से आंखें क्यों मूंद रखी हैं? वह भी तब जब अगले ही वर्ष विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। दिमागी बुखार पर ऐसी असंवेदनशीलता और अकर्मण्यता लेकर वे किस मुंह से जनता में वोट मांगने जायेंगे?
नहीं चेते तो रेत की तरह सरक जाएगी सत्ता
दरअसल, बिहार एक लोकशाही वाला ऐसा राज्य है जहां आम आदमी की बुनियादी परेशानियों से ज्यादा उसकी राजनीतिक और सामाजिक जरूरतों को आसानी से उभारा जा सकता है। बस, राजनीतिज्ञ इसी लीक पर चलने में ज्यादा सहजता महसूस करते हैं। दो—चार महीने बीते और फिर सबकुछ सामान्य। लोग भूल जाते हैं। मीडिया भी अभी चमकी को हेडलाइन बनाता है, लेकिन दो—चार महीने बाद उसके पास कोई अन्य हेडलाइन आ जाती है। नवंबर—दिसंबर में कोई चमकी को याद भी नहीं रखता। साफ है कि सरकार हो या मीडिया सभी 20 वर्षों से यही सब करते रहे हैं। लेकिन इस बार का ‘चमकी बुखार’ हर बार से अलग है। अलग इसलिए क्योंकि अगले वर्ष बिहार में विधानसभा चुनाव है। ऐसे में यदि इस बार का चमकी बिहार में सत्ता शीर्ष पर बैठने वालों के हाथ से रेत की तरह उनकी मौेज को सरका दे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
बच्चों की मौत से ज्यादा मैच और नींद की फिक्र
मालूम हो कि सिर्फ 17 दिन के भीतर सिर्फ मुजफ्फरपुर में यह बीमारी सौ से ज़्यादा बच्चों की जान ले चुकी है। मुख्यमंत्री से पहले राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे भी रविवार को ही पहली बार मुज़फ़्फ़रपुर पहुंचे थे। हालांकि इस दौरे के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में बिहार के स्वास्थ्य मंत्री की दिलचस्पी मृतक बच्चों की संख्या जानने से ज्यादा भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे मैच का स्कोर जानने में थी। इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे भी सोते हुए नज़र आए थे।