पटना : बहरों को सुनाने के लिए जोर से आवाज लगानी पड़ती है। नाटक ‘हे राम’ का टाइटल शब्द बहुत ही महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक है। नफ़रत की राजनीति के खिलाफ यह नाट्क प्रतिरोध की रंगभाषा गढ़ती है। भारतीय संविधान की भावना में मौजूद असहमति के अधिकार को यह नाट्क रोचक ढ़ंग से प्रस्तुत किया गया। यह नाटक एक साथ आजाद भारत में मौजूद कई महत्वपूर्ण सवालों को खोलता है।
यह नाट्क बेहतर समाज बनाने के लिए, बेहतर भारत बनाने के लिए जनता के बीच जाने का संदेश देता है। ये बातें व्यास जी ने कहां मौका था। गाँधी संग्रहालय, पटना में हसन इमाम रचित नाटक हे राम, का लोकार्पण और नाटक के संदर्भ में आज का भारत : बापू और भगत सिंह विषय पर सेमिनार आयोजन किया गया। प्रेरणा [जसामो ] के कलाकारों द्वारा हे राम, के एक दृश्य के प्रस्तुति से आयोजन की शरुआत हुई।
इस अवसर पर बोलते हुए। रंग निर्देशक परवेज अख्तर ने कहां कि हम गाँधी और भगत सिंह को भावना के रूप में जानते है। वे क्या चाहते थे उनके विचार क्या थे। ये हम नहीं जानते है। सी आई टी यू के नेता अरुण कुमार ने कहां कि यह नाटक गाँधी और भगत सिंह के साम्राज्यवाद को विरोधी चेतना और संघर्ष को खोलते हुए। नाटक गाँधी और भगत सिंह के विचारों के मिलान बिंदु का पड़ताल करता है। इस मौके पर संजय कुमार, परवेज अख्तर, अरुण कुमार मिश्र, हसन इमाम, मोहमद ग़ालिब खान, ने भी अपनी विचार रखा। इसकी अध्यक्षता संजय कुमार सिंह ने किया और मंच संचालन अमरेंद्र कुमार ने किया।
वंदना कुमारी