प्राय: जो विद्यार्थी अकेला रहते हैं उनके साथ एक विचित्र आदत जुड़ी होती है। उन्हें आप रहने के लिए कितनी भी साफ-सुथरी जगह उपलब्ध करा दें लेकिन वे उसे बेतरतीब व गंदा करके ही दम लेंगे। हाल फिलहाल में आई बंदिश बैंडिट्स वेबसीरीज के निर्माताओं पर यही बात लागू होती है। भारतीय शास्त्रीय संगीत जैसे प्रांजल विषय को केंद्र में रखकर जब वेब सीरीज बना रहे थे, तो बेवजह उसमें गालियां ठूंसने का कोई अर्थ नहीं रह जाता। ऐसा कर उन्होंने इस वेबसीरीज के क्षितिज को सिकोड़ दिया। केवल इससे काम नहीं चलेगा कि संगीत मार्तंड पंडित जसराज ने इसकी प्रशंसा की।
इंटरनेट जनित और 4G जैसे हाई स्पीड सेवा द्वारा उर्जित ओटीटी मंच पर परोसे जा रहे कंटेंट अपने कामुक और हिंसात्मक सामग्रियों के लिए बदनाम रहे हैं। ऐसे में बंदिश बैंडिट्स के निर्माताओं के पास एक अवसर था कि शास्त्रीय संगीत की चाशनी में एक सुलझी हुई कथा भारतीय मनोरंजन जगत के पारंपरिक दर्शकों के लिए उपलब्ध कराएं। इसमें पारिवारिक दर्शक का वह बड़ा वर्ग शामिल है, जो अब तक ओटीटी से दूर है।
बंदिश बैंडिट्स की कथा जोधपुर के दिग्गज संगीतकार पंडित राधे मोहन राठौर (नसीरुद्दीन शाह) के संगीत साधना से शुरू होती है और उनके पोते राधे (रितिक भौमिक) और तमन्ना शर्मा (श्रेया चौधरी) की प्रेम कथा के रूप में विद्यमान होती है। पंडित जी का संगीत के प्रति समर्पण, अनुशासन, निष्ठा को दिखाकर निर्देशक ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के गांभीर्य को प्रस्तुत करने की कोशिश की है। लेकिन, संगीत के प्रति इतनी निष्ठा रखने वाले पंडित जी का स्वार्थी पक्ष भी सामने आता है जब वे एक प्रतिभावान युवती मोहिनी (शीबा छिब्बर) के हाथों संगीत सम्राट की प्रतियोगिता में हार जाते हैं और फिर येनकेन प्रकारेण उसे अपने घर की बहू बनाकर उसका संगीत सदा के लिए छुड़वा देते हैं। खुद दो-दो प्रेम विवाह उन्होंने किया, लेकिन बेटे के प्रेम करने पर उसका भी संगीत छुड़वा देते हैं। पंडित जी के पात्र की जटिल रचना वर्तमान में सामाजिक विडंबना का द्योतक मात्र है।
अधिकतर वेबसीरीजों की तरह बंदिश बैंडिट्स भी शुरुआत के ढाई एपिसोड तक गतिशील रहती है और उसके बाद इसका सांस फूलने लगता है। पंडित दिग्विजय राठौर (अतुल कुलकर्णी) के प्रवेश के बाद कथानक में पुनः एक नई ऊर्जा का संचार होता है। बाकी राधे और तमन्ना की प्रेम कहानी आगे बढ़ती है जहां रूठने मनाने के अलावा और कुछ नहीं है।
दर्जनों कलाकारों की भीड़ में नसीरुद्दीन शाह और अतुल कुलकर्णी ही प्रभावित कर पाते हैं। इनसे अलग पंडित जी की बहू के रूप में शीबा छिब्बर ने अब तक के अपने अभिनय यात्रा का सर्वश्रेष्ठ दिया है। उनका शांत, ठोस लेकिन मौलिक अभिनय देखते हुए आपको शबाना आज़मी, स्मिता पाटिल या वहीदा रहमान की याद आ सकती है। ऋतिक भौमिक और श्रेया चौधरी औसत हैं, कुणाल रॉय कपूर औसत से नीचे हैं। कहीं-कहीं उनकी ओवरएक्टिंग तो मन को चुभने लगती है।
अन्य वेबसीरीजों की भांति बंदिश बैंडिट्स के कथानक को सीजन-वन में जिस मोड़ पर समाप्त किया गया है, उससे इसके सीजन-2 का आना तय है। कई कमियों के बावजूद बंदिश बैंडिट्स को शास्त्रीय संगीत को प्रमुखता से नई पीढ़ी के बीच लाने के लिए याद रखा जाएगा।