सारण : स्वतंत्रता सेनानी व कवयित्री स्वर्णलता देवी की 46वीं पुण्यतिथि मंगलवार को जगदंब कॉलेज, छपरा के पूर्व प्राचार्य डॉ. के.के. द्विवेदी की अध्यक्षता में मनायी गई। नया क्षितिज की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में आए अतिथियों का स्वागत कश्मीरा सिंह ने किया।
स्वर्णलता देवी के चित्र पर माल्यार्पण करने के बाद उनके विलक्षण व्यक्ति एवं कतृत्व पर प्रकाश डालते हुए मुख्य अतिथि प्रो. आरके गोकुल ने कहा कि उनका जन्म २० जनवरी १९१० को आधुनिक बांग्लादेश के खुलना में हुआ था। उनके पिता ललित मोहन घोषाल प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे और राष्ट्र गुरू सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के परम मित्र थे। देश की परतंत्रता और परिवार के क्रांतिकारी विचारों का उनके कोमल मन पर अमिट प्रभाव पड़ा और उनका बालमन विद्रोह कर उठा। १९२० में जब गाँधीजी बंगाल आए, तो उनके स्वागत के लिए वे कुमारतुली में एक विशाल जनसभा में उनका स्वागत करते हुए उन्हें दधीचि की संज्ञा दी। उनकी गतिविधियों को उस समय की पत्र पत्रिकाएं प्रमुखता से छापती थीं। यह समाचार अमृतबाजार पत्रिका में १५ सितंबर १९२० को छपा था।
अपने राजनीतिक दौरे में वे उस समय के सभी दिग्गज नेताओं जिनमें मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, दीनबंधु एन्ड्र्ज, सुभाषचन्द्र बोस, डॉ भगवान दास, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, डॉ सम्पूर्णानन्द, शिवप्रसाद गुप्त, वीवी गिरी, श्रीपाद अमृत डांगे आदि से मिलीं। वे विवेकानंद को अपना आध्यात्मिक गुरु मानती थीं। अपने पिता के साथ मिदनापुर जिले का दौरा कर सत्याग्रह का प्रचार करती थीं। हिन्दी सीखने वे संयुक्त प्रांत अवध गई थीं।
उनकी वाणी में इतना ओज था कि तिलक फंड के लिए चंदा इकट्ठा करने में महिलाओं ने अपने आभूषण उतार कर दें दिए
वे महिलाओं की शिक्षा की प्रबल समर्थक थीं और पर्दा प्रथा की घोर विरोधी । विधवाओं की समस्याएं उन्हें बहुत मर्माहत करती थीं। १९२६ ई. में उन्होंने आसाम के कामाख्या में बालिका विद्यापीठ की स्थापना का प्रस्ताव रखा ।
इनकी सहानुभूति मजदूरों के साथ भी थी। वे उनके हितों के लिए आवाज उठाती रहती थीं।
१९३० में उनकी शादी बनारस के उग्र क्रांतिकारी अमरनाथ चटर्जी के साथ हो गई। १९३० के असहयोग आंदोलन में सम्पूर्णानन्द जी की गिरफ्तारी के बाद उन्हें बनारस का अधिनायक मनोनीत किया गया । अन्य सभी नेताओं के साथ उनपर भी मुकदमा दर्ज किया गया और तीन माह की जेल और १००/ रूपया जुर्माना किया गया ।
१९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन के समय गिरफ्तारी से बचने के लिए छपरा में आकर छुप गईं और उस समय से यही उनका कर्मक्षेत्र हो गया। इस समय तक इनको दो पुत्र और एक पुत्री हो चुकी थी।
१९४४ में सुभाष चन्द्र बोस की जयंती के उपलक्ष्य में बहुत शानदार भाषण दिया तथा छपरा आने पर आजाद हिंद फौज के कैप्टन सहगल, ढिल्लन, शाहनवाज का स्वागत नगरपालिका मैदान में किया।
इन्होंने काशी में बालिका विद्यापीठ की स्थापना भी की।
स्वतंत्रता मिलने के बाद इन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाने की बात चली तो इन्होंने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया।
अत्यंत गरीबी में जीवन यापन करने के बाद भी इन्होंने अपनी अंतरात्मा से कोई समझौता नहीं किया।
वे एक महान कवयित्री भी थीं । इनका एक काव्य संग्रह आह्वान के नाम से हेराल्ड प्रिंटिंग प्रेस बहुत बाजार कलकत्ता से हुआ था।
स्वर्णलता देवी की विरासत के रूप में अमियनाथ चटर्जी अभी हमारे बीच हैं। अमिय दा सारण की शान हैं। आजीवन अविवाहित रहने वाले अमियदा उनकी मृत्यु २७ अगस्त १९७३ के बाद से आजतक छपरा में मनाते आ रहे हैं।