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सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए मनाई गई डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 119 वीं जयंती

नालंदा : बिहारशरीफ, बबुरबन्ना मोहल्ले में साहित्यिक मंडली ‘शंखनाद’ के तत्वावधान में सविता बिहारी निवास स्थित सभागार में भारत के महान क्रांतिकारी डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की 119 वीं जयंती मंगल दीप प्रज्वलित कर मनाई गई।

समारोह में ये सभी कार्यक्रम कोरोनावायरस संक्रमण के चलते सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए किया गया। समारोह की अध्यक्षता साहित्यिक मंडली “शंखनाद” के अध्यक्ष साहित्यकार डॉक्टर लक्ष्मीकांत सिंह ने तथा संचालन ‘शंखनाद’ के सचिव शिक्षाविद् राकेश बिहारी शर्मा ने किया।

मौके पर अध्यक्षीय सम्बोधन में अध्यक्ष डॉक्टर लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा- क्रांतिकारी स्व. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने देश की एकता और अखंडता के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था। उन्होंने देश मे राष्ट्रीयता और राष्ट्र प्रेम की भावना को जागृत करने का काम किया। उनके बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। क्रांतिकारी डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने 21नवंबर 1951 को भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी। कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताने तथा “एक देश में दो निशान व दो प्रधान नहीं सहेगा हिन्दुस्तान” का नारा बुलंद करने के कारण 19 जून 1953 को काश्मीर मे ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। महज चार दिन बाद 23 जून को जेल में ही उनकी मौत रहस्यमय ढंग से हो गयी। श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी आज भी भारत के युवाओं के लिए प्रेरणा पुरूष हैं।

मौके पर कार्यक्रम का संचालन करते हुए “शंखनाद” के सचिव शिक्षाविद् राकेश बिहारी शर्मा ने क्रांतिकारी श्यामाप्रसाद मुखर्जी के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए कहा- भारतीय संस्कृति के उज्जवल नक्षत्र डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी जीवनपर्यन्त अपनी मातृभूमि की सेवा में समर्पित रहे। वह जीवन का एक−एक पल लोक कल्याण के लिए जीते रहे। डॉ. मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धान्तवादी नेता थे।

डॉ. मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को कलकत्ता में निर्भीक विधिवेत्ता, कुशल न्यायाधीश पिता सर आशुतोष मुखर्जी और माता प्रखर लेखिका जोगमाया देवी के घर हुआ था। ये बचपन से ही कुशाग्रबुध्दि के विद्यार्थी थे। डॉ० श्यामाप्रसाद मुखर्जी जी ने मात्र 33 वर्ष की आयु में 1934 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बनकर इतिहास के पन्नों में कृतिमान स्थापित किया। देश की स्वाधीनता प्राप्ति के बाद महात्मा गांधी और सरदार वल्लभभाई पटेल के आग्रह पर डॉ. मुखर्जी पं. नेहरू के नेतृत्व वाली अंतरिम केन्द्र सरकार में भारत के प्रथम उद्योग और आपूर्ति मंत्री बने थे। 6 अप्रैल, 1950 को पं. नेहरू द्वारा पाकिस्तानी प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को दिल्ली समझौते के आमंत्रण का विरोध करते हुए डॉ. मुखर्जी ने केन्द्रीय मंत्रिमंडल व कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया।

डॉ. मुखर्जी ने कश्मीर में 370 धारा का डटकर विरोध करते रहे थे। उन्होंने नारा दिया था-“एक देश में दो विधान, दो प्रधान, और दो निशान नहीं चलेंगे।” जम्मू-कश्मीर में अपने ही देश के नागरिकों को पहचान पत्र की बाध्यता के विधान को डॉ. मुखर्जी ने कश्मीरी नेता शेख अब्दुल्ला को देश तोड़ने वाला षड्यंत्रकारी नेता बताया। डॉ॰ मुखर्जी अपने जीवन काल में जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय जम्मू-कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था। वहां का मुख्यमन्त्री (वजीरे-आज़म) अर्थात् प्रधानमंत्री कहलाता था। संसद में अपने भाषण में डॉ॰ मुखर्जी ने धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की थी। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूंगा। वैयक्तिक स्वतंत्रता के पैरोकार डॉ. मुखर्जी ने 5 मई,1953 को जम्मू-कश्मीर दिवस मनाने को देशव्यापी अभियान की हुंकार भरी और 11 मई, 1953 को कश्मीर सीमा पर उन्हें बलात गिरफ्तार कर लिया गया।

समाजसेवी धीरज कुमार ने अपने सम्बोधन में कहा- हमारी भारतीय संस्कृति के प्रकाशमान नक्षत्र भारत माता के दुलारे राजनीति व शिक्षा के क्षेत्र में काफी सुविख्यात थे। 23 जून, 1953 को शेख अब्दुल्ला की पुलिस की कैद में बंद भारत मां के सपूत डॉ. मुखर्जी रहस्यमय स्थिति में मृत पाए गए जो आज भी एक पहेली है। डॉ. मुखर्जी देह से तो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका बलिदान हमें मातृ भूमि के लिए जीने की प्रेरणा सदैव देता रहेगा। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे जननायक, महान शिक्षाविद्, राष्ट्रचिंतक और प्रभावी राजनेता का पुण्यस्मरण भारतवासियों के लिए हमेशा गौरव का विषय बना रहेगा।
इस दौरान व्याख्याता शारदानंद शर्मा, समाजसेविका सविता बिहारी, स्वाति कुमारी, समाजसेवी विजय कुमार, शिक्षक बद्रीनारायण राय, शिक्षक कन्हैया कुमार पाण्डेय सहित कई लोग मौजूद रहे।

कुमुद रंजन सिंह की रिपोर्ट