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शारीरिक व मानसिक विकास में लौह तत्व जरुरी

सारण : छपरा बाल्यावस्था जीवन के स्वर्णिम पल होते हैं। सफ़ल एवं स्वस्थ जीवन की यह आधारशिला भी तैयार करती है। चेहरे पर मुस्कान, शरीर में स्फूर्ति एवं बिना थके भाग-दौड़ करना बाल्यावस्था की पहचान होती है। लेकिन इसके विपरीत यदि बच्चे का शारीरिक विकास उम्र के मुताबिक नहीं हुआ हो। बच्चे के चेहरे से मुस्कान गायब हो रही हो। वह अन्य बच्चों की तरह खेल-कूद में शरीक नहीं हो रहा हो। बच्चा हमेशा सुस्त एवं बीमार रहता हो। पढाई में अपना ध्यान नहीं लगा पा रहा हो। बच्चे की स्मरण शक्ति बेहद कम हो रही हो। स्कूल में वह अन्य बच्चों की तुलना में पिछड़ रहा हो।

ऐसी स्थिति में आपको सतर्क होने की जरूरत है। ये लक्षण बच्चे में खून की कमी के हैं। लेकिन आपको घबराने की जरुरत नहीं है। आपके नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र या समुदाय में इसका उपचार उपलब्ध है। सरकार ने एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम के तहत 6 माह से 59 माह तक के बच्चों को एनीमिया (खून की कमी) से बचाने की पहल की है। इसके लिए इस उम्र के बच्चों को सप्ताह में दो बार आयरन सिरप की ख़ुराक निःशुल्क दी जा रही है।

शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए लौह-तत्व जरुरी :

एनीमिया मुक्त भारत के राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ. बीके मिश्रा ने बताया बच्चे में 6 माह तक लौह-तत्त्व (हीमोग्लोबिन) का प्राकृतिक रूप से संग्रहण रहता है। लेकिन इसके बाद बच्चे को लौह-तत्त्व की जरूरत होती है। शरीर में मौजूद हीमोग्लोबिन ही बाहर से ऑक्सीजन अवशोषित कर शरीर के हरेक हिस्से में ऑक्सीजन को भेजने में सहयोग करता है। शरीर में ऑक्सीजन की प्रचुर मात्रा से ही बच्चे का सही शारीरिक एवं मानसिक विकास संभव हो पाता है। हीमोग्लोबिन के आभाव में बच्चा शारीरिक तौर पर कमजोर तो होता है। साथ ही इससे बच्चे का मानसिक एवं बौद्धिक विकास भी अवरुद्ध हो जाता है। इसे ध्यान में रखते हुए एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम के तहत 6 माह से 59 माह तक के बच्चों को सप्ताह में दो बार आईएफए(आयरन फोलिक एसिड) सिरप देने का प्रावधान किया गया है।

प्रति माह 8 से 10 ख़ुराक :

डॉ. मिश्रा ने बताया एक ख़ुराक में एक मिलीलीटर यानी 8-10 ख़ुराक प्रति माह बच्चे को देना होता है। सभी आशा को स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से सिरप की 50 मिलीलीटर की बोतलें आवश्यक मात्रा में दी जाती है। प्रथम दो सप्ताह में आशा स्वयं बच्चों को दवा पिलाकर माँ को सिखाने का प्रयास करती हैं। प्रथम दो सप्ताह के बाद का ख़ुराक माँ द्वारा स्वयं पिलाने तथा अनुपूरण कार्ड में निशान लगाने के विषय में इस कार्यक्रम के दिशा-निर्देश में बल दिया गया है।

ऑटो डिस्पेंसर से सिरप की मात्रा में सुविधा :

इस आयरन सिरप में एक ऑटो डिस्पेंसर लगा हुआ है। जिसे दबाने के बाद एक बार में निश्चित मात्रा में (1 मिलीलीटर) ही सिरप बाहर आता है। इससे क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं को बच्चों को दवा पिलाने में सुविधा होती है।

दवा पिलाने के दौरान इन बातों का रखें ख्याल :

  • दवा पिलाने वक्त बोतल को अच्छी तरह से हिला लें
  • दूध के साथ बच्चे को सिरप नहीं दें
  • दवा पिलाने के समय बोतल पर दर्ज एक्सपायरी जरुर देख लें
  • खाली पेट बच्चों को सिरप नहीं दें
  • रक्त संबंधी गंभीर समस्या होने पर चिकित्सक की राय के बाद ही सिरप दें

इसलिए जरुरी है बच्चों में एनीमिया की रोकथाम :

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015- 16 के अनुसार सारण में 6 से 59 माह के 61.9 प्रतिशत बच्चे एनीमिक है। देश के साथ बिहार में भी एनीमिक बच्चों में कमी आयी है। लेकिन अभी भी स्थिति चिंताजनक है। वर्ष 2005-06 में बिहार में 6 माह से 59 माह तक के 78 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी थी, जो वर्ष 2015-16 में घटकर 63.5 प्रतिशत हो गई। जबकि वर्ष 2005-06 में देश में 6 माह से 59 माह तक के 69.4 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी थी, जो वर्ष 2015-16 में घटकर 58.6 प्रतिशत हो गयी। लेकिन अभी भी राज्य में 60 प्रतिशत से अधिक बच्चे खून की कमी से उत्पन्न होने वाली समस्याओं से जूझ रहे हैं। इस लिहाज से इस उम्र के बच्चों को यदि नियमित रूप से आयरन सिरप देने की जरूरत है।

क्या कहते है सिविल सर्जन :

एनीमिया से मुक्ति के लिए व्यापक स्तर पर कार्यक्रम चलाए जा रहे है। आंगनबाड़ी केंद्रों पर भी बच्चों को आयरन, फोलिक एसिड की गोली व सिरप उपलब्ध कराए गए है। जहाँ पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा गोली व सिरप का सेवन कराया जाता है, डॉ. माधवेश्वर झा, सिविल सर्जन सारण।