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रक्तदाता ग्रूप एवं ब्लडप्लस ने किया विशाल रक्तदान शिविर का आयोजन

मधुबनी : विश्व रक्तदान दिवस पर रक्तदाता ग्रूप एवं ब्लडप्लस के द्वारा आज रविवार को मधुबनी शहर में विशाल रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया। दोनों संस्था रक्तदान की शिविर लगाकर लोगो को फायदे पहुचाने वाली संस्था मधुबनी की नाक है, जो भारत के किसी भी शहर में ब्लड डोनर कार्ड के जरिये बेहद जरूरतमंदो के बीच रक्त उपलब्ध करवाती है।

रक्तदाता ग्रूप के द्वारा जहाँ होटल वाटिका में तो वहीं ब्लडप्लस के द्वारा मिथिला वाटिका में विशाल रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया। जहाँ पुरुष एवं महिलाओं के द्वारा रिकार्ड रक्तदान किया गया, जिसमे कई लोगो ने पहलीबार रक्तदान किया। इस मौके पर ही रक्तदान करने के बाद संस्था के द्वारा ब्लड डोनर को प्रमाणपत्र भी दिया गया। चुकी रक्तदान शिविर का आयोजन कोरोना काल में किया गया है, इसलिये संस्था के द्वारा सुरक्षा के सभी उपाय किये गये थे।

वहीं राजद विधायक सह प्रवक्ता समीर कुमार महासेठ ने लगे हुये दोनों रक्तदान शिविर में पहुँचकर रक्तदान करने वाले लोगो का हौसला आफजाई किया।

वहीं, इस मौके पर मधुबनी विधान पार्षद सुमन कुमार महासेठ ने बताया कि रक्त की कमी से भारत में हर साल 30 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है, जबकि इस कमी को मात्र एक फीसद आबादी रक्तदान कर पूरा कर सकती है। हैरानी की बात है, कि विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाला देश होने के बावजूद भारत रक्तदान में काफी पीछे है। यहां तक कि हमारे पड़ोसी देश भी इस महादान में हमसे बहुत आगे हैं। रक्त की कमी को खत्म करने के लिए दुनिया भर में 14 जून को विश्व रक्तदान दिवस मनाया जाता है।

इस मौके पर सैकड़ों की संख्या में रक्तदान हुआ, जिसमें जयनगर से चल कर आये आम आदमी पार्टी के भावी प्रत्याशी अमित कुमार महतो एवं साहित्यकार रंजन अभिषेक ने अपना क्रमशः पांचवां ओर पहला रक्तदान किया।

आइये जानते हैं इस मौके पर रक्तदान से जुड़ी कुछ अहम जानकारियां, जो हमें इसके बारे में सोचने पर मजबूर करती है। पूरी दुनिया में हर साल करीब 10.50 करोड़ लोग रक्तदान करते हैं। इनमें से आधे रक्तदाता विकसित देशों से होते हैं। भारत समेत अन्य विकासशील देशों में रक्तदान के प्रति लोगों में जागरूकता कम है। भारत में हर साल बीमारियों या गंभीर दुर्घटनाओं में घायल लोगों को करीब एक करोड़ बीस लाख यूनिट खून की जरूरत पड़ती है। इसमें से मात्र 90 लाख यूनिट रक्त ही उपलब्ध हो पाता है और करीब 30 लाख लोगों को समय पर खून नहीं मिल पाता है।

आंकडे बताते हैं कि रक्तदान के प्रति छोटी सी जागरूकता इस समस्या को पूरी तरह से खत्म कर सकती है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि किसी भी देश की मात्र एक फीसदीं आबादी अगर रक्तदान करे तो उस देश को कभी रक्त की कमी का सामना नहीं करना पड़ेगा।

विश्व रक्तदान दिवस, शरीर विज्ञान में नोबल पुरस्कार प्राप्त कर चुके वैज्ञानिक कार्ल लैंडस्टाईन की याद में पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य रक्तदान को प्रोत्साहित करना और उससे जुड़ी भ्रांतियों को दूर करना है। इसी दिन 14 जून 1868 को वैज्ञानिक कार्ल लैंडस्टाईन का जन्म हुआ था। उन्होंने इंसानी रक्त में एग्ल्युटिनिन की मौजूदगी के आधार पर ब्लड ग्रुप ए, बी और ओ समूह की पहचान की थी।

भारत में जहां रक्तदान से जरूरत का मात्र 75 फीसद खून ही एकत्र होता है, वहीं पड़ोसी देश इस मामले में हमसे काफी आगे हैं। नेपाल में जरूरत का 90 फीसद रक्तदान होता है। श्रीलंगा में जरूरत का 60 फीसद, थाईलैंड में 95 फीसद, इंडोनेशिया में 77 फीसद और म्यामांर में कुल आवश्यकता का 60 फीसदीं रक्तदान होता है। भारत रक्तदान में भले ही बहुत पीछे है, लेकिन यहां भी लोगों में तेजी से जागरूकता बढ़ रही है।

पंजाब और मध्य प्रदेश रक्तदान के मामले में देश में सबसे आगे हैं। तंजानिया में 2005 में स्वैच्छिक रक्तदान मात्र 20 फीसद था जो 2007 में बढ़कर 80 फीसद पहुंच गया था। ब्राजील में रक्तदान या अन्य मानव अंग अथवा ऊतकों के लिए रुपये लेना या कोई मुआवजा लेना गैर-कानूनी है। इटली में रक्तदाताओं को विश्व रक्तदान दिवस पर सवैतनिक अवकाश मिलता है। यहां नियोक्ता कई बार रक्तदाता को प्रोत्साहन के लिए अतिरिक्त लाभ भी देते हैं।

रक्तदान और बढ़ सकता है लेकिन महिलाएं चाहकर भी रक्तदान नहीं कर पा रही हैं। वजह, वे मेडिकली फिट नहीं मिलती हैं। चिकित्सकों के अनुसार स्वैच्छिक रक्तदान में महिलाओं का योगदान करीब 10 फीसद ही रहता है। इसकी सबसे बड़ी वजह उनका हीमोग्लोबिन 12.5 ग्राम से कम होता है, जो रक्तदान के लिए जरूरी है। हीमोग्लोबिन ठीक भी रहा तो वजन बहुत कम या ज्यादा रहता है।

तमाम चिकित्सकीय रिसर्च में साबित हो चुका है कि रक्तदान से शरीर में किसी तरह की कमजोरी नहीं होती है। गर्मियों में भी रक्तदान से किसी तरह की कमजोरी नहीं होती है। यह अलग बात है कि लोग धूप और गर्मी को देखकर रक्तदान करने से बचते हैं। जबकि गर्मियों में खून की डिमांड काफी बढ़ जाती है। भारत में हर साल लगभग 10 हजार बच्चे थैलिसिमिया जैसी बीमारी के साथ पैदा होते हैं। इनमें से कई बच्चों की वक्त पर खून न मिलने की वजह से मौत हो जाती है।

भारत में एक लाख से ज्यादा थैलिसिमिया के मरीज हैं, जिन्हें बार-बार खून बदलने की जरूरत पड़ती है। भारत में प्रति एक हजार लोगों में से मात्र आठ लोग ही स्वैच्छिक रक्तदान करते हैं। दुनिया के 60 देशों में 100 फीसद स्वैच्छिक रक्तदान होता है। यहां लोग खून देने के बदले पैसे नहीं लेते। दुनिया के 73 देशों में मरीजों को खून के लिए करीबीयों या खून बेचने वालों पर निर्भर रहना पड़ता है। भारत इनमें से एक है। रक्त की जरूरत पड़ने पर इसकी कमी किसी दवा या थैरेपी से दूर नहीं की जा सकती है। मतलब रक्त का कोई विकल्प नहीं है।

दुनिया भर में प्रति वर्ष तकरीबन 10 करोड़ लोग रक्तदान करते हैं। भारत में प्रतिवर्ष एक करोड़ 20 लाख लोगों को बीमारी या दुर्घटना की वजह से रक्त की जरूरत पड़ती है। भारत में प्रतिवर्ष मात्र 90 लाख लोगों को ही रक्त मिल पाता है, जबकि 30 लाख लोगों की रक्त न मिलने से मौत हो जाती है।  वर्ष 1997 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 100 फीसद स्वैच्छिक रक्तदान की शुरूआत की थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 124 प्रमुख देशों को अभियान में शामिल कर स्वैच्छिक रक्तदान की अपील की थी।

सुमित राउत