किशोर कुमार
(वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक)
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। देश ट्रिपल वायरस के हमलों से को लेकर सतर्क है। ऐसे में इन विषाणुओं (वायरस) का योग द्वारा शमन पर बात होनी चाहिए:
दो वायरस तो ऐसे हैं, जिनके नाम से हम सब परिचित हो चुके हैं। वे हैं- एच3एन2 इंफ्लुएंजा व कोरोनावायरस। तीसरा वायरस है- एडिनोवायरस। ज्यादातर बच्चे इस वायरस के शिकार हो रहे हैं। सभी वायरस के लक्षण लगभग एक जैसे हैं, जिनसे फेफड़ों पर प्रतिकूल असर हो रहा है। हमने दो साल पहले कारोनाकाल के दौरान विभिन्न स्तरों पर किए गए प्रयोगों और अनुभवों के आधार पर देखा कि श्वसन-तंत्र को वायरस के हमलों से बचाने में योग खासतौर से प्राणायाम और नेति-कुंजल कितने कारगर साबित हुए थे। ये योग विधियां ही मौजूदा संकट से भी बचाएंगी। इससलिए आयुष मंत्रालय का फोकस भी इन योग विधियों पर ज्यादा रहना है।
भारत में कोरोना महामारी फैलने के बाद केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रावैधिकी मंत्रालय को विभिन्न संस्थानों के लगभग पांच सौ ऐसे शोध-पत्र मिले थे, जिनमें दावा किया गया था कि यौगिक उपायों की बदौलत कोरोना संक्रमण से बचाव संभव है। उन शोध-पत्रों में एक नेति-कुंजल पर आधारित था। खास बात यह कि वह रिपोर्ट योग विज्ञानियों ने नहीं, बल्कि चिकित्सा विज्ञानियों ने शोध के बाद तैयार की थी। उन्होंने माना कि कोरोना संक्रमण या इंफ्लुएंजा से बचाव में नेति और कुंजल बड़े काम के हैं। राजस्थान के चार चिकित्सा संस्थानों एसएमएस मेडिकल कालेज के टीबी एवं चेस्ट रोग विभाग, इंटरनेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ हेल्थ मैनेजमेंट रिसर्च (आईआईएचएमआर) के महामारी विज्ञान विभाग, आस्थमा भवन के शोध प्रभाग और राजस्थान हाॅस्पीटल के छह चिकित्सकों ने कोई 28 दिनों तक अध्ययन किया था। उस दौरान नेति और कुंजल क्रियाओं के बेहतर परिणाम मिले थे।
इसी तरह फेफड़ों सहित तमाम श्वसन-तंत्र को संक्रमण के कुप्रभावों से बचाने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए प्राणायाम की सिफारिश पूरी दुनिया में की जा रही है। वैज्ञानिक तथ्यों के आलोक में यह जानना जरूरी है कि प्राणायाम का इतना महत्व क्यों है? योग रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक, सामान्य श्वास में ली गई पांच सौ मिली लीटर हवा में ऑक्सीजन का अनुपात 20.95 फीसदी, नाइट्रोजन का 79.01 फीसदी और कार्बन डायऑक्साइड का 4 फीसदी रहता है। पांच सौ मिली लीटर में डेड़ सौ मिली लीटर हवा श्वास नलिकाओं में रहती है। बाकी हवा वायु कोशों में पहुंचती है। उससे ऑक्सीजन रक्त में जाता है और रक्त से कार्बन डायऑक्साइड हवा में आता है। पर व्यवहार रूप श्वास के जरिए इतनी हवा अंदर जाती नहीं। महाराष्ट्र के लोनावाला स्थित कैवल्यधाम योग संस्थान में 204 स्वस्थ्य लोगों की श्वसन क्रिया का अध्ययन किया गया था। पाया गया कि उनमें से 174 लोगों की नासिकाओं में श्वास का असामान्य प्रवाह था। स्पष्ट है कि यौगिक श्वसन के अभाव में फेफड़े के काम करने की क्षमता बेहद कम होती है। यदि किसी बीमारी की वजह से फेफड़ा क्षतिग्रस्त हो गया तो मुश्किलें बढ़ जाती हैं। समस्याएं यहीं से शुरू हो जाती हैं।
योगियों का कहना है कि वायरसों को असरहीन बनाने में प्राणायाम इसलिए लाभकारी है कि वह रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रखता है, जिससे सर्दी, जुकाम और फेफड़े पर वायरस का असर नहीं होने देता है। शरीर में यदि वायरस के लक्षण प्रकट हुए भी तो उनके बेअसर होते देर नही लगती। इस संदर्भ में कुछ वैज्ञानिक अध्ययन रिपोर्ट गौर करने लायक हैं। नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन के एक अध्ययन में बताया गया कि प्राणायाम के जरिए इम्यून सिस्टम को मजबूत किया जा सकता है। हॉवर्ड विश्वविद्यालय में कार्डियो फैकल्टी में शोध निर्देशक डॉ. हर्बर्ट वेनसन के मुताबिक नियमपूर्वक दस मिनट प्रतिदिन प्रणायाम किया जाए, तो शरीर में ऐसे बदलाव आने लगते हैं कि वह रोग और तनाव के आक्रमणों का मुकाबला करने लगता है।
जापान की ओसाका प्रेफेक्चर यूनिवर्सिटी के नैदानिक पुनर्वास विभाग ने मध्य आयुवर्ग के लोगों की श्वास-प्रश्वास संबंधी बीमारी पर प्राणायाम के प्रभावों पर अध्ययन किया है। पचास से पचपन साल उम्र वाले 28 ऐसे लोगों पर प्राणायाम का प्रभाव देखा गया जो शारीरिक रूप से निष्क्रिय जीवन व्यतीत कर रहे थे। इन्हें दो ग्रुपों में बांटकर एक ग्रुप को आठ सप्ताह तक प्राणायाम की विभिन्न विधियों खासतौर से अनुलोम विलोम, कपालभाति और भस्त्रिका का अभ्यास कराया गया। नतीजा हुआ कि योग ग्रुप के लोगों की श्वसन क्रिया दूसरे ग्रुप के लोगों की तुलना में काफी सुधर गई। साथ ही अन्य शारीरिक व्याधियों से भी मुक्ति मिल गई। शरीर के लचीलेपन में सुधार हुआ।
बीते चार दशकों में प्राणायाम के प्रभावों पर दुनिया भर में काफी अध्ययन किए गए। टेक्सास यूनिवर्सिटी न्यूरो वैज्ञानिक डॉ. स्टीफन एलिएट ने अपने शोध से निष्कर्ष निकाला कि श्वास की गति का हृदय गति से सीधा संबंध है। उन्होंने इलेक्ट्रोमायोग्राफी की सहायता से प्रमाणित किया कि यौगिक श्वसन से हृदय को स्वस्थ रखा जा सकता है। योग रिसर्च फाउंडेशन के अध्ययनों के मुताबिक नाड़ी शोधन प्राणायाम से तनाव कम होता है। रक्तचाप सामान्य रहता है और फेफड़ों की शकित व क्षमता बढ़ती है। अमेरिका के बैचलर यूनिवर्सिटी के अनुसंधान के नतीजे भी कुछ ऐसे ही थे।
वैसे, प्राणायाम की महत्ता तो वैदिक काल से स्वयं सिद्ध है। श्रीमद्भगवतगीता में प्राणायाम का महत्व बतलाया गया है। शिव स्वरोदय ग्रंथ के मुताबिक, देवी भगवान शिव से पूछती हैं कि इस दुनिया में मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र कौन है तो शिव कहते हैं- “प्राण परम मित्र है, प्राण परम सखा है।” हम जानते हैं कि इस प्राण-शक्ति का आधार श्वसन की प्रक्रिया ही है। इसी प्रक्रिया की बदौलत फेफड़ों की आंतरिक संरचना को कार्य करते रहने की शक्ति मिलती है।
श्वेताश्वर उपनिषद् कहा गया है कि जो शरीर योग की प्रक्रियाओं से गुजरता है, वह वृद्धावस्था, रोग और मृत्यु से मुक्त हो जाता है। इस तरह हम देखते हैं कि प्राणायाम स्वास्थ्य जीवन के लिए बहुमूल्य निधि है और यौगिक विधियों द्वारा ऐसी अवस्था पाई जा सकती है। इसलिए योग को अपने जीवन का अनिवार्य अंग और नियमित आदत बनाना समय की मांग है। दिल्ली स्थित आनंदबोध योग संस्थान के निदेशक और बिहार योग विद्यालय के एल्युमिनी शिवचित्तम मणि कहते हैं कि यदि इन योग विधियों का अभ्यास किया जाता रहा तो विकराल दिख रही समस्या कोई समस्या नहीं रह जाएगी।
(साभार: https://www.ushakaal.com)