जयंती विशेष: शिखर सीरत वाले चंद्रशेखर

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चंद्रशेखर जी एक बार पटना आए, 21वीं सदी के आरंभिक वर्षों में। उनके आने की खबर लगी, तो कई लोग मिलने पहुंचे। मिलने वालों में चंद्रशेखर जी के परिचित ज्योतिषी भी थे। ज्योतिषी महोदय जैसे ही कमरे में प्रवेश किए, तो चंद्रशेखर जी उठकर खड़े हो गए और हाथ जोड़कर बोले— ”प्रणाम पंतिडजी, आईं—आईं हम सोचते रहनी हअ कि रउरा से कब भेंट होई?”
आरंभिक वार्ता के बाद चंद्रशेखर जी ने कहा— ”अच्छा पंडितजी, ई बताईं कि फेर से हमरा राजयोग हवे कि ना?”

ज्योतिषाचार्य उनकी दायीं हथेली देखकर बोले— ”सांच पूछी तअ नइखे।”
इतना सुनते ही चंद्रशेखर जी छूटते ही बोले— ”खैर छोड़ीं, सत्ता त आवत—जात रहेले। बस, लोग के सेवा करे खातिर निरोग रहीं, हमरा ला इहे बहुत बा।”

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कुछ देर और बातचीत के बाद जब ज्योतिषाचार्य के विदा लेने का समय हुआ, तो चंद्रशेखर जी ने कहा— ”अच्छा पंडितजी, जाते—जाते एगो आउर बात बता दीहीं हमरा के।”

ज्योतिषाचार्य— ”जी पूछल जाओ हजूर”
चंद्रशेखर जी— ”अब हमरा कौनो चीज पावे के इच्छा नइखे। बस इहे जाने के चाहअ तानी कि आउर कातना दिन जीवन बांचल हवे?”

ज्योतिषाचार्य— ”आइहो सरकार, इ का कहअ तानी? अरे, अभी रउरा बहुत जिए के बा”
चंद्रशेखर जी— ”हंसी जिन करीं पंडितजी, हम सांच सुने के चाहत हईं।

चंद्रशेखर जी के मुंह से यह सुनकर ज्योतिषी गंभीर हो गए। कमरे में सन्नाटा पसर गया। ज्योतिषाचार्य ने चंद्रशेखर जी की ललाट को गौर से देखा, फिर उनकी हस्तरेखाओं को सूक्ष्मतापूर्वक निहारा। क्षणभर मौन रहने के बाद ज्योतिषी बोले— ”सांच कहे के अनुमति चाहअ तानी हजूर।”

चंद्रशेखर जी— ”कहीं, कहीं। एहमें आतना सोंचे के कौन बात हवे।”

चंद्रशेखर जी की हामी पर ज्योतिषी ने भविष्य की एक तारीख बता दी और एकदम से मौन हो गए। मौन होते कैसे नहींं?। किसी की मृत्यु की तारीख बता पाना आसान कार्य है क्या? मौत की तारीख बताकर ज्योतिषी का मन भारी हो गया था। लेकिन, इसके विपरीत चंद्रशेखर जी सहज थे। मृत्यु की भविष्यवाणी सुनकर भी अविचल, अडिग, शांत, स्थिरप्रज्ञ। एकदम शिव की भांति। जैसा चंद्रशेखर नाम, वैसा ही भाव।

ज्योतिषी ने देखा कि शांत चंद्रशेखर जी की आंखें डबडबा गईं हैं। उनको लगा कि मौत की भविष्यवाणी सुनकर कहीं चंद्रशेखर जी भयाक्रांत हैं। लेकिन, ज्योतिषाचार्य गलत थे। चंद्रशेखर जी की आंखें किसी दूसरी चिंता में डबडबा गईं थीं।

अचानक चंद्रशेखर जी ने ज्योतिषाचार्य का बायां हाथ पकड़ा और कहा— ”पंडितजी, मरे से त हमरा कबो डर ना लागल। हमार जीवन रउआ देखते हईं। बाकी एकेगो चिंता हवे। खाली रउआ एगो आउर बात बता दीहीं कि ऊपर जाए के पहिले आपन सारा कर्जा हम चुका सकेम कि ना? काहे कि हमरा मरला के बाद केहु ई ना कहो कि चंद्रशेखर किन्हुके चार आना पैसा लेके चल गइल।”

ज्योतिषाचार्य ने चंद्रशेखर जी को इस संबंध में आश्वस्त किया कि साल भर के भीतर वे सारा कर्ज चुका देंगे। यह सुनकर चंद्रशेखर जी इत्मीनान हुए। इतना कहकर उन्होंने विदा ली।

जरा सोचिए भला। मरने से पहले सिर्फ एक चिंता। वह भी कि किसी का कर्ज लेकर तो नहीं मरुंगा। भारत की राजनीति में कितने नेता ऐसे होंगे? गिनकर देखिए। उनके जीवन के इस प्रसंग को जानकर लगता है कि चंद्रशेखर होना सिर्फ चंद्रशेखर जी के वश की बात थी। अब कोई और चंद्रशेखर नहीं हो पाएगा। भारत माता के इस साहसी, कर्तव्यनिष्ठ, परोपकारी व निष्ठावान सपूत को बारंबार प्रणाम।

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