पटना : भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व गृहमंत्री अमित शाह के बयान के बाद भाजपा के नेताओं केे स्वर बदल गए हैं। जदयू के साथ संबंधों को लेकर बिहार भाजपा नेताओं की तल्खी अब केवल समाप्त ही नहीं हुई, बल्कि उसका स्वागत भी हो रहा है। लेकिन, इसके साथ ही जदयू को उसके गठबगंधन धर्म का अहसास करने वाले संयमित प्रतिक्रिया भी सोशल मीडिया के माध्यम से आ रहे हैं। बिहार भाजपा के फायरब्रांड नेता और एमएलसी ने अपने पार्टी अध्यक्ष के उस बयान का स्वागत करते हुए फेसबुक पर एक लंबा पोस्ट डाला है, जो मीडिया में चर्चा का विषय बन गया है।
वह पोस्ट कुछ यूं है-
1996 से हमेशा समता पार्टी-जदयू को भाजपा ने बिहार में समर्थन दिया है। तब जदयू के नीतीशजी मुख्यमंत्री बने और उनकी ताकत बढ़ी। वर्ष 2013 में जदयू ने हमें छोड़ा था, बीजेपी ने उन्हें नहीं छोड़ा था। फिर जब 2017 में वह महागठबंधन में असहज हुए तो बिहार की जनता के हित में हमने उन्हें पुनः समर्थन दिया।
दोस्ती को इस हद तक बढ़ाया कि उनके मात्र 2 सांसद होने के बावजूद 2019 के चुनाव में उनको बराबर सीटों पर लड़ने का अवसर दिया। मजबूती से साथ में लड़े, 17 में 16 सीटें वह जीते।
यह सब अभी तक एकतरफा रहा है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश के नेता, उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी सबने बार-बार कहा है कि हम नीतीश जी को 2020 अपना मुख्यमंत्री का उम्मीदवार मानते हैं, यह गठबंधन अटूट है। अब तो राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जी ने भी इसपर मुहर लगा दी है। इसमें किसी को कोई दिक्कत भी नहीं है।
लेकिन जो बात इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है, वह है कि भारतीय जनता पार्टी अपने संकल्प पत्र में जिन प्रतिज्ञाओं को एक अरसे से लेकर चल रही है और इसमें कोई संदेह भी नहीं है कि 2019 का जनादेश श्रद्धेय नरेंद्र मोदी और बीजेपी के संकल्पों को लेकर ही आया था और एनडीए अगर 39 सीटें जीती हैं, तो उसमें बीजेपी के संकल्पों का एक बहुत बड़ा योगदान रहा है।
परंतु जदयू ने क्या किया? वह उन संकल्पों के विरोध में खड़ा दिखा। दो जो महत्वपूर्ण मुद्दे थे, तीन तलाक और धारा-370 के हटाये जाने का मुद्दा, उस दोनों में जदयू ने अपनी डफली बजाया। अभी और दो मुद्दे हैं, छत्ब् अधिनियम और सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल। अगर देश के सारे घुसपैठियों को 2024 से पहले देश से बाहर करना है तो इससे संकेत यही मिलते हैं कि दोनों अधिनियम तुरंत लाए जाएंगे, ताकि एनआरसी को ठीक से अखिल भारतीय स्तर पर लागू किया जा सके। इसमें बीजेपी की अपेक्षा रहेगी कि जिस तरह से वह अपने वादे पर अडिग है, तो जदयू भी हमें इन विषयों पर समर्थन दे।
यही होगी कसौटी, यही होगी जदयू की अग्निपरीक्षा, क्योंकि बिल्कुल सही बात है कि दो अलग-अलग दल है तो किसी-किसी मुद्दे पर हमारा मतभेद हो सकता है। जदयू ने दो विषयों पर अपना मतभेद दिखाया। चलिए हमने उसे स्वीकार भी कर लिया। लेकिन उनको हर मुद्दे पर, हमारे हर संकल्प पर मतभेद होगा तब तो जोड़ी बेमेल हो जाएगी। यह तो फिर चल नहीं पायेगा।
ये बड़ा भाई और छोटा भाई की लाइन थोड़े ही है। ये तो बराबरी की बात है। इसमें कहीं बड़ा-भाई-छोटा भाई की बात नहीं है। माननीय प्रधानमंत्री के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव लड़े, वहां बराबर सीटों पर लड़े। माननीय नीतीश कुमार जी के नेतृत्व में विधानसभा लड़ेंगे तो तर्कसंगत यही है कि बराबर सीटों पर ही लड़ा जाना चाहिए। हालांकि जो भी नेतृत्व निर्णय लेगा वह कार्यकर्ताओं को मान्य होंगे।
मैं बीजेपी के आम कार्यकर्ताओं के विचार को प्रकट कर रहा हूं। ये आम कार्यकर्ता का विचार है कि जदयू भी सहयोगी दल की तरह हमारे संकल्पों में हमारा साथ दे। बीजेपी की ओर से तो यह गठबंधन अटूट है। अब इस गठबंधन को अटूट रखना या नहीं यह जदयू पर है। अब गेंद जदयू के पाले में हैं। हमारी अपेक्षा रहेगी कि जदयू नेतृत्व गठबंधन हित और राष्ट्रहित में इस बार साथ खड़ी दिखेगी।