सिजोफ्रेनिया को मत करें नजरअंदाज, ये हैं लक्षण व बचाव

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सिजोफ्रेनिया: श्श्श…आवाज़ सुनी क्या?

डाॅ. विनोद पांडेय
नैदानिक मनोवैज्ञानिक

यदि कोई बच्चा या युवा विचित्र आवाज सुनने की बात कहे तो उसे नजरअंदाज नहीं करें। वह गंभीर मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया का संकेत है। ऐसा मानसिक रोग जिसके कारण वह अपनी जान दे सकता है और दूसरों की जान ले भी सकता है। यहां समस्तीपुर के एक गांव की घटना का जिक्र आवश्यक है। नैतिक व वैधानिक मर्यादा का पालन करते हुए उस घटना से जुड़े व्यक्ति व स्थान का जिक्र नहीं करूंगा। लेकिन, समाज के लोग इस मानसिक रोग के प्रति सजग व जागरूक हो इसके लिए इसका विस्तार से चर्चा कर रहा हूं।

समस्तीपुर के एक गांव एक युवक ने उन्हें कहा कि उसके कान में कोई कुछ कहते रहता है। पहले तो परिवार के लोगों ने उसकी बात को गंभीरता से नहीं लिया लेकिन कुछ दिनों बाद ही उसके व्यवहार बदलने लगे। वह बिना कारण के ही किसी पर शक करने लगा। परिवार या गांव के लोगों से उसकी बातचीत भी कम होने लगी। एक दिन वह बेचैन हो गया और पूरी रात सोया नहीं। उसकी पत्नी ने उसे पीने के लिए दवा दी, तब वह अचानक उग्र हो गया और पत्नी पर जहर देने का आरोप लगाने लगा। अपने पुत्र का यह व्यवहार देख पिता ने उसे डंटा। पिता से डंट-फटकार के बाद वह आपे से बाहर हो गया और अपने पिता पर ही टूट पड़ा। गले में लटकी गमछी पकड़ कर उन्हें जमीन पर पटक दिया और पास में पड़े कुदाल से काटने का प्रयास करने लगा। आसपास के लोगों ने उसे पकड़कर रस्सी से बांध दिया। उसे बंधा देकर उसकी पत्नी व मां रोने लगी। इसके बाद उसे लोगों ने खोल दिया। इस घटना केे बाद वह सामान्य व्यवहार करने लगा।

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कुछ दिनों बाद उसकी पत्नी ने उसे चाय दी। चाय हाथ में लेने के बाद वह जोर से चिल्लाने लगा और कहने लगा कि चाय में जहर मिलाकर तुम हमें मार डालना चाहती हो। उससे पहले मंै ही तुम्हें मार डालता हूं। ऐसा कहने के बाद उसने पास में पड़े गड़ासी से अपनी पत्नी पर प्रहार करना शुरू कर दिया। सिर पर गंभीर जख्म के कारण पत्नी वहीं मर गयी। पत्नी के मारने के बाद भी वह गड़ासी लेकर इधर-उधर घूमता रहा। परिवार के लोग चित्कार कर रो रहे थे। इसी बीच वह भी रोने लगा और कहने लगा कि जब पत्नी ही नहीं बची तो मैं जिंदा रहकर क्या करूंगा। ऐसा कहते हुए उसने अपनी गर्दन पर भी गड़ासी से प्रहार करना शुरू कर दिया था। तब तक गांव के लोग वहां एकत्रित हो गए और उसे पकड़कर रस्सी से बांधा गया।
इस घटना से संबंधित मुकदमा समस्तीपुर जिला न्यायालय में विचाराधीन है। तकनीकी कारण से इस पर अब तक कोई फैसला नहीं हो सका है। लेकिन, न्यायालय ने भी माना कि अपराध करने वाले की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। उस रोगी को मानसिक आरोग्यशाला लाया गया। उसका उपचार भी हुआ। एक हद तक वह व्यक्ति मानसिक रूप स्वस्थ भी हो गया। लेकिन, उस घटना के चार दिन बाद ही शोक के कारण उसकी मां का देहांत हो गया था। जिस समय यह घटना घटी थी उस समय उसकी छह माह की बच्ची थी। इस रोग के कारण वह बच्ची अपनी मां को खो चुकी थी। वर्तमान में वह बच्ची 15 वर्ष की हो गयी है।
सबसे बड़ी बात यह है कि पूर्व में अपवाद के रूप में ऐसे मामले कहीं मिल जाते थे। लेकिन, पिछले दो दशक में यह रोग बिहार जैसे राज्यों में सामान्य तौर पर मिल जा रहे हैं। भारत में करीब सवा करोड़ से अधिक लोग आंशिक या पूर्ण रूप से इस रोग की चपेट में हैं। ऐसे में इस रोग के लक्षणों व उपचार आदि के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी आमजन को रखनी चाहिए।

सिजोफ्रेनिया के लक्षणः
1. सूझ-बूझ की कमी
2. बेवजह अनिष्ट की आशंका
3. श्रवण मतिभ्रम- जैसे कान में कोई कह रहा हो
4. भावनात्मक लगाव नष्ट होना
5. हिंसक व्यवहार

सिजोफ्रेनिया रोगियों के लक्षणों की पड़ताल करने से ज्ञात होता है कि वे यथार्थ से कट जाते हैं। उन्हें लगता है कि कोई उन्हें निर्देश दे रहा है। आसपास की चीजों को वे अपनी धारणा से छù अवलोकन करते हैं। जैसे यातायात चैराहे पर लगी लाल बत्ती उन्हें बंदूक की गोली की भांति लग सकती है। किशोरावस्था में यह रोग होने पर ठीक होने की संभावना नहीं रहती है। लेकिन, सही समय पर उपचार एवं परामर्श से रोग को नियंत्रित अवश्य किया जा सकता है। वहीं, अधिक उम्र के लोगों, विवाहित व्यक्तियों व नौकरीपेशा लोगों में यह रोग होने के बाद इसे नियंत्रित करना अपेक्षाकृत रूप से सरल होता है। सिजोफ्रेनिक रोगियों की आयु सामान्य से पांच वर्ष कम हो जाती है।

सिजोफ्रेनिया के मरीजों को पुनर्वास की आवश्यता होती है। लंबे समय तक दवा का सेवन करना होता है। जो रोगी दवा नहीं खाते हैं, उनके लिए अब सूई भी आ गई है। बीच में दवा छोड़ने या ठीक होने के बाद परिवार व समाज का सहयोग न मिलने की स्थिति में सिजोफ्रेनिया दोबारा दस्तक देता है। इसके पीछे परिवार से ताने मिलना, रूखा बर्ताव होना, सोशल विड्रावल होना जैसे कारण हैं। इसलिए ऐसे रोगियों के लिए व्यक्तिगत, सामाजिक व पेशेवर, तीनों स्तर पर पुनर्वास की व्यवस्था करनी चाहिए। किसी भी आयु व लिंग के इंसान में सिजोफ्रेनिया के लक्षण दृष्टिगत होने के तुरंत बाद चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए और मानसिक आरोग्यशाला में रोगी को लाकर उसका उपचार शुरू कराना चाहिए और सबसे बड़ी बात कि सामान्य रोगों की भांति ही मानसिक रोग व इसके रोगियों के प्रति एक समाज के रूप में हमें संवेदनशीलता दिखानी चाहिए। इसलिए, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर घबराने की आवश्यकता नहीं है। बल्कि, सचेत रहकर उपचार कराने की आवश्कता है।

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