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पटना बिहार अपडेट

सनातन की ‘ऑनलाइन सत्संग शृंखला’ : आपातकाल की संजीवनी

पटना : सनातन संस्था और हिन्दू जनजागृति समिति धर्म और अध्यात्म प्रसार के लिए अविरत कार्यरत हैं । कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि पर जब संचारबंदी लागू की गई, तब धर्मप्रसार के पारंपारिक विकल्प अचानक सीमित हो गए । घर में फंस जाने के कारण सभी लोगों के दैनिक व्यवहार भी ठप्प हो गए । जनजीवन पूर्ववत कब होगा, इस संबंध में अनिश्‍चितता है । कोरोना के प्रभाव में फंसे समाज को उस समय वास्तविक रूप से मनोबल और आत्मिक बल की आवश्यकता थी ।

इस पृष्ठभूमि पर सनातन संस्था और हिन्दू जनजागृति समिति ने प्रथम ‘जनता संचारबंदी’ लागू करने के उपरांत केवल एक सप्ताह में ही ‘ऑनलाईन सत्संग शृंखला’ प्रारंभ की । इस सत्संग माला के अंतर्गत प्रतिदिन ‘नामजप सत्संग’, ‘भावसत्संग’, ‘बालसंस्कारवर्ग’ और ‘धर्मसंवाद’ इन चार सत्संगों का ‘फेसबुक’ और ‘यू-ट्यूब’ से सीधा प्रसारण प्रारंभ किया गया । विशेषता यह है कि इस क्षेत्र का विशेष पूर्वानुभव न होते हुए भी सत्संगरूपी यह ज्ञानस्रोत अविरत रूप से चल रहा है । इन चारों सत्संगों के १५० भाग पूर्ण हो चुके हैं । सत्संगों के शतकोत्तर स्वर्ण महोत्सव कार्यक्रम में दर्शकों ने विशिष्ट अभिप्राय व्यक्त करते हुए बताया है कि उन्हें इन सत्संगों का लाभ हो रहा है ।

वर्तमान में यद्यपि संचार बंदी उठाने की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है, तथापि एक प्रकार के भय और चिंता का वातावरण अभी भी व्याप्त है । इस पृष्ठभूमि पर यह ‘ऑनलाइन सत्संग शृंखला’ दर्शकों के लिए वास्तविक रूप से ‘संजीवनी’ सिद्ध हो रही है।

२९ मार्च से प्रारंभ हुए ये चारों सत्संग अभी तक कुल एक करोड पच्चीस लाख से अधिक लोगों ने देखे हैं । (२९ मार्च से २३ सितंबर तक के प्रत्यक्ष आंकडे – 1 करोड ४१ लाख २२ सहस्र ७४३) अनुमानत: देखें, तो प्रतिदिन चार सत्संग मिलकर साधारणत: ८० सहस्र से अधिक लोग देखते हैं, ऐसा ध्यान में आया है । सत्संग अल्पावधि में ही लोकप्रिय होने की यह साक्ष्य है । हिन्दी भाषा के ‘ऑनलाइन सत्संग’ लोकप्रिय होने के पश्‍चात दर्शकों की मांग के अनुसार वे कन्नड, मलयालम, तमिल और तेलुगु आदि भाषाआें में भी प्रारंभ किए गए ।

नामसत्संग अर्थात नामजप सत्संग में साधना, साधना का महत्त्व के सूत्र बताए जाते हैं तथा अध्यात्म से संबंधित शंकाआें का समाधान भी किया जाता है साथ ही प्रत्यक्ष नामजप करवाया जाता है । इन सत्संगों में त्योहार,उत्सव तथा व्रतों के शास्त्र भी बताए जाते हैं । इस सत्संग में अभी तक ‘नामजप कौन सा करें ?’, ‘नामजप का कार्य’, ‘नामजप एकाग्रता से होने के लिए क्या करना चाहिए ?’, ‘नामसाधना में प्रार्थना का महत्त्व’, ‘साधना का महत्त्व’, ‘नमस्कार की योग्य पद्धतियां’, ‘तिलक लगाने का महत्त्व’, ‘अध्यात्म से संबंधित शंकाआें का समाधान’ आदि विषय बताए गए हैं । नामजप सत्संगों में सनातन संस्था के सद्गुरु नंदकुमार जाधव स्वयं नामजप करते हैं । संतों के सत्संग और चैतन्य के कारण अनेक दर्शकों को नामजप करते समय मन के विचार कम होना, मन शांत होना, सकारात्मकता बढना आदि अनुभव होने के अभिप्राय प्राप्त हुए हैं ।

बालसंस्कारवर्ग के माध्यम से छोटे बच्चों पर सुसंस्कार हों, वे अनुशासित हों, उनमेें धर्म और राष्ट्र के प्रति प्रेम उत्पन्न हो, इस दृष्टि से दिशादर्शन किया जाता है । देवता, संत, राष्ट्रपुरुषों की कथाआें के माध्यम से विद्यार्थियों को धर्माचरणी बनाने का प्रयत्न किया जाता है । जब से बालसंस्कारवर्ग सुनना प्रारंभ किया है, तब से छोटे बच्चों को अच्छी आदतें लग गई हैं, ऐसा अभिभावकों ने आयोजकों को बताया है । ‘स्वयं का नेतृत्वगुण कैसे बढाएं ?’, ‘विद्यार्थीजीवन आदर्श कैसे बनाएं ?’, ‘व्यवस्थितपना का गुण कैसे बढाएं ?’, ‘दैनिक आचरण सुसंस्कारित कैसे करें ?’, ‘स्वयं की अनुचित आदतें और स्वभावदोष कैसे दूर करें ?’ आदि विषय बताने के साथ बालसंस्कार वर्गों के माध्यम से संत तथा क्रांतिकारियों की प्रेरणादायक कथाएं भी बताई जाती हैं । बालसंस्कारवर्ग आदर्श और सुसंस्कारित पीढी निर्माण करनेवाला एक महत्त्वपूर्ण उपक्रम है ।

भावसत्संगों के माध्यम से संत और भक्तों का ईश्‍वर के प्रति उत्कट भाव का दर्शन करवानेवाले उदाहरण, मानसपूजा, भावजागृति के विविध प्रयत्न बताए जाते हैं । ‘भाव वहां भगवान’, ‘ईश्‍वर भाव के भूखे हैं’, ऐसी सीख संतों ने दी है । ईश्‍वरप्राप्ति के लिए भाव महत्त्वपूर्ण है । यह ‘भाव’ कैसे उत्पन्न करें, कैसे बढाएं, इसकी सीख देनेवाला भावसत्संग दर्शकों को अलग ही भावविश्‍व में ले जाता है । ईश्‍वर के प्रति अत्यधिक रुचि उत्पन्न करता है । भावसत्संग में अभी तक ‘आत्मनिवेदनभक्ति’, ‘ईश्‍वर की अलौकिक लीलाएं’, ‘भावजागृति के लिए कृतज्ञता का महत्त्व’, ‘शरणागति’, ‘समर्पणभाव’, ‘निष्काम भक्ति’ आदि विषय लिए गए हैं । भवसागर पार करने के लिए ‘श्रद्धा’ आवश्यक है । उस पृष्ठभूमि पर यह भावसत्संग एक प्रकार से दर्शकों और भगवान के बीच की कडी ही बन गई है ।

धर्मसंवाद सत्संग के माध्यम से सरल भाषा में धर्मविषयक अमूल्य ज्ञान का विश्‍लेषण किया जाता है तथा विविध राष्ट्रीय, सामाजिक, शैक्षिक, धार्मिक और अन्य समस्याआें पर धर्मशास्त्र की दृष्टि से कैसे प्रयत्न करने चाहिए, यह बताया जाता है । धर्मसंवाद के माध्यम से अभी तक ‘कर्मफल सिद्धांत’, ‘ज्योतिषशास्त्र : महत्त्व और लाभ’, ‘श्राद्ध के पीछे का धर्मविज्ञान’, ‘तनावमुक्त जीवन के लिए अध्यात्म’, ‘सोलह संस्कार’, ‘साम्यवादियों द्वारा हुई शिक्षाव्यवस्था की हानि’, ‘प्राचीन खगोलशास्त्र में भारत का योगदान’, ‘प्राचीन भारत की आदर्श शिक्षाव्यवस्था’, ‘अंकगणित और कालगणना’ आदि विषयों पर गहन जानकारी दी गई । उससे प्राचीन ज्ञान पर प्रकाश डाला गया है ।

जिस प्रकार पानी का प्रवाह अपना मार्ग खोज ही लेता है । उसी प्रकार सनातन ज्ञानगंगा भी स्थल-काल का बंधन पारकर अविरत बह रही है । यह अनुभव हो रहा है कि इन ‘ऑनलाइन सत्संगों’ के माध्यम से यह प्रवाह अधिक गति और वेग से प्रसारित हो रहा है । जब सनातन संस्था आपातकाल के संबंध में बता रही थी, तब समाज के अनेक लोगों को वह अतिशयोक्ति लगती थी; परंतु कोरोना महामारी प्रारंभ होने पर समाज के अनेक लोगों ने बताया कि उन्हें प्रतीति हुई कि ‘सनातन वाणी’ सत्य है । ‘ऑनलाइन सत्संग शृंखला’ के कारण अनेक लोगों की साधना प्रारंभ हो गई तथा कुछ लोगों की साधना के प्रयत्नों की गति बढ गई । इसलिए यदि यह कहा जाए, कि ‘ऑनलाइन सत्संग शृंखला’ दर्शकों को ज्ञानामृत की ज्ञानगंगा देकर उन्हें सक्रिय करनेवाली है ।

सत्संग के शतकोत्तर स्वर्ण महोत्सव कार्यक्रम में दर्शकों द्वार व्यक्त अभिप्राय

* काम करने से पूर्व प्रार्थना और उसके उपरांत कृतज्ञता व्यक्त करना : बालसंस्कारवर्ग सुनना आरंभ किया है, तब से मेरे क्रोध की मात्रा कम हो गई है । अब मैं कोई भी काम करने से पहले प्रार्थना और उसके उपरांत कृतज्ञता व्यक्त कर रही हूं । – कु. आकांक्षा पाटिल, पुणे

* प्रत्येक कृत्य व्यवस्थित करने का प्रयत्न करना : बालसंस्कारवर्ग सुनना आरंभ किया है, तब से मैं प्रत्येक कृत्य व्यवस्थित करने का प्रयत्न करता हूं । घर के काम में मां की सहायता करता हूं तथा धर्माचरण कर रहा हूं । – कु. देवव्रत मराठे, पुणे

* मन शांत और प्रफुल्लित होना : भावसत्संग सुनने के पश्‍चात मन शांत हो जाता है । सत्संग के पश्‍चात २-३ घंटे मेरा मन प्रफुल्लित रहता है । काम करते समय ईश्‍वर का स्मरण कैसे करें, संत किस प्रकार भक्ति करते थे आदि अनेक सूत्र सीखने को मिले । सत्संग में सीखने को मिले सूत्रों पर मैं अमल करने का प्रयत्न कर रही हूं । काम करते समय मैं नामजप करने का प्रयत्न करती हूं । मुझे उससे संतुष्टि मिलती है । – प्रियंका चाळके, मुंबई.

* भावसत्संग के उपरांत निरंतर भगवान श्रीकृष्ण के चरणों का स्मरण होना : भावसत्संग सुनते समय अच्छा लगता है । ऐसा लगता है कि सत्संग समाप्त ही न हो । हमारे घर में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति है । भावसत्संग की एक कथा सुनी है, तब से मुझे लगता है कि मेरा मन भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में ही रहे और निरंतर भगवान श्रीकृष्ण के चरणों का स्मरण होता रहे । श्रीमती उषा क्षोत्री, मुंबई

* सत्संग के कारण जीवन की ओर देखने की दृष्टि में परिवर्तन होना : सत्संग सुनने पर प्रभावी रूप से नामजप कैसे करना चाहिए, यह सीखने को मिला । उस प्रकार नामजप प्रारंभ करने पर मुझ में अनेक सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिले । इन सत्संगों के कारण जीवन की ओर देखने की मेरी दृष्टि परिवर्तित हो गई । आज समाज में आध्यात्मिक शिक्षा का अभाव है । सनातन संस्था आध्यात्मिक शिक्षा देने का कार्य अच्छी तरह से कर रही है । इन सत्संगों के लिए मैं संस्था के प्रति आभारी हूं । – श्री. विपिन कौशिक, गुडगांव, हरियाणा

* नामजप के कारण अशांत मन शांत होना : मुझे सदैव अशांति लगती थी । किसी भी काम में मेरा मन नहीं लगता था । जब से मैं नामजप करने लगा हूं, तब से इष्टदेवता के प्रति श्रद्धा बढी है और काम में मन लगता है । मन को शांति प्रतीत होती है । – श्री. मनीष बंजारा, जोधपुर, राजस्थान

* सत्संग के कारण ईश्‍वर के निकट होने का भान होना : नामजप सत्संग एक उत्कृष्ट प्रेरणादायी सत्संग है तथा अत्यंत स्तुत्य उपक्रम है । सत्संग के कारण ईश्‍वर के निकट होने का भान होता है । श्रीमती माधवी दामले, मध्यप्रदेश

* घर चैतन्यदायी प्रतीत होना : सत्संग के कारण मनःशांति मिलने का भान होता है । घर में भी बहुत सकारात्मक और चैतन्यदायी प्रतीत होता है । बच्चे भी नामजप करते हैं । मन शांत रहता है । घर में चैतन्य प्रतीत होता है । – प्रिया पृथी, नई देहली

* थकान की मात्रा अल्प होना : सत्संग से उत्साह और आनंद मिलता है । नामजप करते हुए काम करने से थकान नहीं होती । श्रीमती अंजली कुलकर्णी, ठाणे