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पुण्यस्मृति : साहित्य के भीष्म थे साहनी

भीष्म साहनी एक नाम था, जिसे आम लोगो की आवाज़ उठाने के लिए जाना जाता है। भीष्म साहनी को हिंदी के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद की परम्परा को आगे बढ़ाने वाले साहित्यकार के तौर पर जाना जाता है। साहनी भी प्रेमचंद की तरह जनसमस्याओं को उजागर करने के लिए जाने जाते थे।

साहनी का जन्म रावलपिंडी में (वर्तमान में पाकिस्तान का हिस्सा) 1915 को हुआ था। विभाजन के बाद वे भारत में रहने लगे। साहिनी ने गाँधी जी के द्वारा संचालित ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भी अपना योगदान दिया। 1942 में रावलपिंडी में हुए हिंसक घटना के बाद साहनी ने इसका भरपूर विरोध कर चर्चा में आए थे।

लेखन से पहले साहनी ने एक अनुवादक, शिक्षक और नाटककार के रूप में काम किया। उन्होंने 1950 में दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के लेक्चरर के तौर पर काम करना शुरू किया था। साहनी उर्दू, हिंदी, पंजाबी और अंग्रेजी भाषा के प्रखर जानकर थे। 1957 में साहनी ने मॉस्को जाकर एक अनुवादक का कार्य किया। उन्होंने वहां 25 रूसी पुस्तकों का अनुवाद हिंदी भाषा में किया।

देश की राजनीति पर साहनी कहते हैं कि ‘नफरत की राजनीति सत्ता का फार्मूला है’, और ‘तमस’ में जनता की नासमझी पर कहते हैं— “जब प्रजा आपस में ही लड़े, तो शासक के लिए क्या खतरा है, खतरा तो तब होगा जब जनता सत्ता के खिलाफ लड़ेगी”। साहनी की कृति ‘तमस’ ने उन्हें एक बड़ी पहचान दिलाई। इस कृति के लिए उन्हें पद्मभूषण अवार्ड से नवाजा गया। इस कृति पर टेलीविजन सीरियल और फिल्म भी बनी। उन्होंने यह पुस्तक आजादी के लगभग दो दशक बाद लिखा, जिसमें विभाजन के समय के हरेक पहलू को उन्होंने तार-तार करके लिखा। इसके लिए उन्हें 1975 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। इसके पहले 1969 में पद्मश्री और 1998 में पद्मभूषण पुरस्कार से नवाज़ा गया और 2002 में साहनी को साहित्य अकादमी फ़ेलोशिप अवार्ड दिया गया। आज ही के दिन 11 जुलाई 2003 को साहनी ने अंतिम सांस ली।

प्रमुख कृतियां- तमस, माधवी, बसंती, कुंतो, भाग्य रेखा, बलराज-माय ब्रदर
पुरस्कार- साहित्य अकादमी, पद्मश्री, पद्मभूषण और साहित्य अकादमी फ़ेलोशिप अवार्ड।

(सुचित कुमार)