साहित्य सम्मेलन में मनाई गयी रामचंद्र शुक्ल की जयंती

0

पटना : काव्य में भाव और रस के महान पक्षधर, हिन्दी-समालोचना के शिखर पुरुष पं रामचंद्र शुक्ल विरचित ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’, भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन करने वाला, हिन्दी साहित्य का महान गौरव-ग्रंथ है। पं शुक्ल आज भी साहित्यालोचन के आदर्श और प्रेरणा-पुरुष हैं।

यह बातें आज बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में शुक्ल जी की 135वीं जयंती पर आयोजित संगोष्ठी एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, शुक्ल जी ने अपने संघर्षपूर्ण जीवन से मानव-मस्तिष्क और उसके विचारों को पढ़ने की एक विलक्षण शक्ति प्राप्त की थी। उन्हें मानव-मन को समझने और उसके विश्लेषण की अद्भुत क्षमता प्राप्त थी। एक कुशल मनोवैज्ञानिक की भांति वे कविता के मर्म को कुछ पंक्तियों के अवलोकन से ही भांप लेते थे। उनका विचार था कि काव्य की रचना केवल आनंद के लिए नहीं, वरण लोक-कल्याण के महान लक्ष्य को ध्यान में रखकर की जानी चाहिए।

swatva

इसके पूर्व समारोह का उद्घाटन करते हुए केंद्रीय विधि मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि, अंग्रेज़ों और अंग्रेज़ीयत के दबाव में भारत अपनी बौद्धिक क्षमता भूल गया था। ऐसे समय में पं रामचंद्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य का इतिहास लिख कर भारत को उसकी महान परंपरा से न केवल अवगत कराया बल्कि जनमानस को झंकृत कर जगाया। उन्होंने हिन्दी को ऐसी ऊंचाई दी, जिसे अबतक लांघा नहीं जा सका है। उन्होंने हिन्दी के लिए कुबेर का ख़ज़ाना छोड़ा है।
उन्होंने साहित्य सम्मेलन की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि सम्मेलन देश की सबसे बड़ी संस्था है। हिन्दी के आंदोलन में इसकी बड़ी भूमिका रही है। बिहार की हिंदी की धमनियों में जो ऊर्जा सम्मेलन ने भरी है वह अद्वितीय है। सम्मेलन में पिछले दिनों जो सुनने देखने को मिलता था, उससे दुःख होता था। यह प्रसन्नता की बात है कि यह फिर से अपनी पुरानी गरिमा को प्राप्त कर रहा है।

पटना उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, कार्यकारी प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय, डा शंकर प्रसाद, प्रो वासुकी नाथ झा, डा विनोद शर्मा, श्रीकांत सत्यदर्शी, डा मेहता नगेंद्र सिंह, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, कुमार अनुपम तथा डा सुधा सिन्हा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ जय प्रकाश पुजारी के वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवयित्री डा शांति जैन का कहना था की, “ सिर्फ़ सांसों के आने जाने को ज़िंदगी हम नहीं कहा करते/ ताल्लुकों के फ़क़त निभाने को दोस्ती हम नहीं कहा करते”। वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ ने ज़िंदगी और मौत के बीच के रहस्य को इन पंक्तियों से समझाने की कोशिश की कि, “जान ले भागे हिरन, वह जान लेगा इसलिए/ शेर भी लुक छिप बढ़े, पहचान लेगा इसलिए/ क्या किया उसने कि उसके रू-ब-रू होता नहीं/ डर है, शायद आईना पहचान लेगा इसलिए”।

शायर आरपी घायल का कहना था कि, हज़ारों में कभी कोई कहीं ऐसा निकलता है/ कि जिसके मुस्कुराने से वहां मौसम बदलता है”। गीत के चर्चित कवि विजय गुंजन ने अपने इस गीत से श्रोताओं की ख़ूब वाहवाही बटोरी कि, “भर-भर दीपक तेल जलाए जाने किसके सम्मोहन में”।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here