राममंदिर फैसले में भारतीय सर्वधर्म सद्भाव की प्रेरणा : संजय जायसवाल
राममंदिर पर आये सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ने एकबार फिर यह साबित कर दिया कि भारत विश्व बंधुत्व और सर्वधर्म समभाव की मजबूत डोर में गूंथा एक दृढ़ राष्ट्र है। ऋषि, मनीषियों की समृद्ध परंपरा वाला हमारा देश आदिकाल से ही पूरे विश्व में ज्ञान, सत्य और अहिंसा का प्रकाश फ़ैलाने के लिए प्रसिद्ध रहा है। 9 नवंबर को राम जन्मभूमि पर ऐतिहासिक फैसले के बाद भारत ने ‘सर्वधर्म समभाव’ की छवि को एक बार फिर से विश्व फलक पर रखा है। कोर्ट ने यह साफ़ कहा कि फैसला मान्यता के आधार पर नहीं, सबूत और तथ्यों के आधार पर दिया गया है।
जनमानस ने सहर्ष किया स्वीकार
फैसले ने एक बार फिर पूरे विश्व में भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती और मजबूती को एक नजीर की तरह पेश किया। आज के समय में जब दुनिया के कई मुल्क, धर्म के नाम पर फ़ैल रहे भेदभाव, चरमपंथ और अलगाववाद की पीड़ा से जूझने को विवश हैं, वैसे समय में दशकों से लंबित इस मामले में सुप्रीम कोर्ट सराहनीय फैसला और तमाम जनमानस का उसे सहर्ष स्वीकार करना, दुनिया को एक बार फिर बहुत कुछ सिखला गया।
प्रतिक्रियाओं में भारत की ताकत और श्रेष्ठता
इसपर विभिन्न राजनेताओं व धर्मगुरुओं की प्रतिक्रियाओं को देखें तो किसी में कोई अंतर नजर नहीं आता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां इस फैसले को किसी की हार या जीत के रूप में नहीं देखने की अपील की और कहा कि रामभक्ति हो या रहीमभक्ति, यह समय हम सभी के लिए भारतभक्ति की भावना को सशक्त करने का है। वहीं गृहमंत्री अमित शाह ने भी फैसले का स्वागत करते हुए लोगों को शांति और सौहार्द से परिपूर्ण ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ के अपने संकल्प के प्रति कटिबद्ध रहने के लिए प्रेरित किया।
संघ प्रमुख और इमाम बुखारी, सबकी बोली एक
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी फैसले से संतुष्टि जताते हुए इसे ऐतिहासिक बताया। उन्होंने प्रेस से साफ कहा कि अब संघ का उद्देश्य केवल मानव चरित्र निर्माण है। बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी ने भी कोर्ट के फैसले को सर माथे पर लेते हुए सभी को इसका सम्मान करने की अपील की है। जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने भी निर्णय की तारीफ करते हुए इस फैसले के खिलाफ किसी प्रकार की याचिका दायर करने से साफ़ इंकार कर दिया है।
इन वक्तव्यों से यह साबित होता है कि भारत में कटुता का कोई स्थान नहीं है और भले ही ऊपर से हम अलग दिखते हों लेकिन अंदर से हम एक हैं।
मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना
हिंदी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा”
अल्लामा इक़बाल की यह पंक्तियां दूसरों के लिए भले ही एक देशभक्ति का गाना हो लेकिन भारत की 130 करोड़ जनता के लिए अंतर्मन की आवाज है। विविधता में एकता हमारी शक्ति है और हमारी मातृभूमि हमारी पहचान।
आगे बढ़ने के साथ सतर्क रहना भी जरूरी
अब इस मामले का पटाक्षेप होने के बाद आगे के लिए सोचना जरूरी है। राम जन्मभूमि पर आए इस फैसले से जो सामुदायिक सौहार्द का ज्वार देश के हर जन गण के मन में उठा है, उसे किसी भी कीमत पर हमें थमने नहीं देना चाहिए। बहुत सी ऐसी शक्तियाँ और विचारधाराएँ हैं जिनकी रोजी-रोटी भारत का विरोध कर के ही चलती हैं। जाहिर है उन्हें हम भारतवासियों का यह आपसी प्रेम और सद्भाव फूटी आँखों नहीं सुहा रहा होगा। वह दुनिया में भारत के बढ़ते क़दमों को थामने का प्रयत्न कर सकते हैं, लेकिन “एक भारत-श्रेष्ठ भारत” का जो कारवां चल रहा है उसे हम किसी भी कीमत पर रुकने नही देना है। इस विवाद का भले ही कई पीढ़ियों पर असर पड़ा हो लेकिन अब देश की नयी पीढ़ी को नए भारत के निर्माण में नए सिरे से जुटना है।‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ के तहत जारी राष्ट्र निर्माण का काम अब सबके सहयोग से और तेजी से आगे बढ़ाना होगा।
स्वामी विवेकानंद जी ने विश्व के इतिहास का अवलोकन कर कभी यह भविष्यवाणी की थी कि 17वीं शताब्दी इंग्लैंड की थी, 18वीं फ्रांस की थी, 19वीं शताब्दी जर्मनी की व 20वीं अमरीका की है, लेकिन 21वीं शताब्दी भारत की होगी। आज उनका यह कथन सत्य साबित होने लगा है, अयोध्या मामले के इस ऐतिहासिक समाधान के बाद यह तय हो गया है कि भारत एक बार फिर से विश्वगुरु बन कर पूरे विश्व को 21वीं सदी में राह दिखाने वाला है।